रविवार, 21 फ़रवरी 2010

बात एक रात की

रात के करीब 12 बजे होंगे। अचानक ही मेरी नींद खुल गई। ड्राइवर ने बस को जोरदार ब्रेक मारा। बस का टायर पंक्चर हो जाने से वह बड़ी मुश्किल से स्टेयरिंग पर काबू कर सका था।बारिश का मौसम होने के कारण बस में भी बहुत कम मुसाफिर थे। हम सभी लोग बस से नीचे उतर गए। सभी को जो भी वाहन मिला उनसे लिफ्ट लेकर इंदौर के लिए रवाना हुए। मैं अकेली डरी-सहमी हुई थी। सोचा था बस में ही रात गुजार दूँ लेकिन दो अनजान आदमियों (ड्राइवर और कंडक्टर) का भरोसा एक लड़की कैसे कर सकती है। एक लड़की के लिए भूत-पलीतों से ज्यादा डर उन लोगों से रहता है जो औरतों को अपनी हवस का शिकार बनाते हैं। जब बस के सभी यात्री वहाँ से रवाना हो गए तब मेरा यह डर बहुत ही बढ़ गया।मैंने चलना शुरू किया। रास्ते में सोचती जा रही थी मालूम होता तो ओंकारेश्वर में रहनेवाले मेरे चाचा के घर से जल्दी निकल जाती। इस मुसीबत का सामना तो नहीं करना पड़ता शायद भगवान मेरी परीक्षा लेना चाहता था। आकाश में बिजली गरज रही थी। आसपास कुछ भी दिखाई नहीं देता था। चारों ओर बस जंगल ही जंगल। कभी-कभी जंगली जानवरों की आवाज कानों से टकराकर चली जाती थी। चाँद भी आज मुझसे रूठा था। मालूम नहीं कहाँ छुप गया था। करीब आधा घंटा चली कि अचानक ही एक कार मेरे पास आकर रुक गई। उसे एक साँवला युवक चला रहा था। मैडम इतनी रात गए आप कहाँ जा रही हैं और ये बारिश...'चलो मैं आपको लिफ्ट दे देता हूँ।' मेरे सामने एक विकट समस्या खड़ी हो गई..अगर उसको मना कर देती तो शायद कोई दूसरा मददगार न मिलता और अगर हाँ कह देती हूँ तो एक अनजाने शख्स पर भरोसा करूँ तो भी कैसे? एक तरफ कुआँ तो दूसरी तरफ खाई। माँ कहा करती थी कि बेटी जब भी तुम कोई मुश्किल में फँस जाओ और उससे बाहर निकलने के लिए दो विकल्प हो..तब उसी विकल्प को पसंद करो जो तुम्हारा दिल चाहता है। मैंने वही किया और आखिर में उसकी कार की अगली सीट पर बैठ गई। उसका नाम दीपक था जो इस अंधकारभरी रात में मेरे लिए दीपक बनकर रास्ता दिखाने आ गया था। बातों-बातों में मालूम पड़ा कि वह ग्वालियर का था और इंदौर किसी बिजनेस के काम से जा रहा है। मैंने उसमें एक बात खास देखी। पिछले आधे घंटे में उसने एक भी बार मेरे सामने नहीं देखा था। मुझे वह थोड़ा अकड़ू लगा। थोड़ा गुस्सा भी आया। शायद यह पहला शख्स होगा जिसको मेरी सुंदरता ने शिकार नहीं बनाया होगा। मेरा बदन भी पूरी तरह भीग चुका था।

