शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

'शादी बचा सकती है कैंसर से'

एक नए शोध के अनुसार विवाहित लोगों में कैंसर का सामना करने की संभावना अधिक होती है जबकि ऐसे लोगों के लिए कैंसर से बचना मुश्किल हो सकता है जिनकी शादी टूटने की स्थिति में है। अमेरिका के इंडियाना विश्वविद्यालय ने 1973 से 2004 के बीच 38 लाख कैंसर रोगियों के आँकड़ों का अध्ययन करने के बाद ये निष्कर्ष निकाला है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि शादीशुदा कैंसर रोगियों के लिए रोग होने के बाद पाँच साल तक जीवित रह पाने की संभावना 63 प्रतिशत होती है। लेकिन इसकी तुलना में ऐसे विवाहित लोगों के कैंसर से पाँच साल तक लड़ पाने की संभावना 45 प्रतिशत होती है जिनकी शादी टूटने के कगार पर है।
विज्ञान जर्नल कैंसर में प्रकाशित होनेवाली शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि संभवतः शादी टूटने के तनाव के कारण रोगियों के कैंसर से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है।
इसके पूर्व भी शादी और स्वास्थ्य को लेकर अध्ययन किए गए हैं। इनमें कई अध्ययनों में पाया गया है कि जीवनसंगी का प्रेम और साथ रोग से लड़ने के लिए बहुत आवश्यक होता है।
शोध : शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के दौरान विवाहित, अविवाहित, विधवा-विधुर, तलाकशुदा और शादी टूटने की स्थिति वाले कैंसर रोगियों के बारे में अध्ययन किया और ये पता लगाने का प्रयास किया कि इनमें से कितने लोग कैंसर के बाद पाँच से 10 साल तक जीवित रह पाते हैं।
उन्होंने पाया कि विवाहित और अविवाहित रोगियों के कैंसर से लड़ पाने की संभावना सबसे अधिक रही। उनके बाद तलाकशुदा और विधवा-विधुर रोगियों का स्थान आता है।
इस शोध की मुख्य वैज्ञानिक डॉक्टर ग्वेन स्प्रेन ने कहा कि इस अध्ययन से ये पता चलता है कि कैंसर रोगियों में ऐसे लोगों पर सबसे अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए जिनकी शादी टूटने वाली है।
उन्होंने कहा, 'इलाज के दौरान रिश्तों के कारण होनेवाले तनाव की पहचान करने से चिकित्सक और पहले हस्तक्षेप कर सकेंगे जिससे कि रोगियों के बचने की संभावना बेहतर हो सकती है।' मगर उन्होंने कहा कि इस दिशा में और अध्ययन किए जाने की आवश्यकता है।
ब्रिटेन की संस्था कैंसर रिसर्च के प्रमुख सूचना अधिकारी ने भी कहा है कि इस शोध के निष्कर्ष को अंतिम निष्कर्ष नहीं समझा जाना चाहिए और शादी टूटने की स्थिति वाले रोगियों के कैंसर से लड़ पाने की क्षमता कम होने के और भी कई कारण हो
सकते हैं।
25 अगस्त 2009

'भारत में 11 करोड़ और गरीब'

भारत सरकार की एक समिति के आँकड़ों के अनुसार भारत मे गरीबी रेखाGet Fabulous Photos of Rekha के नीचे गुजर-बसर करने वालों की संख्या में 10 प्रतिशत की बढोत्तरी हुई है। ये नए आँकड़े एसडी तेंडुलकर की अध्यक्षता में बनी एक समिति ने दिए हैं।
इस समिति की रिपोर्ट को मानें तो पहले से गरीबी रेखा के नीचे जी रही आबादी में 11 करोड़ लोग और जुड़ गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की कुल आबादी का कम से कम 38 प्रतिशत हिस्सा गरीबी रेखा के नीचे का जीवन जीता है।
हालाँकि इस रिपोर्ट को अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन इस रिपोर्ट के आँकड़ों का जिक्र खाद्य सुरक्षा विधेयक को तैयार करने के लिए दिए गए पृष्ठभूमि दस्तावेजों में किया गया है।
इन नए आँकड़ों पर पहुँचने के लिए तेंडुलकर समिति ने नई प्रणाली का इस्तेमाल किया है। इस विधि के तहत शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता जैसे मानक प्रयोग किए गए हैं।
योजना आयोग से जुड़े एक अधिकारी के अनुसार गरीबी के नए आँकड़ों का पता लगाने वाली नई विधि काफी जटिल है। उनके अनुसार इस विधि में पहले की चिंताओं और शंकाओं का निदान करने का प्रयास किया गया है।
खर्च : नए आँकड़ों का मतलब ये हुआ कि भारत सरकार को इस तबके को खाद्य सुरक्षा पर ज्यादा पैसा खर्च करना होगा। पिछले चार साल में सरकार ने गरीबी उन्मूलन से जुड़ी अपनी कुछ योजनाओं पर एक करोड़ 51 लाख 460 करोड़ रुपए खर्च किया है और आने वाले समय में ये खर्च और बढ़ेगा।
तेंडुलकर समिति के हिसाब से सरकार को खाद्य अनुदान पर नौ हजार 500 करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च करने होंगे। भारत मे गरीबी के आँकड़े और इन आँकड़ों को जुटाने की विधि को लेकर विवाद रहा है।
इसी साल जून में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की एक समिति की रिपोर्ट के अनुसार भारत में आधी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीती है। वर्ष 2007 में बनी अर्जुन सेनगुप्ता रिपोर्ट में ये आँकड़ा 77 प्रतिशत बताया गया था।
जबकि इसी साल जून में बनी ग्रामीण विकास मंत्रालय की एनसी सक्सेना समिति ने कहा था कि भारत की आधी आबादी गरीबी रेखा के नीचे रहती है।

