रविवार, 7 फ़रवरी 2010

SYARI

समझते क्या थे मगर सुनते थे फसानाए-दर्द समझ में आने लगा जब तो फिर सुना न गया -यग़ाना पूछा जो उनसे गैर को चाहूं तो क्या करो बोले कि जाओ चाहो कोई दूसरा भी है - हकीम काशिफ मेरी आंखें और दीदार आप का या कयामत आ गई या ख्वाब है - आसी गाजीपुरी बुत को बुत और खुदा को जो खुदा कहते हैं हम भी देखें कि तुझे देख के क्या कहते हैं - दाग अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएंगे मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएंगे - जौक सितारों के आगे जहां और भी हैं अभी इश्क के इम्तेहां और भी हैं - इकबाल मासूम है मुहब्बत लेकिन उसी के हाथों ये भी हुआ कि मैंने तेरा बुरा भी चाहा - फिराक गोरखपुरी रोग पैदा कर ले कोई जिंदगी के वास्ते सिर्फ सेहत के सहारे जिंदगी कटती नहीं - फिराक गोरखपुरी इश्क कहता है दो आलम से जुदा हो जाओ हुस्न कहता है जिधर जाओ नया आलम है - आसी गाजीपुरी

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