रूहानी प्यार कभी खत्म नहीं होता

कुलवंत हैप्पी

वो नजरें झुकाकर क्लासरूम की तरफ बढ़ रही है, उसने किताबें अपने सीने के साथ लगाई हुई हैं। जैसे कोई माँ अपने बच्चे को सीने से लगाकर चलती है। इतने में वो एक नौजवान लड़के के साथ टकरा जाती है और किताबें नीचे गिरती हैं, दोनों के मुँह में से एक ही अल्फाज सुनाई देता है सॉरी। बस इस दौरान दोनों की निगाहें एक दूसरे से टकराती हैं, और पहली ही नजर में प्यार हो जाता है। कुछ ऐसा ही दृश्य होता है हिन्दी फिल्मों में, बस जगह और हालात बदल दिए जाते हैं, किताबों की जगह कुछ और आ जाता है। मगर लड़का लड़की आपस में अचानक टकराते हैं और वहाँ से ही प्यार की ज्वाला भड़क उठती है। क्या इसे ही प्यार कहते हैं? मेरा जवाब तो नहीं है, औरों का क्या होगा पता नहीं।पहली नजर में प्यार कभी हो ही नहीं सकता, वह तो एक आकर्षण है एक दूसरे के प्रति, जो प्यार की पहली सीढ़ी से भी कोसों दूर है। जैसे दोस्ती अचानक नहीं हो सकती, वैसे ही प्यार भी अचानक नहीं हो सकता। प्यार भी दोस्ती की भाँति होता है, पहले पहले अनजानी सी पहचान, फिर बातें और मुलाकातें। सिर्फ एक नए दोस्त के नाते, इस दौरान जो तुम दोनों को नजदीक लेकर आता है वह प्यार है। कुछ लोग सोचते हैं कि अगर मेरी शादी मेरे प्यार से हो जाए तो मेरा प्यार सफल, नहीं तो असफल। ये धारणा मेरी नजर से तो बिल्कुल गलत है, क्योंकि प्यार तो नि:स्वार्थ है, जबकि शरीर को पाना तो एक स्वार्थ है। इसका मतलब तो ये हुआ कि आज तक जो किया एक दूसरे के लिए वो सिर्फ उस शरीर तक पहुँचने की चाह थी, जो प्यार का ढोंग रचाए बिन पाया नहीं जा सकता था।
प्यार तो वो जादू है, जो मिट्टी को भी सोना बना देता है। प्यार वो रिश्ता है, जो हमको हर पल चैन देता है, कभी बेचैन नहीं करता, अगर कुछ बेचैन करता है तो वो हमारा शरीर को पाने का स्वभाव।
मेरी नजर में तो प्यार वही है, जो एक माँ और बेटे की बीच में होता है, जो एक बहन और भाई के बीच में या फिर कहूँ बुल्ले शाह और उसके मुर्शद के बीच था। ज्यादातर लड़के और लड़कियाँ तो प्यार को हथियार बना एक दूसरे के जिस्म तक पहुँचना चाहते हैं, अगर ऐसा न हो तो दिल का टूटना किसे कहते हैं, उसने कह दिया मैं किसी और से शादी करने जा रही हूँ या जा रहा हूँ, तो इतने में दिल टूट गया। सारा प्यार एक की झटके में खत्म हो गया, क्योंकि प्यार तो किया था, लेकिन वो रूहानी नहीं था, वो तो जिस्म तक पहुँचने का एक रास्ता था, एक हथियार था। अगर वो जिस्म ही किसी और के हाथों में जाने वाला है तो प्यार किस काम का।सच तो यह है कि प्यार तो रूहों का रिश्ता है, उसका जिस्म से कोई लेना देना ही नहीं, मजनूँ को किसी ने कहा था कि तेरी लैला तो रंग की काली है, तो मजनूँ का जवाब था कि तुम्हारी आँखें देखने वाली नहीं हैं। उसका कहना सही था, प्यार कभी सुंदरता देखकर हो ही नहीं सकता, अगर होता है तो वह केवल आकर्षण है, प्यार नहीं। माँ हमेशा अपने बच्चे से प्यार करती है, वो कितना भी बदसूरत क्यों न हो, क्योंकि माँ की आँखों में वह हमेशा ही दुनिया का सबसे खूबसूरत बच्चा होता है।प्यार तो वो जादू है, जो मिट्टी को भी सोना बना देता है। प्यार वो रिश्ता है, जो हमको हर पल चैन देता है, कभी बेचैन नहीं करता, अगर कुछ बेचैन करता है तो वो हमारा शरीर को पाने का स्वभाव। जिन्होंने प्यार के रिश्ते को जिस्मानी रिश्तों में ढाल दिया, उन्होंने असल में प्यार का असली सुख गँवा दिया। आज उनको वह पहले की तरह उसका पास बैठकर बातें करना बोर करने लगा होगा, अब उसको निहारने की इच्छा मर गई, क्योंकि उसके शरीर को पाने के पहले तो उसको निहारते ही आए हैं, अब उसमें नया क्या है, जिसको निहारें। एक वो जिन्होंने प्यार को हमेशा रूह का रिश्ता बनाकर रखा, और जिस्मानी रिश्तों में उसको ढलने नहीं दिया, उनको आज भी वो प्यार याद आता है, उसकी जिन्दगी में आ रहे बदलाव उनको आज भी निहारते हैं। उसको कई सालों बाद फिर निहारना आज भी उनको अच्छा लगता है। रूहानी प्यार कभी खत्म नहीं होता। वो हमेशा हमारे साथ कदम दर कदम चलता है। वो दूर रहकर भी हमको ऊर्जावान बनाता है।

लिख दें अपनी मोहब्बत का अफसाना

'मजा आता अगर गुजरी हुई बातों का अफसानाकहीं से हम बयां करते, कहीं से तुम बयां करते'-'वहशत' कलकतवी
वाकई जब प्यार किसी से होता है तो हर दिन कोई नया अफसाना बनता है और फिर आगे बढ़ती है प्रेम कहानी। हर प्रेमी युगल अपने प्यार को हमेशा अपने साथ रखने का ख्वाहिशमंद होता है। हर कोई चाहता है कि अपने महबूब के साथ गुजरे हर पल का लेखा-जोखा उसके पास हो ताकि तन्हाइयों में वह उन पलों को याद करके एक बार फिर उस सुखद अहसास की अनुभूति कर सके।लेकिन ये क्या जब आप अपना हाले दिल कागज पर उतारने की कोशिश करते हैं तो समझ ही नहीं आता कि कहाँ से शुरू करें? क्या लिखें? आपकी कलम तो अपना काम करने के लिए तैयार रहती है, बस शब्द ही नहीं मिलते। बात सिर्फ शुरुआत की ही नहीं रहती, यदि आप इसे शुरू कर भी लेते हैं तो इसे आगे बढ़ाने में भी आपको मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। खैर, कोई बात नहीं हम आपको कुछ मशविरा दिए देते हैं ताकि आप अपने इस अफसाना-ए-मोहब्बत को धाराप्रवाह लिख सकें।सबसे पहले इस बात पर गौर फरमाएँ कि आपकी प्रेम कहानी में कुछ ऐसा खास हो जो आपको बाँधे रखे और आप उसे पढ़ते समय उस दौर को महसूस कर सकें। हाँ, कुछ विशेष स्वरूप देने के लिए बीच-बीच में शेरो-शायरी, कविता, ग़ज़लें या फिर लव कोटेशन का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। अब जरा बात करें कि इसमें आप शामिल क्या करेंगे? देखिए जनाब इसमें कई सारी बातें शामिल की जा सकती हैं लेकिन कुछ खास बातें बहुत ही जरूरी रहेंगी। जरा आगे पढ़ें-सबसे पहले आपकी कहानी में शामिल होना चाहिए कि आप पहली बार उनसे कब, कैसे और कहाँ मिले?* उनसे मिलने के बाद आपके दिल ने क्या कहा?* आपने दोस्ती के लिए उन्हें कैसे प्रपोज किया?* आपको इस बात का अहसास कब और कैसे हुआ कि आप उनके प्यार में डूब चुके हैं?
ये कहानी आपकी होते हुए भी कुछ अलग लगे। यानी कि यदि आपके अलावा कोई तीसरा व्यक्ति भी इसे पढ़े तो ये जान न सके कि ये कहानी आपकी ही है। क्या करेंगे इसके लिए? ज्यादा कुछ नहीं करना होगा सिवाय नाम बदलने के।
* अपने प्यार की अनुभूति को अपने महबूब तक पहुँचाने के लिए आपने क्या किया?*