'झुग्गियों में रहती है आधी दिल्ली'

दिल्ली की आधी आबादी झुग्गी झोपड़ियाँ और अनधिकृत कॉलानियों में रहती है। ये बात दिल्ली नगर निगम ने सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में कही है।
दिल्ली नगर निगम का कहना है कि दिल्ली की 49 फीसदी आबादी झुग्गी बस्तियों, अनधिकृत कॉलोनियों और 860 झुग्गी- झोपड़ी क्लस्टर में रहती है।
नगर निगम का कहना है कि लगभग 20 हजार झुग्गियाँ हैं और हर झुग्गी में औसतन पाँच लोग रहते हैं। इसके अलावा अनधिकृत कॉलोनियों में भी बड़ी संख्या में लोग रहते हैं।
दिल्ली उत्तर भारत का प्रमुख व्यापारिक केंद्र है और ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है जो यहाँ आते-जाते रहते हैं। एमसीडी ने माना है कि इन इलाकों में कूड़े को इकट्ठा करने, उसे ले जाने और ठिकाने लगाने का कोई व्यवस्थित इंतजाम नहीं है।
हलफनामे में कहा गया है कि एक अनुमान के अनुसार दिल्ली की केवल पाँच फीसदी आबादी योजनाबद्ध और विकसित क्षेत्र में रहती है।
माना जाता है कि दिल्ली की आबादी लगभग डेढ़ करोड़ है और अगर दिल्ली नगर निगम के हिसाब से देखा जाए तो इसमें से लगभग 70 लाख लोग झुग्गियों और अनधिकृत बस्तियों में रहते हैं। यानि केवल साढ़े सात लाख लोग दिल्ली की सारी व्यवस्थाओं का लाभ उठा पाते हैं।
कचरा बना समस्या : नगर निगम ने माना है कि दिल्ली में कचरे को ठिकाने लगाना भी बड़ी समस्या है।
हलफनामे में कहा गया है कि पूर्वी दिल्ली में गाजीपुर, उत्तरी दिल्ली में करनाल रोड और दक्षिणी दिल्ली में आनंदमई रोड स्थित ठोस कचरा ठिकाने लगाने वाले स्थल लगभग भर चुके हैं और यहाँ भारी कठिनाई पेश आ रही है।
नगर निगम का कहना है कि और स्थान न होने के कारण अब भी इन स्थानों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि हाल में उद्योग और वाणिज्य संगठन फिक्की ने एक अध्ययन किया था जिसके अनुसार भारत के सभी शहरों में दिल्ली सबसे ज्यदा ठोस कचरा पैदा करता है।
सबसे बड़ी चिंता ये है कि ठोस कचरे को ठिकाना लगाने का तरीका बहुत ही पुराना है जिससे गंदगी और प्रदूषण और बढ़ने का खतरा है। फिक्की के अनुसार दिल्ली में हर दिन 6800 टन ठोस कचरा पैदा होता है।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली में तीन एजेंसियाँ काम करती हैं जिनमें नगर निगम, नई दिल्ली नगरपालिका और दिल्ली छावनी बोर्ड शामिल है। लेकिन सबसे अधिक क्षेत्र लगभग 1400 वर्ग किलोमीटर दिल्ली नगर निगम के अंतर्गत आता है।
दिल्ली नगर पालिका और दिल्ली छावनी बोर्ड के अधीन केवल 42 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र आता है।

गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

Deepak kumar (Sub Editor)


Name: Deepak kumar (Sub Editor)
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Mohd.Riyaz (Reporter)


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रविवार, 25 अप्रैल 2010

भारत

भारत गणराज्य, पौराणिक जम्बूद्वीप, दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। भारत का भौगोलिक फैलाव ८० ४' से ३७० ६' उत्तरी अक्षांश तक तथा ६८० ७' से ९७० २५'पूर्वी देशान्तर तक है। भारत का विस्तार उत्तर से दक्षिण तक कि. मी. और पूर्व से पश्चिम तक २,९३३ कि. मी. हैं। भारत की समुद्र तट रेखा ७५१६.६ किलोमीटर लम्बी है। भारत, भौगोलिक दृष्टि से विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा और जनसँख्या के दृष्टिकोण से दूसरा बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर-पूर्व में चीन, नेपाल, और भूटान और पूर्व में बांग्लादेश और म्यांमार देश स्थित हैं। हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व में इंडोनेशिया है। भारत उत्तर-पश्चिम में अफ़गानिस्तान के साथ सीमा का दावा करता है। इसके उत्तर में हिमालय पर्वत है और दक्षिण में हिन्द महासागर है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर है। भारत में कई बड़ी नदियाँ है। गंगा नदी भारतीय सभ्यता में अत्यंत पवित्र मानी जाती है। अन्य बड़ी नदियाँ सिन्धु, नर्मदा, [ब्रह्मपुत्र]], यमुना, गोदावरी, कावेरी, कृष्णा, चम्बल, सतलज, ब्यास हैं।

यह विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहाँ ३०० से अधिक भाषाएँ बोली जाती है । यह कई प्राचीन सभ्यता की भूमि रहा है। यह विश्व की कुछ प्राचीनतम सभ्यताओं का पालना रहा है जैसे - सिन्धु घाटी सभ्यता, और महत्वपूर्ण ऐतिहासिक व्यापार पथों का अभिन्न अंग है। विश्व के चार प्रमुख धर्म : सनातन-हिन्दू, बौद्ध, जैन तथा सिख भारत में जन्में और विकसित हुए।

