रविवार, 7 फ़रवरी 2010

व्यक्तिगत आजादी का दूसरा नाम है शायरी

प्रतिनिधि, कपूरथला शायरी कोई नारा नहीं है, जिसे हर कोई बुलंद कर ले। शायरी 'पीड़ां दा परागा' है, जिसे भुनाने के लिए आत्मा में अग्नि का होना अनिवार्य है। शायरी सामाजिक कद्रों-कीमतों के खिलाफ बगावत है। शायरी खुद के होने का अहसास है। शायरी व्यक्तिगत आजादी का ही दूसरा नाम है। यह बातें साहित्यिक संस्था सिरजना केंद्र के अध्यक्ष व चर्चित गजल लेखक हरफूल सिंह ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में कहीं। कविता लेखन के लिए कैसा माहौल साजगार होता है? के उत्तर में वह शायराना अंदाज में कहते हैं 'एह वक्खरी गल है कि उड्डण लई अंबर नहीं मिलदा, बड़ा कुछ हर बशर अंदर है पंछी दे परां वरगा'। शायरी और समाज के नाते के बारे में बात करते हुए वह कहते हैं कि समाज एक भीड़ है, जिसकी अपनी कोई सोच नहीं होती, जबकि शायर होने का अर्थ व्यक्तिगत सोच के मालिक होना है। साहित्यिक संस्थाओं के योगदान के बारे में उन्होंने इन संस्थाओं द्वारा साहित्य के प्रचार व प्रसार के लिए किए गए प्रयासों की जहां सराहना की, वहीं संस्थागत राजनीति को साहित्य के लिए खतरा बताया। उन्होंने पंजाबी भाषा व साहित्य के उत्थान द्वारा किए जा रहे प्रयासों को नाकाफी बताया।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें