सोमवार, 31 जनवरी 2011

शनिवार, 29 जनवरी 2011

दहेज प्रथा : एक अभिशाप

समाज में प्रत्येक प्रथा का सूत्रपात किसी अच्छे उद्देश्य को लेकर ही होता है, परन्तु कालांतर में ये प्रथाएँ एक ऐसी रुड़ी बन जाती हैं कि उससे मुक्ति पाना सहज नहीं होता | साथ ही उस प्रथा से समाज में बुराइयां भी पैदा होने लगती हैं | दहेज प्रथा भी आज कल एक ऐसी रूड़ी बन गई है | जिसने हर उस मनुष्य का चैन छीन लिया है, जो एक विवाह योग्य कन्या का पिता है | इस कुप्रथा के कारण विवाह जैसा महत्त्वपूर्ण एवं पवित्र संस्कार "वर को खरीदने एवं बेचने कि मंडी बन गया है |" यह एक ऐसी विषबेल है, जिसने पारिवारिक जीवन को उजाड़ कर रख दिया है | आज कल कोई भी दिन ऐसा नहीं जाता जिस दिन समाचार पत्रों में दहेज़ के कारण किसी नवयुवती की मृत्यु या उसके ऊपर अत्त्याचार के समाचार पढने को न मिलते हों | आज कल यह प्रथा एक अभिशाप बन गई है |


दहेज़ प्रथा भारतीय समाज पर एक बहुत बड़ा कलंक है | इसने भारतीय समाज को धुन खाई लकड़ी के समान अशक्त कर दिया है | यह एक ऐसे दैत्य का स्वरूप ग्रहण कर चुका है, जो पारिवारिक जीवन को देखते ही देखते विषाक्त कर डालता है | इसने हज़ारों नारियों को घर छोड़ने पर विवश किया है | हज़ारों नारियां इसकी बलिवेदी पर अपने प्राण दे चुकी हैं | समाज सुधारकों के प्रयत्नों के बावजूद दहेज़ प्रथा ने अत्यंत विकत रूप धारण कर लिया लिया है | इसका विकृत रूप मानव समाज को भीतर से खोखला कर रहा है |

दहेज का वर्तमान स्वरूप इतना भयावह है कि इसके कारण वृद्ध या किसी अधेड़ उम्र के व्यक्ति से विवाह जैसी सामाजिक बुराइयाँ पैदा हो रही हैं | ऐसी बुराइयाँ सामाजिक व्यस्था को तो चरमरा ही रहीं हैं, पारिवारिक जीवन को भी कलहपूर्ण एवं अशांत बन रही हैं | आज कल नारी शिक्षा के प्रसार एवं प्रचार के उपरान्त भी यह प्रथा समाप्त न होकर उग्रतर रूप धारण कर रही है | कन्या कि श्रेष्ठा, सौंदर्य एवं शील दहेज के आधार पर ही आंके जाते है | विवाह के उपरान्त नववधु के ससुराल एमिन पहुँचते ही उसके सौंदर्य एवं शील आदि गुणों कि अपेक्षा उसके साथ आए दहेज की चर्चा ही अधिक होती है, यदि लड़का अच्छा पढ़ा लिखा है अथवा किसी उच्च सरकारी पद पर होता है, तो माता पिता अधिक दहेज़ मिलने पर ही विवाह के लिए सहमत होते हैं | वैसे लड़के वाले के घर में लड़कियाँ भी हो सकती हैं, परन्तु लड़के के विवाह के अवसर पर उनका दृष्टिकोण दहेज़ लोलुप ही होता है | भारतीय समाज में पुत्री का जन्म पिता के लिए चिंता का कारण ही कहा जा सकता है |


