शनिवार, 9 फ़रवरी 2013

स्वाइन फ्लू : सावधानियाँ

सामान्य एन्फ्लूएंजा के दौरान रखी जाने वाली सभी सावधानियाँ इस वायरस के संक्रमण के दौरान भी रखी जानी चाहिए। बार-बार अपने हाथों को साबुन या ऐसे सॉल्यूशन से धोना जरूरी होता है जो वायरस का खात्मा कर देते हैं। नाक और मुँह को हमेशा मॉस्क पहन कर ढँकना जरूरी होता है। इसके अलावा जब जरूरत हो तभी आम जगहों पर जाना चाहिए ताकि संक्रमण ना फैल सके। क्या है इलाज : संक्रमण के लक्षण प्रकट होने के दो दिन के अंदर ही एंटीवायरल ड्रग देना जरूरी होता है। इससे एक तो मरीज को राहत मिल जाती है तथा बीमारी की तीव्रता भी कम हो जाती है। तत्काल किसी अस्पताल में मरीज को भर्ती कर दें ताकि पैलिएटिव केअर शुरू हो जाए और तरल पदार्थों की आपूर्ति भी पर्याप्त मात्रा में होती रह सकें। अधिकांश मामलों में एंटीवायरल ड्रग तथा अस्पताल में भर्ती करने पर सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है। स्वाइन फ्लू के लिए असरकारी हर्बल चाय स्वाइन फ्लू की दहशत के बीच एक अच्छी खबर है। आयुर्वेदिक कॉलेज के पंचकर्म विभाग के प्राध्यापक डॉ. हरींद्र मोहन शुक्ला ने ऐसे हर्बल पावडर के बारे में बताया है, जिसे चाय के साथ लेने पर मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी। यह मिश्रित हर्बल पावडर घरों में भी बनाया जा सकता है। डॉ. हरींद्र मोहन शुक्ला ने बताया कि यह कोई नया रिसर्च नहीं है। आयुर्वेद में इस पावडर का उल्लेख है। लौंग, इलायची, सौंठ, हल्दी, दालचीनी, गिलोय, तुलसी, कालीमिर्च व पिप्पली को समान मात्रा में पीसकर चूर्ण तैयार किया जाता है। यह स्वाइन फ्लू ही नहीं, अपितु सभी प्रकार के फ्लू से बचाव के लिए शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने की क्षमता रखता है। इस पावडर को सामान्य चाय में आधा चम्मच मिलाकर, अच्छी तरह उबालकर इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि पावडर मिलाने के बाद चाय काफी स्वादिष्ट हो जाती है। इसे सभी उम्र के व्यक्ति पी सकते हैं। और भी हैं विकल्प : डॉ. शुक्ला ने बताया कि स्वाइन फ्लू के इलाज के लिए आयुर्वेद में और भी विकल्प हैं। मरीज को चिरायता, गुडूचि, अनमूल, सोंठ, हल्दी, कालमेघ, वासा व तुलसी का काढ़ा पीना चाहिए। नीलगिरी के तेल का भाप भी काफी लाभदायक है। इसके अलावा सितोपलादि चूर्ण, त्रिकटु चूर्ण, लक्ष्मीविलास रस, गोदंती, रससिंदूर, श्रृण भस्म आदि स्वाइन फ्लू के इलाज में काफी कारगर है। उन्होंने बताया कि स्वाइन फ्लू कोई नई बीमारी नहीं है। यह एक सामान्य प्रकार के फ्लू के लक्षणों वाला फ्लू है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में एच1एन1 को स्वाइन फ्लू का कारण माना गया है। वातावरण में कई असंख्य वायरस मौजूद हैं, जिनके बारे में डॉक्टरों को कुछ नहीं मालूम है। फलस्वरूप इससे बचाव के लिए नए वैक्सीन व नई दवाई बनाना असंभव नहीं, लेकिन