आपके प्रेम-प्रस्ताव पर उनकी प्रतिक्रिया।*

पहली बार जब आप दोनों मिले वो दिन, तारीख, समय तथा बातचीत का ब्यौरा।* आप दोनों ने कब पहली बार एक-दूसरे को प्यार भरे वो तीन शब्द कहे, जिसे कहने-सुनने के लिए हर प्रेमी युगल बेकरार रहता है।ये और इनके जैसी और भी कई बातें हैं, जिसे आप अपनी प्रेम कहानी में शामिल कर सकते हैं। अब जरा देखें कि मोहब्बत के इस अफसाने का स्वरूप क्या हो?इसके लिए आप कुछ ऐसा कर सकते हैं कि ये कहानी आपकी होते हुए भी कुछ अलग लगे। यानी कि यदि आपके अलावा कोई तीसरा व्यक्ति भी इसे पढ़े तो ये जान न सके कि ये कहानी आपकी ही है। क्या करेंगे इसके लिए? ज्यादा कुछ नहीं करना होगा सिवाय नाम बदलने के। अपने महबूब समेत ऐसे व्यक्तित्व जिन्हें कहानी में शामिल करना है, सभी को नया नाम दे दें। साथ ही अपनी कल्पना शक्ति का उपयोग करके कुछ ऐसी बातें शामिल करें जो अलग हों।चाहें तो अपनी कहानी को कुछ इस अंदाज में लिख सकते हैं कि- 'कुछ साल पहले की बात है....'या फिर इस अफसाने को डायरी की शक्ल भी दे सकते हैं। जैसे कि जब आप दोनों मिले उस तारीख के साथ लिखें - 'आज मैंने उसे पहली बार देखा...।'यदि कुछ और अंदाज में लिखना चाहें तो शुरुआत करें शायरी से.. या फिर किसी कविता की कुछ चुनिंदा पंक्तियों से।तो जनाब अब जबकि आपने अपनी प्रेम कहानी लिखने का मन बना ही लिया है तो फिर हम कहाँ ठहरते हैं। बस उठाइए कागज-कलम और रच दीजिए अपनी प्रेम कहानी....।

उसमें गहराई समंदर की कहाँ

विलास पंडित 'मुसाफ़िर'वो यक़ीनन दर्द अपना पी गयाजो परिन्दा प्यासा रहके जी गया झाँकता था जब बदन मिलती थी भीखक्यूँ मेरा दामन कोई कर सी गया जाने कितने पेट भर जाते मगरबच गया खाना वो सब बासी गयाउसमें गहराई समंदर की कहाँजो मुझे दरिया समझकर पी गयाभौंकने वाले सभी चुप हो गएजब मोहल्ले से मेरे हाथी गयाचहचहाकर सारे पंछी उड़ गएवार जब सैयाद का खाली गयालौटकर बस्ती में फिर आया नहीं बनके लीडर जब से वो दिल्ली गया

ग़ालिब की ग़ज़लें

1. शौक़ हर रंग रक़ीब-ए-सर-ओ-सामाँ निकलाक़ैस तस्वीर के परदे में भी उअरयाँ निकलाज़ख्म ने दाद न दी तंगि-ए-दिल की यारब तीर भी सीना-ए-बिस्मिल से पुरअफ़शाँ निकला
Aziz Ansari
WDबू-ए-गुल, नाला-ए-दिल, दूद-ए-चिराग-ए-मेहफ़िल जो तेरी बज़्म से निकला सो परेशाँ निकला दिल में फिर गिरये ने इक शोर उठाया 'ग़ालिब'आह जो क़तरा न निकला था सो तूफ़ाँ निकला 2. दर्द मिन्नत कश-ए-दवा न हुआमैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआजमअ करते हो क्यों रक़ीबों को इक तमाशा हुआ गिला न हुआ
थी खबर गर्म कि 'ग़ालिब' के उड़ेंगे पुरज़े देखने हम भी गए थे, पर तमाशा न हुआ
है खबर गर्म उनके अने कीआज ही घर में बोरिया न हुआक्या वो नमरूद की खुदाई थी बन्दगी में मेरा भला न हुआ हम कहाँ क़िस्मत आज़माने जाएँतू ही जब खंजर आज़माँ न हुआकितने शीरीं हैं तेरे लब के रक़ीब गालियाँ खा के बेमज़ा न हुआ जान दी, दी हुई उसी की थीहक़ तो ये है कि हक़ अदा न हुआथी खबर गर्म कि 'ग़ालिब' के उड़ेंगे पुरज़े देखने हम भी गए थे, प तमाशा न हुआ 3. ये न थी हमारी क़िस्मत, कि विसाल-ए-यार होताअगर और जीते रहते, यही इंतिज़ार होतातेरे वादे पे जिए हम, तो ये जान झूठ जाना कि खुशी से मर न जाते, अगर ऐतबार होतातेरी नाज़ुकी से जाना, कि बंधा था एह्द-ए-बूदा कभी तू न तोड़ सकता, अगर उस्तवार होताकोई मेरे दिल से पूछे, तेरे तीर-ए-नीम कश को ये खलिश अहा से होती, जो जिगर के पार होताये अहाँ की दोस्ती है, कि बने हैं दोस्त नासेह कोई चारा साज़ होता कोई ग़म गुसार होतारग-ए-संग से टपकता, वो लहू कि फिर न थमताजिसे ग़म समझ रहे हो, ये अगर शरार होताग़म अगरचे जाँ गुसल है, प बचें कहाँ कि दिल हैग़म-ए-इश्क़ गर होता, ग़म-ए-रोज़गार होताकहूँ किससे मैं कि क्या है, शब-ए-ग़म बुरी बला है मुझे क्या बुरा था मरना, अगर एक बार होताहुए मर के हम जो रुसवा, हुए क्यों न ग़र्क़-ए-दरियान कभी जनाज़ा उठता, न कहीं मज़ार होताउसे कौन देख सकता, कि यगाना है वो यकताजो दुई की बू भी होती, यो कहीं दो-चार होताये मसाइल-ए-तसव्वुफ़, ये तेरा बयान 'ग़ालिब' तुझे हम वली समझते जो न बादा ख्वार

इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया

ग़ालिब की सालगिरह पर विशेष
पेशकश : अज़ीज अंसारी ग़ालिब हमें न छेड़ के हम जोश-ए-अश्क*से ---------आँसुओं के बहाव बैठे हैं हम तहैय्या-ए-तूफ़ाँ* किये हुए ------------तूफ़ान उठाने का फ़ैसला होगा कोई ऐसा भी जो ग़ालिब को न जानेशाइर तो वो अच्छा है प बदनाम बहुत है ग़ालिब बुरा न मान जो ज़ाहिद बुरा कहे ऐसा भी कोई है के सब अच्छा कहें जिसे कहाँ मयख़ाने का दरवाज़ा ग़ालिब, और कहाँ वाइज़ पर इतना जानते हैं कल वो जाता था के हम निकले जब तवक़्क़ो*ही उठ गई ग़ालिब --------आस, उम्मीद क्यों किसी का गिला करे कोई सफ़ीना* जब किनारे पे आ लगा ग़ालिब ------ नाव ख़ुदा से क्या सितम-ए-जोर-ए-नाख़ुदा*कहिए ----- नाव चलाने वाले के सितम असद*ख़ुशी से मेरे हाथ पाँव फूल गए ---------- ग़ालिब का नाम कहा जब उसने ज़रा मेरे पाँव दाब तो दे इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब के लगाए न लगे, और बुझाए न बुझे इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया वरना हम भी आदमी थे काम के हुआ है शेह का मुसाहिब*फिरे है इतराता -------बादशाह की संगत में रहने वालावगरना शहर में ग़ालिब की आबरू क्या है हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन दिल के ख़ुश रखने को ग़ालिब ये ख़्याल अच्छा है बेख़ुदी बेसबब नहीं ग़ालिब कुछ तो है जिस की परदा दारी है मैंने माना के कुछ नहीं ग़ालिब मुफ़्त हाथ आए तो बुरा क्या हैकाबा किस मुँह से जाओगे ग़ालिबशर्म तुम को मगर नहीं आतीग़ालिबे-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बन्द हैं रोइये ज़ार ज़ार क्या, कीजिये हाय हाय क्यों ग़ालिब छुटी शराब पर अब भी कभी कभीपीता हूँ रोज़-ए-अब्र व शब-ए-माहताब में ---जिस दिन बादल छाए हों, जिस रात चाँद चमक रहा हो पूछते हैं वो के ग़ालिब कौन है कोई बतलाओ के हम बतलाएँ क्याहम कहाँ के दाना* थे, किस हुनर में यकता* थे----- अकलमंद, माहिर बेसबब हुआ ग़ालिब, दुश्मन आसमाँ अपना रेख़ते* के तुम्ही उस्ताद नहीं हो ग़ालिब ---- उर्दू कहते हैं अगले ज़माने में कोई मीर भी थामैंने मजनूँ पे लड़कपन में असद संग उठाया था के सर याद आया कुछ तो पढ़िए के लोग कहते हैंआज ग़ालिब ग़ज़ल सरा न हुआ ये मसाइल-ए-तसव्वुफ़* ये तेरा बयान ग़ालिब-----भक्तिभाव की बातें तुझे हम वली समझते, जो न बादा ख़्वार*होता--------शराब पीने वाला ये लाश-ए-बेकफ़न असदे-ख़स्ता*जाँ की है -----परेशान ग़ालिब की लाश हक़ मग़फ़िरत*करे अजब आज़ाद मर्द---------गुनाहों को मुआफ़ करे