भारत विश्व की दसवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, किन्तु हाल में भारत ने बहुत प्रगति की है, और ताज़ा स्थिति में भारत विश्व में तीसरे, चौथे स्थान पर होने का दावा करता है। भारत भौगोलिक क्षेत्रफल के आधार पर विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा राष्ट्र है। भारत की राजधानी नई दिल्ली है। भारत के अन्य बड़े महानगर मुम्बई (बम्बई), कोलकाता (कलकत्ता) और चेन्नई (मद्रास) हैं। १९४७ में स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व ब्रिटिश भारत के रूप में ब्रिटिश साम्राज्य के प्रमुख अंग भारत ने विगत २० वर्ष में सार्थक प्रगति की है, विशेष रूप से आर्थिक और भारतीय सेना एक क्षेत्रीय शक्ति और विश्वव्यापक शक्ति है।
नामोत्पत्ति
भारत नाम की उत्पत्ति
भारत के दो आधिकारिक नाम हैं हिन्दी में भारत और अंग्रेज़ी में इन्डिया (India)। इन्डिया नाम की उत्पत्ति सिन्धु नदी के फारसी नाम से हुई है। भारत नाम, एक प्राचीन हिन्दू राजा भरत, जिनकी कथा महाभारत में है, के नाम से लिया गया है। भारत[भा + रत] नाम का मतलब हे आन्तरिक प्रकाश या विदेक-रूपी प्रकाश मे लीन। एक तीसरा नाम हिन्दुस्तान जिसकी उत्पत्ति फारसी भाषा से हुई है जिसका अर्थ हिन्द(हिन्दू नही) की भूमि होता है और यह नाम मुगल काल से प्रयोग होता है यद्यपि इसका समकालीन उपयोग कम और प्रायः उत्तरी भारत के लिए होता है। इसके अतिरिक्त भारतवर्ष को वैदिक काल से आर्यावर्त जम्बूद्वीप और अजनाभदेश के नाम से भी जाना जाता रहा है | बहुत पहले यह देश सोने की चिडिया जाना जाता था|

इतिहास
भारतीय इतिहास
तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक द्वारा बनाया गया मध्य प्रदेश में साँची का स्तूपपाषाण युग भीमबेटका मध्य प्रदेश की गुफाएँ भारत में मानव जीवन का प्राचीनतम प्रमाण है। प्रथम स्थाई बस्तियों ने ९००० वर्ष पूर्व स्वरुप लिया। यही आगे चल कर सिन्धु घाटी सभ्यता में विकसित हुई, जो २६०० ईसापूर्व और १९०० ईसापूर्व के मध्य अपने चरम पर थी। लगभग १६०० ईसापूर्व आर्य भारत आए और उत्तर भारतीय क्षेत्रों में वैदिक सभ्यता का सूत्रपात किया। इस सभ्यता के स्रोत वेद और पुराण हैं। किन्तु आर्य आक्रमण सिद्धांत अभी विवादित है। कुछ विद्वानों की मान्यता यह है कि आर्य भारतवर्ष के स्थायी निवासी रहे है तथा वैदिक इतिहास करीब ७५००० वर्ष प्राचीन है। इसी समय दक्षिण भारत में द्रविड़ सभ्यता का विकास होता रहा। दोनों जातियों ने एक दूसरे की खूबियों को अपनाते हुए भारत में एक मिश्रित संस्कृति का निर्माण किया।

५०० ईसवी पूर्व कॆ बाद कई स्वतंत्र राज्य बन गए। भारत के प्रारम्भिक राजवंशों में उत्तर भारत का मौर्य राजवंश उल्लेखनीय है जिसके प्रतापी सम्राट अशोक का विश्व इतिहास में विशेष स्थान है। १८० ईसवी के आरम्भ से मध्य एशिया से कई आक्रमण हुए, जिनके परिणामस्वरूप उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में यूनानी, शक, पार्थी और अंततः कुषाण राजवंश स्थापित हुए। तीसरी शताब्दी के आगे का समय जब भारत पर गुप्त वंश का शासन था, भारत का "स्वर्णिम काल" कहलाया।" दक्षिण भारत में भिन्न-भिन्न समयकाल में कई राजवंश चालुक्य, चेर, चोल, पल्लव तथा पांड्य चले । ईसा के आसपास संगम साहित्य अपने चरम पर था जिसमें तमिळ भाषा का परिवर्धन हुआ । सातवाहनों और चालुक्यों ने मध्य भारत में अपना वर्चस्व स्थापित किया । विज्ञान, कला, साहित्य, गणित, खगोल शास्त्र, प्राचीन प्रौद्योगिकी, धर्म, तथा दर्शन इन्हीं राजाओं के शासनकाल में फ़ले-फ़ूले ।

१२वीं शताब्दी के प्रारंभ में, भारत पर इस्लामी आक्रमणों के पश्चात, उत्तरी व केन्द्रीय भारत का अधिकांश भाग दिल्ली सल्तनत के शासनाधीन हो गया; और बाद में, अधिकांश उपमहाद्वीप मुगल वंश के अधीन। दक्षिण भारत में विजयनगर साम्राज्य शक्तिशाली निकला। हालाँकि, विशेषतः तुलनात्मक रूप से, संरक्षित दक्षिण में अनेक राज्य शेष रहे अथवा अस्तित्व में आये। मुगलों के संक्षिप्त अधिकार के बाद सत्रहवीं सदी में दक्षिण और मध्य भारत में मराठों का उत्कर्ष हुआ। उत्तर पश्चिम में सिक्खों की शक्ति में वृद्धि हुई।