कठिन जरूर है। वात व कफ जिम्मेदार : डॉ. शुक्ला ने बताया कि आयुर्वेद में किसी भी प्रकार के फ्लू का कारण वात व कफ को माना जाता है। बुखार, खाँसी, गले में खराश, शरीर में दर्द व थकावट आदि लक्षण सभी प्रकार के फ्लू में मिलते हैं। स्वाइन फ्लू का लक्षण भी कुछ इसी तरह का होता है। बारिश व ठंड के मौसम में ये वायरस कम प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों के शरीर में प्रवेश कर बीमार कर देते हैं। फ्लू से बचाव के लिए उबला पानी पीना चाहिए। खुली व साफ हवा में रहना, पर्याप्त नींद लेना, शुद्ध शाकाहारी भोजन व प्राणायाम करना चाहिए। छींकते समय मुँह में रुमाल जरूर रखना चाहिए। स्वाइन फ्लू के लिए इंडियन करी भारतीयों को मसालेदार खानपान पसंद करने की एक और बड़ी वजह मिल गई है। रूसी डॉक्टरों का कहना है कि मसालेदार भारतीय करी स्वाइन फ्लू और आम सर्दी जुकाम सरीखी बीमारियों को रोकने में उतनी ही कारगर है, जितनी कि केमिस्ट की दवाएँ। मॉस्को सिटी सैनिटरी ऐंड ऐंटी-एपिडेमिक्स कमिटी के एक अधिकारी के हवाले से आरआईए नोवोस्ती ने बताया कि करी जैसे मसालेदार खाने से आप अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा सकते हैं। कारण कि इनमें इस्तेमाल होने वाली हल्दी, अदरक, लौंग और जीरा चिकित्सकीय प्रभाव लिए होते हैं। करी में पड़ने वाले अन्य मसाले जैसे तेजपान, काली मिर्च, लहसुन, करी पत्ता इन सभी में विलक्षण औषधीय गुण निहित है। दही के साथ घुलकर करी के रूप में इनके गुणों में अधिक वृद्धि हो जाती है, फलस्वरूप ये स्वाइन फ्लू को दूर रखने में कारगर हैं। स्वाइन फ्लू और बुजुर्गों की प्रतिरक्षा क्षमता एच1एन1 वायरस से लड़ने के लिए बुजुर्ग मजबूत शोधकर्ताओं के एक समूह ने आज एक अध्ययन में कहा है कि 60 साल से अधिक उम्र के बुजुर्ग लोगों की नए एच1एन1 इन्फ्लुएंजा के लिए प्रतिरक्षा क्षमता अधिक होती है। दरअसल यह एच1एन1 वायरस के समान है जिसका संक्रमण 1943 से पहले देखा गया था। जापानी, अमेरिकी और डच शोधकर्ताओं के एक समूह ने वायरस ‘हेमाग्लुटिनिन’ की जीन श्रृंखला की तुलना करके परिणाम निकाले। यह एक प्रोटीन है जो 1918 से लेकर अब तक एच1एन1 वायरस के साथ मनुष्यों में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया से संबंधित है। इस समूह में जापान विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी एजेंसी के हिरोशी निशुआरा भी शामिल हैं। पिछले साल जुलाई तक मौजूद 11 देशों के आँकड़ों का इस्तेमाल कर अध्ययन किया गया, जिसे ब्रिटिश प्रकाशन समूह बायोमेड सेंट्रल लि. ने प्रकाशित किया। इसमें यह भी बताया गया है कि नए एच1एन1 संक्रमण के जिन मामलों की पुष्टि हुई है, उनमें से 75 प्रतिशत से अधिक 30 साल तक की उम्र के लोगों में देखे गए। 10 से 19 साल की आयु के लोगों में गंभीर मामले देखे गए और 65 साल से अधिक उम्र के लोगों में केवल तीन प्रतिशत मामले देखे गए।