ज़िन्दगी इश्क मे तबाह हो गई

हम जुदा होंगे उस वक्‍त सोचा न था,जब तुझे देखा था पहले पहल और ,आज जब तुझे देखा तुझे मुमताज़ मेरी,अश्को मे ढ्ल गया मेरे सपनो का ताजमहल.तुम्हे जब मुझ से ज्यादा गैर प्यारें हैं,फिर मेरी याद मे तुम तडपती क्यो हो,तुमने ही पावंदी लगाई है मुलाकातो पर,फिर अब राहें मेरी तुम तकती क्यों हो.मैने पहले पहल जब देखा था तुम्हे,तो मह्सूस हुआ था जिंदगी तुम हो,फिज़ूल भटका फिरा हँ मै आज तक,हकीकत मे तो मेरी बंदगी तुम हो.तुम रहो उदास् यह मै सह नही सकता,मज़बूर हँ इसलिए कुछ भी कह नही सकता,तुमने दामन बचा लिया रस्मे वफा से वरना,मै एक पल भी तुम बिन रह नही सकता.कोई एक तो वादा निभा दिया होता,मेरी वफाओ का कुछ तो सिला दिया होता,तबाह करना था अगर प्यार मे मुझको,खुद अपने हाथो से मुझे मिटा दिया होताकोई गम नही एक तेरी जुदाई के सिवा,मेरे हिस्से मे क्या आया तन्हाई के सिवा,मिलन की रातें मिली, यूँ तो बेशुमार,प्यार मे सबकुछ मिला शहनाई के सिवा.
पत्थर से दिल लगा कर बर्बाद हो गए,दिल शाद था मगर अब नाशाद हो गाए,जिनके वफाओं पर ऐतबार था 'आज़ाद',करके हमे तबाह वह खुद आबाद हो गए।बात मुद्दत के मुस्कुराने की रात आयी है,हर एक वादा निभाने की रात आयी है,वह जो दूर रहा करते थे साये से भी कभी,सीने से उनको लगाने की रात आई हैं.किसी परी की जवानी लगी थी तुम,प्यार की एक कहानी लगी थी तुम,सबूत तूम ही थी कुदरत के नूर का,जीती जागती कोई निशानी लगी थी,ज़िन्दगी हो गई हंसी तुम तो मिल गए मुझे,हर एक पल को सजाने की रात आई है,बरसो तडफाया था 'आज़ाद' को जिसने यारो,आज उसी शोख को तडफाने की रात आई है,तेरे प्यार को, तेरे चाहत तो सलाम,कदमो को तेरे, तेरी आहट को सलाम.जिस प्यार से तुने सवारी जिंदगी मेरी,ऐ मेरे यार तेरी इस इनायत को सलाम.वक्‍त के साथ हालात बदल जाते हैं,अपनो तक के ख्यालात बद्ल जाते हैं,जब बुरा वक्‍त आता है 'प्यारे'खुद अपने ही ज़्ज़बात बदल जाते हैं.

रविवार, 7 फ़रवरी 2010

“ना दिल से होता है
ना दिमाक से होता है
ये प्‍यार तो इतफाक से होता है
और क्‍या कहे प्‍यार करके भी
प्‍यार न मिले ये इतफाक सिर्फ हामारे साथ होता हैं”
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“आंसू पौछकर हंसाया है मुझे
मेरी गलती पर भी सीने से लगाया है मुझे
कैसे प्‍यार न हो ऐसे दोस्‍त से
जिसकी दोस्‍ती ने जीना सिखाया है मुझै ”
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“तु दिल में ना जाये तो मैं क्‍या करू
तु ख्‍यालों से ना जाये तो मैं क्‍या करू
कहते है ख्‍वावों में होगी मुलाकात उनसे
पर नींद न आये तो मैं क्‍या करू ”
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“प्‍यार गुनाह है तो होने ना देना
प्‍यार खुदा है तो खोने ना देना
करते हो प्‍यार जब किसी से तो
कभी उस प्‍यार को रोने ना देना ”
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“बिकता अगर प्‍यार जो कौन नहीं खरीदता
बिकती अगर खुशियां तो कौन उसे बेचता
दर्द अगर बिकता तो हम आपसे खरीद लेते
और आपकी खुशियों के लिए हम खुद को बेच देते”
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“काश खुशियों की कोई दुकान होती
हमें भी उसकी पहचान होती
भर देते आपकी जिन्‍दगी को खुशियों से
किमत चाहे उसकी हमारी जान होती ”
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“कोई ऐसा दोस्‍त बनाया जावे
जिसके आंसू को पलकों में छुपाया जाये
रहे उसका मेरा रिश्‍ता कुछ ऐसा
कि अगर वो उदास हो तो हमसे भी ना मुस्‍कुराया जावें ”
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“जिन्‍दगी की राहों में बहुत से यार मिलेगें
हम क्‍या हमसे भी अच्‍छे हजार मिलेगें
इन अच्‍छों की भीड में हमे ना भूला देना
हम कहॉ आपको बार बार मिलेगें ”
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“दिल में बसता है दिल ए यार
जब चाहा सर झुकाया और कर लिया दिदार
आखों में है आपके प्‍यार का सरूर
आप ही ना जाने हमारा क्‍या कसूर ”
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“आप पास रहे या दूर
हम दिल से दिल की आवाज मिला सकते है
ना खत के, ना टेलिफोन के मौहजात है हम
आपके दिल को एक हिचकी से हिला सकते है हम ”
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“ए दोस्‍त तेरी दोस्‍ती ये नाज करते है
हर बकत मिलने की फरियाद करते है
हमें नही पता घरवाले बताते है
के हम नीदं में भी आपके बात करते हैं ”
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“अपने दिल की सूनी अफवाहों से काम ना ले
मुझै याद रख बेशक मेरा नाम ना ले
तेरा बहम है के मैं भूला दूंगा तुझे
मेरी कोई ऐसी सांस नहीं जो तेरा नाम न ले ”
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“दोस्‍ती से आज प्‍यार शरमाया है
तेरी चाहत ने कुछ ऐसा गजब ढाया है
खुदा से क्‍या तुझे मांगे, वो तो आत खुद
मुझ से मुझ जैसा मांगने आया है ”
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“सांस लेने से तेरी याद आती है
ना लेने से मेरी जान जाती है
कैसे कह दू सिर्फ सॉस से मै जिन्‍दा हू
कम्‍बक्‍त सांस भी तो तेरी याद के बाद आती है ”
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“हंसी ने लबों पर थ्रिकराना छोड दिया
ख्‍बाबों ने सपनों में आना छोड दिया
नहीं आती अब तो हिचकीया भी
शायद आपने भी याद करना छोड’ दिया ”
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“ओस की बूंदे है, आंख में नमी है,
ना उपर आसमां है ना नीचे जमीन है
ये कैसा मोड है जिन्‍दगी का
जो लोग खास है उन्‍की की कमी हैं ”
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“आसुओं के चलनेकी आवाज नहीं होती
दिल के टुटने की आहट नहीं होती
अगर होता खुदा को हर दर्द का अहसास
तो उसे दर्द की आदत ना होती ”
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“ हम दोस्‍ती में हद से गुजर जायेगें
ये जिन्‍दगी आपके नाम कर जायेगें
आप रोया करेगों हमे याद करके
आपके दामन में दतना प्‍यार भर जायेगें”
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“रिश्‍तों की ये दुनिया है निराली
सब रिश्‍तों से प्‍यारी है दोस्‍ती तुम्‍हारी
मंजूर है आंसू भी आखों में हमारे
अगर आ जाये मुस्‍कान होठों पे तुम्‍हारी ”
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“ए पलक तु बन्‍द हो जा,
ख्‍बाबों में उसकी सूरत तो नजर आयेगी
इन्‍तजार तो सुबह दुबारा शुरू होगी
कम से कम रात तो खुशी से कट जायेगी ”
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“बिन देखे तेरी तस्‍वीर बना सकते हैं
बिन मिले तेरा हाल बना सकते है
हमारे प्‍यार में इतना दम है की
तेरे आसूं अपनी ऑख से गिर सकते हैं ”
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“उन्‍हें ये शिकवा हमसे के
हम उन्‍हें याद करते ही नहीं
पर कम्‍बख्‍त उन्‍हे ये कौन समझाये की
हम उन्‍हें याद कैसे करें जिन्‍हे हम भूलते ही नहीं ”
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“अहसास बहुत होगा जब छोड के जायेगें
रायेगें बहुत अगर आसूं नहीं आयेगें
जब साथ ना दे कोई तो आवाज हते देना
आसमां पर भी होगें तो लोट के आयेगें ”
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“आपकों प्‍यार करने से डर लगता है
आपकों खोने से डर लगता है
कहीं आखों से गुम ना हो जाये याद
अब रात में सोने से डर लगता है”
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“यूं तो आपको रोज याद कर लिया करते है
मन ही मन में देख लिया करते है
क्‍या हुआ अगर आप पास नहीं है
हम तो दलि में मूलाकात कर लिया करते हैं ”
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“याद में तेरी आखं भरता है कोई
सांस के साथ तुझे याद करता है कोई
मौत सच्‍चाई है इक रोज सबको आनी है
तेरी जुदाई में हर रोज मरता है कोई ”
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“दीवाने है तेरे नाम के इस बात से इंकार नहीं
कैसे कहे कि तुमसे प्‍यार नहीं
कुछ तो कसूर है आपकी आखों का
हम अकेले तो गुनहगार नहीं ”
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“इतना ना चाहों की भूला ना सके
इतना ना पास आओं की दूर ना जा सकों
तन्‍हाई में बैठकर ये सोचते है हम
कि ना चाहों उसकी जीसे पा ना सको ”