१७वीं शताब्दी के मध्यकाल में पुर्तगाल, डच, फ्रांस, ब्रिटेन सहित अनेकों यूरोपीय देशों, जो भारत से व्यापार करने के इच्छुक थे, उन्होनें देश की शासकीय अराजकता का लाभ प्राप्त किया। अंग्रेज दूसरे देशों से व्यापार के इच्छुक लोगों को रोकने में सफल रहे और १८४० तक लगभग संपूर्ण देश पर शासन करने में सफल हुए। १८५७ में ब्रिटिश इस्ट इंडिया कम्पनी के विरुद्ध असफल विद्रोह, जो कि भारतीय स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम से जाना जाता है, के बाद भारत का अधिकांश भाग सीधे अंग्रेजी शासन के प्रशासनिक नियंत्रण में आ गया।

कोणार्क चक्र - १३वीं शताब्दी में बने उड़ीसा के सूर्य मन्दिर में स्थित, यह दुनिया के सब से प्रसिद्घ ऐतिहासिक स्थानों में से एक है।बीसवी सदी के प्रारम्भ मे आधुनिक शिक्षा के प्रसार और विश्वपटल पर बदलती राजनीतिक परिस्थितियो के चलते भारत मे एक बौद्धिक आन्दोलन का सूत्रपात हुआ जिसने सामाजिक और राजनीतिक स्तरो पर अनेक परिवर्तनों एवम आन्दोलनो की नीव रखी। १८८५ मे काँग्रेस पार्टी की स्थापना ने स्वतन्त्रता आन्दोलन को एक औपचारिक स्वरूप दिया। बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में एक लम्बे समय तक स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये विशाल अहिंसावादी संघर्ष चला, जिसका नेतृत्‍व महात्मा गांधी, जो कि आधिकारिक रुप से आधुनिक भारत के राष्ट्रपिता से संबोधित किये जाते हैं, ने किया। इसके साथ-साथ चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, सुख देव, राजगुरू, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, वीर सावरकर आदि के नेतृत्‍व मे चले क्रांतिकारी संघर्ष के फलस्वरुप १५ अगस्त, १९४७ भारत ने अंग्रेजी शासन से पूर्णतः स्वतंत्रता प्राप्त की। तदुपरान्त २६ जनवरी, १९५० को भारत एक गणराज्य बना।

एक बहुजातीय तथा बहुधार्मिक राष्ट्र होने के कारण भारत को समय-समय पर साम्प्रदायिक तथा जातीय विद्वेष का शिकार होना पड़ा है। क्षेत्रीय असंतोष तथा विद्रोह भी हालाँकि देश के अलग-अलग हिस्सों में होते रहे हैं, पर इसकी धर्मनिरपेक्षता तथा जनतांत्रिकता, केवल १९७५-७७ को छोड़, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी थी, अक्षुण्ण रही है।

भारत के पड़ोसी राष्ट्रों के साथ अनसुलझे सीमा विवाद हैं। इसके कारण इसे छोटे पैमानों पर युद्ध का भी सामना करना पड़ा है। १९६२ में चीन के साथ, तथा १९४७, १९६५, १९७१ एवम् १९९९ में पाकिस्तान के साथ लड़ाइयाँ हो चुकी हैं।

भारत गुटनिरपेक्ष आन्दोलन तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के संस्थापक सदस्य देशों में से एक है।

१९७४ में भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था जिसके बाद १९९८ में ५ और परीक्षण किये गये। १९९० के दशक में किये गये आर्थिक सुधारीकरण की बदौलत आज देश सबसे तेज़ी से विकासशील राष्ट्रों की सूची में आ गया है।

सरकार
भारत सरकार
भारत के राष्ट्रीय प्रतीक
ध्वज तिरंग
राष्ट्रीय चिह्न अशोक की लाट
राष्ट्र-गान जन गण मन
राष्ट्र-गीत वंदे मातरम्
पशु बाघ
जलीय जीव गंगा डाल्फिन
पक्षी मोर
पुष्प कमल
वृक्ष बरगद
फल आम
खेल मैदानी हॉकी
कलेंडर शक संवत
भारत का संविधान भारत को एक सार्वभौमिक, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक गणराज्य की उपाधि देता है। भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है, जिसका द्विसदनात्मक संसद वेस्टमिन्स्टर शैली के संसदीय प्रणाली द्वारा संचालित है। इसके शासन में तीन मुख्य अंग हैं: न्यायपालिका, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका।

राष्ट्रपति,जो कि राष्ट्र का प्रमुख है, की भूमिका अधिकतर आनुष्ठानिक ही है। उसके कार्यों में संविधान का अभिव्यक्तिकरण, प्रस्तावित कानूनों (विधेयक) पर अपनी सहमति देना, और अध्यादेश जारी करना। वह भारतीय सेनाओं का मुख्य सेनापति भी है। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को एक अप्रत्यक्ष मतदान विधि द्वारा ५ वर्षों के लिये चुना जाता है। प्रधानमन्त्री सरकार का प्रमुख है और कार्यपालिका की सारी शक्तियाँ उसी के पास होती हैं। इसका चुनाव राजनैतिक पार्टियों या गठबन्धन के द्वारा प्रत्यक्ष विधि से संसद में बहुमत प्राप्त करने पर होता है। बहुमत बने रहने की स्थिति में इसका कार्यकाल ५ वर्षों का होता है। संविधान में किसी उप-प्रधानमंत्री का प्रावधान नहीं है पर समय-समय पर इसमें फेरबदल होता रहा है।

व्यवस्थापिका संसद को कहते हैं जिसके दो सदन हैं - उच्चसदन राज्यसभा, अथवा राज्यपरिषद्, और निम्नसदन लोकसभा. राज्यसभा में 245सदस्य होते हैं जबकि लोकसभा में 552। राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव, अप्रत्यक्ष विधि से 6 वर्षों के लिये होता है, जबकि लोकसभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष विधि से, 5वर्षों की अवधि के लिये। १८ वर्ष से अधिक उम्र के सभी भारतीय नागरिक मतदान कर सकते हैं।

कार्यपालिका के तीन अंग हैं - राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और मंत्रिमंडल। मंत्रिमंडल का प्रमुख प्रधानमंत्री होता है। मंत्रिमंडल के प्रत्येक मंत्री को संसद का सदस्य होना अनिवार्य है। कार्यपालिका, व्यवस्थापिका से नीचे होता है।

भारत की स्वतंत्र न्यायपालिका का शीर्ष सर्वोच्च न्यायालय है, जिसका प्रधान प्रधान न्यायाधीश होता है। सर्वोच्च न्यायालय को अपने नये मामलों तथा उच्च न्यायालयों के विवादों, दोनो को देखने का अधिकार है। भारत में २१ उच्च न्यायालय हैं, जिनके अधिकार और उत्तरदायित्व सर्वोच्च न्यायालय की अपेक्षा सीमित हैं। न्यायपालिका और व्यवस्थापिका के परस्पर मतभेद या विवाद का सुलह राष्ट्रपति करता है।

राजनीति
भारत की राजनीति

भारत का संसद भवन।स्वतंत्र भारत के इतिहास में उसकी सरकार मुख्य रूप से भारतीय राष्ट्रीय कान्ग्रेस पार्टी के हाथ में रही है। स्वतंत्रतापूर्व भारत में सबसे बडे़ राजनीतिक संगठन होने के कारण काँग्रेस की, जिसका नेता मूल रूप से नेहरू - गाँधी परिवार का कोई न कोई सदस्य होता है, चालीस वर्षों तक राष्ट्रीय राजनीति में प्रमुख भूमिका रही। १९७७ में, पूर्व काँग्रेस शासन की इंदिरा गाँधी के आपातकाल लगाने के बाद एक संगठित विपक्ष जनता पार्टी ने चुनाव जीता और उसने अत्यधिक छोटी अवधि के लिये एक गैर-काँग्रेसी सरकार बनाई।

१९९६ में, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), सबसे बड़े राजनीतिक संगठन के रूप में उभरी और उसने काँग्रेस के आगे इतिहास में पहली बार एक ठोस विपक्ष प्रस्तुत किया। परन्तु आगे चलकर सत्ता वास्तविक रूप से दो गठबन्धन सरकारों के हाथ में रही जिन्हें काँग्रेस का सम्पूर्ण समर्थन था। १९९९ में, भाजपा ने छोटे दलों को साथ लेकर राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन (राजग) बनाया और ५ वर्षों तक कार्यकाल पूरा करने वाली वह पहली गैर-काँग्रेसी सरकार बनी। १९९९ से पूर्व का दशक अल्पावधि सरकारों का था, इन वर्षों में सात भिन्न सरकारें बनी। परन्तु १९९१ मे बनी राजग सरकार ने अपना ५ वर्ष का कार्यकाल पूरा किया और कई आर्थिक सुधार लाई।

भारतीय आम चुनाव २००४ के फ़लस्वरूप काँग्रेस दल ने सर्वाधिक सीटें जीतीं और वह बड़े ही कम बहुमत से सत्ता में वापस आई। काँग्रेस ने गठजोड़ द्वारा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और बहुत सी राज्य स्तरीय पार्टियों को साथ लेकर यूनाईटेड प्रोग्रेसिव अलायन्स (यूपीए) नामक सरकार बनाई। आज बीजेपी और उसके सहयोगी विपक्ष में मुख्य भूमिका निभाते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर किसी विशेष पार्टी का दबदबा न होने और राज्य स्तर की कई पार्टियों के राष्ट्रीय स्तर पर उभरने के कारण १९९६ से बनी सभी सरकारों को राजनीतिक गठबन्धनों की आवश्यक्ता पड़ी है।

राज्य और केन्द्रशासित प्रदेश
भारत के राज्य
वर्तमान में भारत २८ राज्यों, ७ केन्द्रशासित प्रदेशों मे बँटा हुआ है। राज्यों की चुनी हुई स्वतंत्र सरकारें हैं जबकि केन्द्रशासित प्रदेशों पर केन्द्र द्वारा नियुक्त प्रबंधन शासन करता है, हालाँकि पॉण्डिचेरी और दिल्ली की लोकतांत्रिक सरकार भी है।

अन्टार्कटिका और दक्षिण गंगोत्री और मैत्री पर भी भारत के वैज्ञानिक स्थल हैं यद्यपि अभी तक कोई वास्तविक आधिपत्य स्थापित नहीं किया गया है।

राज्यों के नाम निम्नवत है (कोष्टक में राजधानी का नाम)