यह कुप्रथा समाज तथा कन्या के माता पिता के लिए सबसे बड़ा अभिशाप सिद्ध हो रहा है | यह लड़की के विवाह के लिए सामान्यत: मध्यमवर्गीय व्यक्ति को अपनी सामर्थ्य से अधिक रूपये खर्च करने पड़ रहे हैं | इसलिए विवश होकर उससे या तोह ऋण की शरण लेनी पड़ती है या रिश्वत आदि अनुचित साधनों से वह धन की व्यवस्था करता है | ऋण लेकर विवाह करने पर कभी कभी उसका समस्त जीवन ऋण चुकाने में निकल जाता है | दहेज़ की समस्या के कारण अपने माता पिता की दयनीय दशा देखकर कभी कभी कन्याएँ इतनी निराश और दुखी हो जाती हैं की अपना विवेक खोकर आत्महत्या तक कर लेती हैं | वे सोचती हैं कि अपने माता पिता की शोचनीय दशा का कारण वे ही हैं इसलिए "न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी " की लोकोक्ति को चरितार्थ करती हुई वे अपना जीवन ही समाप्त कर लेती हैं |

दहेज लोभी व्यक्ति केवल विवाह के अवसर पर मिले दहेज को पा कर ही संतुष्ट नहीं होते बल्कि विवाह के बाद भी कन्या पक्ष से उनकी माँगें बराबर बनी रहती हैं और अपनी इन अनुचित माँगों की पूर्ति का साधन वे इन विवाहित कनयाओं (वधुओं) को ही बनाते हैं | इन माँगों के पूरा होने की स्थिति में वे नव वधुओं को शारीरिक एवं मानसिक यातनाएं देते हैं जैसे भूखा रखना , बात-बात पर कटूक्तियां कहना , मारना पीटना, अंग भंग कर देना आदि तरीकों से वे नवविवाहिता को अपने माता पिता से दहेज लाने को विवश करते हैं | यदि इतने पर भी वे और दहेज नहीं ला पाती हैं, तो उन्हें जिंदा जला दिया जाता है या हमेशा के लिए पिता के ही घर में रहने के लिए त्याग दिया जाता है |


अब ज्वलंत प्रशन यह है कि इस सामाजिक कोढ़ को कैसे समाप्त किया जाये ? इसके लिए व्यापक रूप से प्रयास करने की आवश्यकता है, क्योंकि ऊपरी तौर पर इस कुप्रथा का कोई भी पक्षधर नहीं है, परन्तु अवसर मिलने पर लोग दहेज लेने से नहीं चूकते | इसको दूर करने के लिए सरकार ने दहेज विरोधी क़ानून बना दिया है | दहेज के सन्दर्भ में नवविवाहिताओं की म्रत्यु सम्बन्धी मामलों में न्यायधीशों ने नववधुओं के पिता, सास-ससुर आदि को म्रत्यु दंड देकर इस कुप्रथा को समाप्त करने की दिशा में प्रशंसनीय प्रयास किया है, परन्तु यह कुप्रथा सुरसा के मुख की भांति बढ़ती जा रही है | इसके विरोध में व्यापक जनचेतना जागृत करने की आवश्यकता है | सरकार के साथ-साथ समाज सेवी संस्थाएं तथा समाजसेवा में रूचि रखने वाले लोग इस प्रथा के विरुद्ध जाग्रति उत्पन्न करने तथा रोकने के कड़े उपाय भी करें, तो इससे छुटकारा पाया जा सकता है |

इस प्रथा के विरुद्ध में देश के अनेक भागों में महिलाओं के संगठन उखड खड़े हुए हैं | दहेज के कारण जहाँ कहीं भी उत्पीड़न की घटना की सूचना इनको मिलती है, ये उसका प्रतिरोध करने के लिए पहुँच जाते हैं | इनके प्रतिरोध के रूप, समय और स्थान के अनुसार अलग अलग होते हैं | इस प्रकार इस सामाजिक बुराई को रोकने में इनसे काफी मदद मिलती है |

सरकार ने दहेज को अवैध घोषित कर दिया है, परन्तु क़ानून बन जाने से कुछ नहीं हो पा रहा है | इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए आज के शिक्षित युवक-युवतियों को आगे आना होगा | उन्हें द्रड़ प्राण करना होगा की वे दहेज लेकर या देकर विवाह नहीं करेंगे और ना ही ऐसे किसी विवाह में शामिल होंगे जहां दहेज लिया गया हो, बल्कि वहाँ जाकर विरोध प्रदर्शन करेंगे |

"माँ भी नहीं पाई दुल्हन, चिंता में जलने लगती है |
गर्दन में तलवार दहेज की, सदा लटकने लगती है