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“जुदाई आपकी रूलाती रहेगी
याद आपकी आती रहेगी
पल पल जान जाती रहेगी
जब तक जिस्‍म में है जान सांस आपसे प्‍यार निभाती रहेगी”
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“भूल में भी किसी को ना रूलाना
जिन्‍दगी में सबकों हॅसाना
दुश्‍मन की भी गले लगाना
फिर भी कोई गम हो तो इस बेब पेज को पढ लेना”
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“दुआवों में इक दुआ हमारी
जिसमें मांगी हमने हर खुशी तुम्‍हारी
जब भी मुस्‍कुराओं दिल से
समझों कबूल दुआ हमारी ”
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“ये दुरियॉ अजीब सी लगती है
अपनी बात हुये मुददत सी लगती है
तुम्‍हारी दोस्‍ती अब जरूरत सी लगती है ”
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“हमारे दिल में छडकन आपकी सुनाई देती है
आखों में सूरत उनकी दिखाई देती है
चलते तो हम है लेकिन
जब मुडते है तो पंरछाई आपकी दखिई देती है”
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“ ना छुपाना कोई बात दिल में हो अगर
रखना थोडा भरोसा तुम हम पर
हम निभायेगें दोस्‍ती का रिश्‍ता इस कदर
कि भूलाने पर भी ना भूला पायेगें हमें जिन्‍दीभर”
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“दोस्‍ती दिल है दिमाक नहीं
दोस्‍ती सोच है आवाज नहीं
कोई आखों से नहीं देख सकता दोस्‍ती के जज्‍बे
क्‍योंकि दोस्‍ती अहसास है अन्‍दाज नहीं”
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“तुझे ही आना मुकद्रदर बनाते है हम
खुदा से पहले तेरे आगे सर झुकाते है हम
दोस्‍ती का रिश्‍ता कभी तोड ना देना
जिस रिश्‍ते के दम पर मुस्‍कुराहते है हम ”
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“खुशी आपके लिये गम मेरे लिय
जिन्‍दगी आपके लिये मौन मेरे लिय
मुस्‍कुराना आपके लिये आंसू मेरे लिये
सब कुछ आपके लिए और आप सिर्फ मेरे लिये ”
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“तेरी दोस्‍ती में इक नशा है
तभी तो ये सारी दुनिया हमसे खफा है
ना करों हमसे इतनी दोस्‍ती
कि दिल ही हमसे पूछे तेरी घडकन कहॅ हैं ”
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“हर कभी तुझसे खुश्‍बू उधार मांगे
आफता तुमसे नूर उधार मांगे
रब करके तु दोस्‍ती ऐसी निभाये
कि लोग मुझसे तेरी दोस्‍ती उधार मांगे”
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“भूलाना तुम्‍हे ना आसान होगा
जो भूले तुम्‍हे वो नादान होगा
आप तो बसते हो रूह में हमारी
बाप हमें ना भूले ये आपका अहसास होगा ”
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“अक्‍सर जब हम आपकों याद करते है
अपने रब से यही फरियाद करते है
अम्र हमारी भी लग जाये आपकों
क्‍योंकि हम आपकों खुद से ज्‍यादा प्‍यार करते है ”
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“न कभी ये छुपाना कि प्‍यार कितना हैं
ना कभी ये जताना की दर्द कितना है
बस एक हमें उस खुदा को है मालूम
कि तूमसे मुलाकात की इन्‍तजार कितना है ”
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“तन्‍हाई में फरियाद तो कर सकते हैं
बीाने का आबाद तो कर सकते है
क्‍या हुआ तुम्‍हे मिल नहीं सकते
लेकिन तुम्‍हे याद तो कर सकते हैं ”
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“आ आ कर तेरा ख्‍याल आये तो में क्‍य करू
रह रह कर तेरी याद आये तो मैं क्‍या करू
यू तो कहते है कि रोज होती है सपनों मूलाकात
मगर नींद ही ना आये ता मैं क्‍या करू ”