क्या पोर्न ही है 'असली सेक्स'?

बच्चों या किशोरों का पोर्न वेबसाइट देखना आजकल एक आम बात होती जा रही है। जिसके कई नुकसान हैं और उनके भीतर होने वाला सबसे बड़ा नुकसान है सेक्स को लेकर विकृत नज़रिया पैदा होना। यह एक ऐसी समस्या है जो बड़े होते बच्चों के माता-पिता के लिए सिरदर्द बनती जा रही है। उन्हें ये समझ में नहीं आता कि वो कैसे, कितना और कब अपने बच्चों पर रोक लगाएं। आज जबकि हर बच्चे के पास उसका निजी कम्प्यूटर, इंटरनेट कनेक्शन और स्मार्ट फोन मौजूद हैं तब उन पर इसका असर पड़ना स्वाभाविक है। इस बारे में कोई ठोस आंकडा़ भी मौजूद नहीं है जो ये बता सके कि कितने बच्चे इंटरनेट पर पोर्न देखते हैं। साल 2011 में यूरोप में किए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक नौ से 16 साल की उम्र के एक तिहाई बच्चों ने पोर्न तस्वीरें देख रखीं थी लेकिन उनमें से सिर्फ 11 प्रतिशत ऐसे थे जिन्होंने ये तस्वीरें वेबसाइट पर देखी थीं। जबकि 'यू गॉव' द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार 16-18 साल के बच्चों में से भी एक तिहाई ने पोर्न तस्वीरें मोबाइल फोन पर देखीं थी। पाठ्यक्रम में पोर्न : ब्रिटेन का 'नेशनल एसोसिएशन ऑफ हेड टीचर्स' देश के पाठ्यक्रम में पोर्नोग्राफी के असर को शामिल करना चाहता है, ताकि बच्चों को 10 साल की उम्र से ही सेक्स के बारे में सकारात्मक जानकारी दी जा सके। इसमें उन्हें असुरक्षित और विकृत सेक्स की पहचान करने और उससे बचने के बारे में बताया जाएगा। ऊंची क्लास के बच्चों के लिए पाठ्यक्रम को और विस्तृत करने का भी सुझाव है। सेक्स शिक्षा से संबंधित कानून बनाने वाले सिओन ह्मफ्रेज़ के अनुसार आजकल के बच्चे ऐसी दुनिया में रह रहे हैं जहां सेक्स एक खुला विषय है। ऐसे में ज़रूरी है कि उन्हें ये बताया जाए कि वो ऐसे हालात में किस तरह का व्यवहार करें। मु्ख्य मुद्दा ये है कि इन किशोर बच्चों की आगे की ज़िंदगी उनके आज के व्यवहार पर आधारित होगी। उन्हें ये समझाना बेहद जरूरी है कि पोर्न सामान्य या असल सेक्स-जीवन का हिस्सा नहीं है। कई बार ये किशोर होते बच्चे उस तरह का व्यवहार करने के लिए मजबूर किए जाते हैं जो वो आमतौर पर नहीं करना चाहते और उन्हें ऐसा हम उम्र दोस्तों के दबाव के कारण करना पड़ता है। जो चीज़ पोर्न वोबसाइट पर बार-बार दिखाई जाती है उसे ये बड़े होते बच्चे जिज्ञासावश करना चाहते हैं और उसे ही सही मान लेते हैं। 'प्लिमथ यूनिवर्सिटी' और यूके के 'सेफर इंटरनेट सेंटर' द्वारा 16-24 साल के युवाओं पर किए गए एक सर्वेक्षण में एक तिहाई लोगों ने माना कि पोर्न से उनके आपसी संबंधों पर असर पड़ा है। ब्रिटेन की चाइल्ड-लाइन संस्था के मुताबिक उनके पास यौन क्रिया से संबंधित तस्वीरें देखकर आने वाले डिस्ट्रेस्ड कॉल्स में 34 प्रतिशत का इज़ाफा हुआ है। लेकिन इनमें किसी भी निष्कर्ष को आखिरी नहीं माना जा सकता है। करीब सात हज़ार छात्रों को सेक्स शिक्षा देने वाले वाली चैरिटी संस्था 'फैमिली लाइव्स' की लियोनी हॉज इस बात को मानती हैं कि बच्चों को सेक्स और पोर्न के फर्क के बारे में बताया जाए। वो कहती हैं कि जब 90 प्रतिशत बच्चों के हाथ में स्मार्टफोन उपलब्ध है तब उन्हें ये बताने की ज़रूरत नहीं है कि एक बच्चे का जन्म कैसे होता है? कैसे करें सामना : चैरिटी फैमिली लाइव्स का कहना है कि आजकल काफी कम उम्र के बच्चों को पोर्नोग्राफी उपलब्ध है, ऐसे में ये कहना कि वो इसका डटकर सामना नहीं कर सकते ये ग़लत होगा। संस्था कई तरह के प्रयोग के ज़रिए इन बच्चों को बताती है कि अगर कभी उन्हें इस तरह की अश्लील तस्वीरें या प्रस्ताव भेजा जाए तो वो कैसे इसे अस्वीकार करें। हालांकि नेशनल यूनियन टीचर्स का मानना है कि पोर्नोग्राफी से संबंधित शिक्षा देना, काफी दूर निकल जाना है। ऐसे परेशान किशोरों से बातचीत कर उनकी समस्याएं सुनने वालीं 52 साल की गैलोप कहती हैं कि मेरे पास रोज़ाना ऐसे कई युवाओं के मेल आते हैं जो मुझसे पूछते हैं कि वो तय नहीं कर पाते कि क्या सही है या क्या ग़लत? गैलोप के मुताबिक इन बच्चों को यौन शिक्षा देने के अलावा माता-पिता का अपने बच्चों से इस विषय पर खुलकर बात करना भी बेहद जरूरी है। वो कहती हैं कि मूल बात ये है कि हमें शर्मिंदा नहीं होना चाहिए, न ही ये कहना चाहिए कि ये अच्छी लड़कियों का काम नहीं। बच्चे इस विषय पर बात करना चाहें या नहीं हमें उन्हें इस बारे में जागरूक करते रहना चाहिए। क्योंकि आमतौर पर ये देखा गया है कि मांएं जब अपने बच्चों के कम्प्यूटर पर पोर्न साइट खुला देखती हैं तो परेशान हो जाती हैं। इन हालात में उन्हें समझ नहीं आता कि क्या करें और क्या नहीं। उदाहरण के लिए एक अकेली मां को किशोर बेटे को समझाना मुश्किल हो सकता है और अकेले पिता के लिए किशोर बेटी को समझाना थोड़ा चुनौतीपूर्ण। कई घरों में तो सेक्स के बारे में बात करना भी परंपरा के खिलाफ़ होता है। ऐसे में सबसे कारगर तरीका वो होता है जहां स्कूल और अभिभावक दोनों मिलकर बच्चों को इस बारे जानकारी देते हैं। वैनिसा बारफोर्ड/ नोमिया इक़बाल, बीबीसी संवाददाता