भारत - राज्य एवं केन्द्र शासित प्रदेश।
अरुणाचल प्रदेश (इटानगर)
असम (दिसपुर)
उत्तर प्रदेश (लखनऊ)
उत्तराखण्ड (देहरादून)
ओडिशा (भुवनेश्वर)
आंध्र प्रदेश (हैदराबाद)
कर्नाटक (बंगलोर)
केरल (तिरुवनंतपुरम)
गोआ (पणजी)
गुजरात (गांधीनगर)
छत्तीसगढ़ (रायपुर)
जम्मू और कश्मीर (श्रीनगर/जम्मू)
झारखंड (रांची)
तमिलनाडु (चेन्नई)
त्रिपुरा (अगरतला)
नागालैंड (कोहिमा)
पश्चिम बंगाल (कोलकाता)
पंजाब (चंडीगढ़†)
बिहार (पटना)
मणिपुर (इम्फाल)
मध्य प्रदेश (भोपाल)
महाराष्ट्र (मुंबई)
मिज़ोरम (आइजोल)
मेघालय (शिलांग)
राजस्थान (जयपुर)
सिक्किम (गंगटोक)
हरियाणा (चंडीगढ़†)
हिमाचल प्रदेश (शिमला)

केन्द्रशासित प्रदेश
अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह(पोर्ट ब्लेयर)
चंडीगढ़†* (चंडीगढ़)
दमन और दीव* (दमन)
दादरा और नागर हवेली* (सिलवासा)
पॉण्डिचेरी* (पुडुचेरी)
लक्षद्वीप* (कवरत्ती)
दिल्ली (नई दिल्ली)


† चंडीगढ़ एक केंद्र शाशित प्रदेश और पंजाब और हरियाणा राज्यों की राजधानी दोनों है।

यह भी देखें: भारत के शहर

भूगोल और मौसम
भारत का भूगोल
भारत की भौगोलिक संरचना
हिमालय उत्तर में जम्मू और काश्मीर से लेकर पूर्व में अरुणाचल प्रदेश तक भारत की अधिकतर पूर्वी सीमा बनाता हैभारत के अधिकतर उत्तरी और उत्तरपश्चिमीय प्रांत हिमालय की पहाङियों में स्थित हैं। शेष का उत्तरी, मध्य और पूर्वी भारत गंगा के उपजाऊ मैदानों से बना है। उत्तरी-पूर्वी पाकिस्तान से सटा हुआ, भारत के पश्चिम में थार का मरुस्थल है। दक्षिण भारत लगभग संपूर्ण ही दक्खन के पठार से निर्मित है। यह पठार पूर्वी और पश्चिमी घाटों के बीच स्थित है।

कई महत्वपूर्ण और बड़ी नदियाँ जैसे गंगा, ब्रह्मपुत्र, यमुना, गोदावरी और कृष्णा भारत से होकर बहती हैं। इन नदियों के कारण उत्तर भारत की भूमि कृषि के लिए उपजाऊ है।

भारत के विस्तार के साथ ही इसके मौसम में भी बहुत भिन्नता है। दक्षिण में जहाँ तटीय और गर्म वातावरण रहता है वहीं उत्तर में कड़ी सर्दी, पूर्व में जहाँ अधिक बरसात है वहीं पश्चिम में रेगिस्तान की शुष्कता। भारत में वर्षा मुख्यतया मानसून हवाओं से होती है।

भारत के मुख्य शहर है - दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई, बंगलोर ( बेंगलुरु ) |

अर्थव्यवस्था
भारत की अर्थव्यवस्था
सूचना प्रोद्योगिकी (आईटी) भारत के सबसे अधिक विकासशील उद्योगों में से एक है, वार्षिक आय २८५० करोड़ डालर, इन्फोसिस, भारत की सबसे बडी आईटी कम्पनियों में से एकमुद्रा स्थानांतरण की दर से भारत की अर्थव्यवस्था विश्व में दसवें और क्रयशक्ति के अनुसार चौथे स्थान पर है। वर्ष २००३ में भारत में लगभग ८% की दर से आर्थिक वृद्धि हुई है जो कि विश्व की सबसे तीव्र बढती हुई अर्थव्यवस्थओं में से एक है। परंतु भारत की अत्यधिक जनसंख्या के कारण प्रतिव्यक्ति आय क्रयशक्ति की दर से मात्र ३,२६२ अमेरिकन डॉलर है जो कि विश्व बैंक के अनुसार १२५वें स्थान पर है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार २६५ (मार्च २००९) अरब अमेरिकी डॉलर है। मुम्बई भारत की आर्थिक राजधानी है और भारतीय रिजर्व बैंक और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का मुख्यालय भी। यद्यपि एक चौथाई भारतीय अभी भी निर्धनता रेखा से नीचे हैं, तीव्रता से बढ़ती हुई सूचना प्रोद्योगिकी कंपनियों के कारण मध्यमवर्गीय लोगों में वृद्धि हुई है। १९९१ के बाद भारत मे आर्थिक सुधार की नीति ने भारत के सर्वंगीण विकास मे बड़ी भूमिका निभाई है।

१९९१ के बाद भारत मे हुए आर्थिक सुधारोँ ने भारत के सर्वांगीण विकास मे बड़ी भूमिका निभाई। भारतीय अर्थव्यवस्था ने कृषि पर अपनी ऐतिहासिक निर्भरता कम की है और कृषि अब भारतीय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का केवल २५% है। दूसरे प्रमुख उद्योग हैं उत्खनन, पेट्रोलियम, बहुमूल्य रत्न, चलचित्र, वस्त्र, सूचना प्रोद्योगिकी सेवाएं, तथा सजावटी वस्तुऐं। भारत के अधिकतर औद्योगिक क्षेत्र उसके प्रमुख महानगरों के आसपास स्थित हैं। हाल ही के वर्षों में $१७२० करोड़ अमरीकी डालर वार्षिक आय २००४-२००५ के साथ भारत सॉफ़्टवेयर और बीपीओ सेवाओं का सबसे बडा केन्द्र बनकर उभरा है। इसके साथ ही कई लघु स्तर के उद्योग भी हैं जोकि छोटे भारतीय गाँव और भारतीय नगरों के कई नागरिकों को जीविका प्रदान करते हैं। पिछले वषों में भारत में वित्तीय संस्थानो ने विकास में बड़ी भूमिका निभाई है।