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“रूठ कर तुम हमें भूलाने
लगे इतने दूर हो गये की बहुत याद आने लगे
जब भी हमें भूलाने की कोशिश की तुमकों
तुम ख्‍वाबों में आकर हमें सताने लगे”

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“रूठना मत हमें मनाना नहीं आता
दूर मत जाना हमं बुलाना नहीं आत
तुम हमें भूल जाओं तुम्‍हारी मर्जी
मगर हम क्‍या करें हमें तो भुलना भी नहीं आता ”

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“आप से खफा हो कर जायेगे कहा
आप जैसे दोस्‍त जायेगें कहा
दिल को तो कैसे भी समझा लेगें
पर आखों में आसूं छुपायेगें कहा ”

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“माना ये दूनिया हमें भूल चुकी है
पर आप तो कभी याद की लिया करों
माना आपके आस पास सारी दुनिया है
पर कभी हमारी कमी का भी अहसास कर लिया करों ”

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“तारों से कहो टिम टिमाना छोड दे
चॉद से कहो जगमगाना छोड दे
अगर आप आ नहीं सकते
तो आपकी यादों से कहो सताना छोड दे”

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“कलम उठाई है लफज नहीं मिलता
जिसको ढूढ रहे है वा शख्‍स नहीं मिलता
फिरते है वा जमाने के साथ
बस हमारे लिये उन्‍हे वकत नहीं मिलता ”

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“तुम्‍होर शहर का मौसम बडा सुहाना लगे
मै एक शाम चुरा लू अगर बुरा ना लगे
तुम्‍हारे बस में है तो भूल जाओं मुझे
तुम्‍हे भूलाने में मुझे जमाना लगे ”

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“हर राही का मन चाहा मुकाम नही मिलता
जिसकों जी भर प्‍यार कर सके वा इंसान नही मिलता
आसमान के सितारों की तरह हमारे अरमान भी बिखरे से रहते है
जो अपने दिल में हमें जगह दे सके वो मेहमान नहीं मिलता”

पता है तुम जब घर से निकलते हो
तो लड़कियां तुम्हे हसरत से देखती हैं
आहें भरती हैं और सोचती हैं
काश हमारा भी ऐसा ‘भाई’ होता
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दिल की गहरायी ना को नाप पाया
इस दिल में छुपा राज ना कोई जान पाया
कैसे कहें हम किसी को अपना
जो अपना हो कर भी ना अपना हो पाया!
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अपनी हर सांस तेरी गुलाम कर रखी है
लोगों ये जिंदगी बदनाम कर रखी है
आईना भी नहीं अब तो किसी काम का
हमने तो अपनी परछाइ भी तेरे नाम कर रखी है ।
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गिले शिकवे ना दिल से लगा लेना
कभी मान जाना तो कभी मना लेना
कल का क्या पता हम हों ना हों
जब भी मौका मिला
थोड़ा हंस लेना और हंसा देना।
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सिर्फ यादों का एक सिलसिला रह गया
खुदा जाने उससे क्या रिश्ता रह गया
एक चांद खो गया जाने कहां
एक सितारा उसे ढूंढता रह गया।
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कल तक तन्हा थे
आज इंतजार करते हैं
कल तक कुछ ना था
आज ऐतबार करते हैं
यूं ही नहीं आती आपको हिचकियां
हम याद आपको बार बार करते हैं।
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आईना हूं मैं
मेरे सामने आकर देखो
खुद नजर आओगे
आंख मिलाकर देखो
मेरे गम में मेरी तकदीर नजर आयेगी
डगमगा जाओगे मेरे दर्द उठा कर देखो।
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बूंद से मोती मांग लेंगे
चांद से चांदनी मांग लेंगे
अगर तेरी महोब्बत नसीब हुई तो
तेरी महोब्बत की खातिर
खुदा से एक और जिंदगी मांग लेंगे।
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हुस्न अगर बेवफा ना होता
तो दुनिया में आशिकों का नाम नहीं होता
कट गये हाथ उन मजदूरों के
वरना आज हर गली में एक ताजमहल होता

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ना मैसेज ना फोन
ना पिक्चर ना टोन
और बने फिरते हो दुनिया के डोन
जब नंबर लिया था तो कहते थे
कि रोज करेंगे फोन
अब कहते हो कि हम आपके हैं कौन?
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आपकी
एक बात
मुझे
बहुत
पसंद
है।
आप
जब
भी
कोई
काम
करते
हैं
दिल
लगा
के
करते
हैं,
क्योंकि दिमाग तो आपके पास है ही नहीं!!!!