सेक्स को लेकर भारत पागल लोगों का देश

इस देश भारत को बलात्कार की लत है। उसके राष्ट्रीय संस्थान नाकारा हैं। ये प्रतिक्रिया है 'किसइनसासाशान' नाम के एक इंटरनेट यूजर्स की, भारत की राजधानी दिल्ली में एक चीनी महिला के बलात्कार पर। चीनी इंटरनेट यूजर्स और कुछ मीडिया के हल्कों में भी प्रतिक्रिया इससे अलग नहीं है। इस मामले पर रोष और गुस्सा बहुत तीव्र है क्योंकि यह घटना ऐसे समय में हुई है जब दिल्ली सामूहिक बलात्कार कांड के बाद सरकार महिलाओं के खिलाफ अपराधों को रोकने के वादे कर रही है। 'चुन्शियान' नाम के एक अन्य इंटरनेट यूजर ने लिखा है कि मेरा मानना था कि भारत सुंदर है, लोकतांत्रिक है और मुक्त देश है, लेकिन चलती बस में एक लड़की से बलात्कार के बाद मुझे लगता है कि ये घिनौना देश है। भारत न जाने की हिदायत : चीन की सबसे लोकप्रिय समाचार वेबसाइटों में से एक सिना ने अपने बहुत से पाठकों की प्रतिक्रिया को प्रकाशित किया है। एक पाठक ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है, बहुत नाराज हूं। बहुत ही ज्यादा। भारतीय लोग सेक्स के पीछे कितने पागल हैं। ऐसे में विदेश में चीनी महिला की सुरक्षा को कैसे सुरक्षित किया जा सकता है। ग्लोबल टाइम्स, शिन्हुआ और सीसीटीवी जैसे चीन के कई बड़े मीडिया संस्थानों ने दिल्ली में चीनी महिला से बलात्कार की खबर को अपने यहां जगह दी है। सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने अपनी खबर में इस सरकारी निर्देश को प्रमुखता दी है जिसमें चीनी महिलों को भारत न जाने की हिदायत दी गई है। प्रभावशाली सरकारी अखबार 'ग्लोबल टाइम्स' का कहना है कि दिल्ली दुनिया की बलात्कार की राजधानी बनती जा रही है। चीन के सरकारी टीवी सीसीटीवी ने इस खबर को प्रसारित किया है। चीन के सरकारी प्रसारक ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है कि भारत में चीनी दूतावास ने भी इस घटना पर नाराजगी जताई है। दूतावास ने अपने सभी नागरिकों और खासकर महिलाओं को चौकन्ना रहने को कहा है दूतावास ने इस मामले की तेजी से जांच कर दोषियों को सजा देने की अपील की है।

वेलेंटाइन-डे और रोमन उत्सव

प्राचीन रोमन त्योहार लूपरकेलिया * वेलेंटाइन-डे का मूल रूप प्राचीन रोमन त्योहार 'लूपरकेलिया' से भी माना जाता है। * प्राचीन रोम में 14 फरवरी को भेड़ियों से रक्षा के लिए 'लूपरकेलिया' उत्सव मनाया जाता था। इस उत्सव में युवतियां लोगों को पशुओं की खाल से पीटती थीं। वहीं महिलाओं में यह विश्वास था कि इस पिटाई से उर्वरता बढ़ती है। * रोमन सेना ने 43 ईस्वी पूर्व में ब्रिटेन पर चढ़ाई की और ब्रिटिश समाज में रोमन उत्सवों और रस्मों का चलन बढ़ा। * कई विद्वान 'लूपरकेलिया' उत्सव को वेलेंटाइन-डे के साथ जोड़ते हैं। उनकी आस्था और तिथियों की समानता भी यही संकेत देती है। * अंगरेजों का काव्यात्मक मिथक है कि 14 फरवरी को चिड़िया जोड़े बनाती है। * वेलेंटाइन-डे पर प्रेमी-प्रेमिकाओं के युगल होने का जिक्र अंगरेज कवि ज्यॉफ्री चाऊसर की कविता में मिलता है।