केवल तीस लाख विदेशी पर्यटकों के प्रतिवर्ष आने के बाद भी भारतीय पर्यटन राष्ट्रीय आय का एक अति आवश्यक परन्तु कम विकसित स्त्रोत है। पर्यटन उद्योग भारत के जीडीपी का कुल ५.३% है। पर्यटन १०% भारतीय कामगारों को आजीविका देता है। वास्तविक संख्या ४.२ करोड है। आर्थिक रूप से देखा जाए तो पर्यटन भारतीय अर्थव्यवस्था को लगभग $४०० करोड डालर प्रदान करता है। भारत के प्रमुख व्यापार सहयोगी हैं अमरीका, जापान, चीन और संयुक्त अरब अमीरात।

भारत के निर्यातों में कृषि उत्पाद, चाय, कपड़ा, बहुमूल्य रत्न व आभूषण, साफ़्टवेयर सेवायें, इंजीनियरिंग सामान, रसायन तथा चमड़ा उत्पाद प्रमुख हैं जबकि उसके आयातों में कच्चा तेल, मशीनरी, बहुमूल्य रत्न, उर्वरक (फ़र्टिलाइज़र) तथा रसायन प्रमुख हैं। वर्ष २००४ के लिये भारत के कुल निर्यात $६९१८ करोड़ डालर के थे जबकि उसके आयात $८९३३ करोड डालर के थे।

जनसांख्यिकी
भारत के लोग
भारत में धार्मिक समूह
धार्मिक समूह प्रतिशत
हिन्दू   80.5%
मुस्लिम 13.4%
ईसाई   2.33%
सिख   1.84%
बौद्ध   0.76%
जैन   0.40%
अन्य   0.77%


हिन्दू धर्म भारत का सबसे बडा़ धर्म है - इस चित्र मे गोआ का एक मंदिर दर्शाया गया हैभारत चीन के बाद विश्व का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। भारत की विभिन्नताओं से भरी जनता में भाषा, जाति और धर्म, सामाजिक और राजनीतिक संगठन के मुख्य शत्रु हैं।

भारत में ६४.८ प्रतिशत साक्षरता है जिसमे से ७५.३ % पुरुष और ५३.७% स्त्रियाँ साक्षर है। लिंग अनुपात की दृष्टि से भारत में प्रत्येक १००० पुरुषों के पीछे मात्र ९३३ महिलायें हैं। कार्य भागीदारी दर (कुल जनसंख्या मे कार्य करने वालों का भाग) ३९.१% है। पुरुषों के लिये यह दर ५१.७% और स्त्रियों के लिये २५.६% है। भारत की १००० जनसंख्या में २२.३२ जन्मों के साथ बढती जनसंख्या के आधे लोग २२.६६ वर्ष से कम आयु के हैं।

यद्यपि भारत की ८०.५ प्रतिशत जनसंख्या हिन्दू है, १३.४ प्रतिशत जनसंख्या के साथ भारत विश्व में मुसलमानों की संख्या में भी इंडोनेशिया और पाकिस्तान के बाद तीसरे स्थान पर है। अन्य धर्मावलम्बियों में ईसाई (२.३३ %), सिख (१.८४ %), बौद्ध (०.७६ %), जैन (०.४० %), अय्यावलि (०.१२ %), यहूदी, पारसी, अहमदी और बहाई आदि सम्मिलित हैं।

भारत दो मुख्य भाषा सूत्रों, आर्य और द्रविड़ का भी स्रोत है। भारत का संविधान कुल २३ भाषाओं को मान्यता देता है। हिन्दी और अंग्रेजी केन्द्रीय सरकार द्वारा सरकारी कामकाज के लिये उपयोग की जाती है। संस्कृत और तमिल जैसी अति प्राचीन भाषाएं भारत में ही जन्मी हैं। कुल मिलाकर भारत में १६५२ से भी अधिक भाषाएं एवं बोलियाँ बोली जातीं हैं।

संस्कृति
भारतीय संस्कृति

ताजमहल विश्व के सबसे प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों में गिना जाता है।भारत की सांस्कृतिक धरोहर बहुत संपन्न है। यहां की संस्कृति अनोखी है, और वर्षों से इसके कई अवयव अबतक अक्षुण्य हैं। आक्रमणकारियों तथा प्रवासियों से विभिन्न चीजों को समेटकर यह एक मिश्रित संस्कृति बन गई है। आधुनिक भारत का समाज, भाषाएं, रीति-रिवाज इत्यादि इसका प्रमाण हैं। ताजमहल और अन्य उदाहरण, इस्लाम प्रभावित स्थापत्य कला के अतिसुन्दर नमूने हैं।


गुम्पा नृत्य एक तिब्बती बौद्ध समाज का सिक्किम में छिपा नृत्य है। यह बौद्ध नव बर्ष में है।भारतीय समाज बहुधर्मिक, बहुभाषी तथा मिश्र-सांस्कृतिक है। पारंपरिक भारतीय पारिवारिक मूल्यों को काफी आदर की दृष्टि से देखा जाता है।