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ये ना सोचो तुम्हें भूल गये हम
याद तुम्हें दिन रात करते हैं
जब भी तुम्हारी याद आती है
“जल तू जलाल तू आई बला को टाल तू”
का जाप करते हैं…..

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एक ऐसी जगह बताओ
जहां अमीर से अमीर ईंसान भी
कटोरी ले कर खड़ा रहता है?
सोचो
?
?
?
?
?
गोलगप्पे वाले के पास….!!
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दिल की किताब कुछ इस तरह बनायी है
हर पन्ने पर आपकी याद समायी है
कहीं फट ना जाये एक भी पन्ना
इसलिये हर पन्ने पर दोस्ती की लेमिनेशन करायी है

आँखों मे मोहब्बत का सितारा

किसी की आँखों मे मोहब्बत का सितारा होगाएक दिन आएगा कि कोई शक्स हमारा होगाकोई जहाँ मेरे लिए मोती भरी सीपियाँ चुनता होगावो किसी और दुनिया का किनारा होगाकाम मुश्किल है मगर जीत ही लूगाँ किसी दिल कोमेरे खुदा का अगर ज़रा भी सहारा होगाकिसी के होने पर मेरी साँसे चलेगींकोई तो होगा जिसके बिना ना मेरा गुज़ारा होगादेखो ये अचानक ऊजाला हो चला,दिल कहता है कि शायद किसी ने धीमे से मेरा नाम पुकारा होगाऔर यहाँ देखो पानी मे चलता एक अन्जान साया,शायद किसी ने दूसरे किनारे पर अपना पैर उतारा होगाकौन रो रहा है रात के सन्नाटे मेशायद मेरे जैसा तन्हाई का कोई मारा होगाअब तो बस उसी किसी एक का इन्तज़ार है,किसी और का ख्याल ना दिल को ग़वारा होगाऐ ज़िन्दगी! अब के ना शामिल करना मेरा नामग़र ये खेल ही दोबारा होगा

SYARI

समझते क्या थे मगर सुनते थे फसानाए-दर्द समझ में आने लगा जब तो फिर सुना न गया -यग़ाना पूछा जो उनसे गैर को चाहूं तो क्या करो बोले कि जाओ चाहो कोई दूसरा भी है - हकीम काशिफ मेरी आंखें और दीदार आप का या कयामत आ गई या ख्वाब है - आसी गाजीपुरी बुत को बुत और खुदा को जो खुदा कहते हैं हम भी देखें कि तुझे देख के क्या कहते हैं - दाग अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएंगे मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएंगे - जौक सितारों के आगे जहां और भी हैं अभी इश्क के इम्तेहां और भी हैं - इकबाल मासूम है मुहब्बत लेकिन उसी के हाथों ये भी हुआ कि मैंने तेरा बुरा भी चाहा - फिराक गोरखपुरी रोग पैदा कर ले कोई जिंदगी के वास्ते सिर्फ सेहत के सहारे जिंदगी कटती नहीं - फिराक गोरखपुरी इश्क कहता है दो आलम से जुदा हो जाओ हुस्न कहता है जिधर जाओ नया आलम है - आसी गाजीपुरी

व्यक्तिगत आजादी का दूसरा नाम है शायरी

प्रतिनिधि, कपूरथला शायरी कोई नारा नहीं है, जिसे हर कोई बुलंद कर ले। शायरी 'पीड़ां दा परागा' है, जिसे भुनाने के लिए आत्मा में अग्नि का होना अनिवार्य है। शायरी सामाजिक कद्रों-कीमतों के खिलाफ बगावत है। शायरी खुद के होने का अहसास है। शायरी व्यक्तिगत आजादी का ही दूसरा नाम है। यह बातें साहित्यिक संस्था सिरजना केंद्र के अध्यक्ष व चर्चित गजल लेखक हरफूल सिंह ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में कहीं। कविता लेखन के लिए कैसा माहौल साजगार होता है? के उत्तर में वह शायराना अंदाज में कहते हैं 'एह वक्खरी गल है कि उड्डण लई अंबर नहीं मिलदा, बड़ा कुछ हर बशर अंदर है पंछी दे परां वरगा'। शायरी और समाज के नाते के बारे में बात करते हुए वह कहते हैं कि समाज एक भीड़ है, जिसकी अपनी कोई सोच नहीं होती, जबकि शायर होने का अर्थ व्यक्तिगत सोच के मालिक होना है। साहित्यिक संस्थाओं के योगदान के बारे में उन्होंने इन संस्थाओं द्वारा साहित्य के प्रचार व प्रसार के लिए किए गए प्रयासों की जहां सराहना की, वहीं संस्थागत राजनीति को साहित्य के लिए खतरा बताया। उन्होंने पंजाबी भाषा व साहित्य के उत्थान द्वारा किए जा रहे प्रयासों को नाकाफी बताया।

sayri

यूं दर्द बांटने चले थे जमाने के साथशायद बढे मदद के लिए अपनी तरफ हाथहम खड़े देखते रहेलोग हंसते रहेजो हमने पूछी वजह तोबताया‘यहां सब सुनाने आते हैं दर्दकोई नहीं बनता किसी का हमदर्दमूंहजुबानी बहुत वादे करने कीहोड़ सभी लोग करतेपर देता कोई नहीं साथबंधे सबके अपनी मजबूरी से हाथ

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

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