विभिन्न धर्मों के इस भूभाग पर कई मनभावन पर्व त्यौहार मनाए जाते हैं - दिवाली, होली, दशहरा. पोंगल तथा ओणम . ईद-उल-फितर, मुहर्रम, क्रिसमस, ईस्टर आदि भी काफ़ी लोकप्रिय हैं।

हालाँकि हॉकी देश का राष्ट्रीय खेल है, क्रिकेट सबसे अधिक लोकप्रिय है। वर्तमान में फुटबॉल, हॉकी तथा टेनिस में भी बहुत भारतीयों की अभिरुचि है। देश की राष्ट्रीय क्रिकेट टीम में १९८३ में एक बार विश्व कप भी जीता है। इसके अतिरिक्त वर्ष २००३ में वह विश्व कप के फाइनल तक पहुँचा था। १९३० तथा ४० के दशक में हाकी में भारत अपने चरम पर था। मेजर ध्यानचंद ने हॉकी में भारत को बहुत प्रसिद्धि दिलाई और एक समय भारत ने अमरीका को २४-० से हराया था जो अब तक विश्व कीर्तिमान है। शतरंज के जनक देश भारत के खिलाड़ी विश्वनाथ आनंद ने अच्छा प्रदर्शन किया है ।

भारतीय खानपान बहुत ही समृद्ध है। शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनो तरह का खाना पसन्द किया जाता है। भारतीय व्यंजन विदेशों में भी बहुत पसन्द किए जाते है।

भारत में संगीत तथा नृत्य की अपनी शैलियां भी विकसित हुईं जो बहुत ही लोकप्रिय हैं। भरतनाट्यम, ओडिसी, कत्थक प्रसिद्ध भारतीय नृत्य शैली है। हिन्दुस्तानी संगीत तथा कर्नाटक संगीत भारतीय परंपरागत संगीत की दो मुख्य धाराएं हैं।

वैश्वीकरण के इस युग में शेष विश्व की तरह भारतीय समाज पर भी अंग्रेजी तथा यूरोपीय प्रभाव पड़ रहा है। बाहरी लोगों की खूबियों को अपनाने की भारतीय परंपरा का नया दौर कई भारतीयों की दृष्टि में अनुचित है। एक खुले समाज के जीवन का यत्न कर रहे लोगों को मध्यमवर्गीय तथा वरिष्ठ नागरिकों की उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है। कुछ लोग इसे भारतीय पारंपरिक मूल्यों का हनन मानते हैं। विज्ञान तथा साहित्य में अधिक प्रगति ना कर पाने की वजह से भारतीय समाज यूरोपीय लोगों पर निर्भर होता जा रहा है। ऐसे समय में लोग विदेशी अविष्कारों का भारत में प्रयोग अनुचित भी समझते हैं।

मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

बढ़ई नहीं वास्तुकार थे ईसा मसीह के पिता

ईसा मसीह एक मध्यमवर्गीय वास्तुकार के पुत्र थे, बढ़ई के नहीं और यह भ्रम एक गलत अनुवाद के कारण पैदा हुआ।
एडम ब्रॉडफोर्ड के अनुसार अस्तबल में पैदा होने वाले एक बढ़ई पिता की संतान के बजाय ईसा मसीह दरअसल एक सफल, मध्यमवर्गीय और बेहद बौद्धिक वास्तुकार के पुत्र थे।
डेली मेल के अनुसार ईसा मसीह के जीवन के बारे में सुनाई जाने वाली सबसे बड़ी कहानियों का यह संभवत: एक अलग संस्करण है।
अपनी नई पुस्तक ‘द जीसस डिस्कवरी’ में ब्राडफोर्ड ने यह भी दावा किया कि 12 से 30 वर्ष की आयु के बीच ईसा मसीह धार्मिक स्कूलों में पढ़ रहे थे और वह यहूदिया में उच्च पदस्थ रब्बी थे। गौरतलब है कि इन वर्षों को ईसा मसीह के जीवन के ‘खोए हुए वर्ष' करार कहा जाता है क्योंकि इस दौर के बारे में खास जानकारी उपलब्ध नहीं है।
ब्राडफोर्ड ने यह दावा बाइबल की मूल यूनानी और इब्रानी शास्त्रों के विश्लेषण के बाद किया ताकि ईसा मसीह की पृष्ठभूमि के बारे में सच्चाई का पता लगाया जा सके।
ब्राडफोर्ड ने कहा कि ईसा मसीह के पिता जोसफ के पेशे को जाहिर करने के लिए इस्तेमाल किया गया यूनानी शब्द ‘तेक्तोन’ उन तमाम गलतियों में से एक है, जिनके कारण ईसा मसीह के चरित्र को लेकर मौलिक गलती पैदा हो गई।
उन्होंने कहा कि जहाँ ‘तेक्तोन’ का आमतौर पर अर्थ बढ़ई होता है, वहीं इसका सटीक अर्थ कुशल निर्माता या वास्तुकार होता है। वास्तुकार के रूप में जोसफ का सामाजिक दर्जा ऊँचा रहा होगा जिसके चलते वे अपने पुत्र को बेहतर तरीके से शिक्षा दिला सकते थे।
ब्राडफोर्ड ने कहा कि बाइबल के अधिकांश अंग्रेजी अनुवादों में जोसफ को एक ‘जस्ट’ व्यक्ति कहा गया है। लेकिन ‘व्यक्ति’ शब्द मूल यूनानी पाठ में नहीं है और ‘जस्ट’ का सटीक अनुवाद न्यायपालिका में भागीदार एक वरिष्ठ धार्मिक विद्वान है। (भाषा)

13 अप्रैल को जलियाँवाला बाग हत्याकांड पर विशेष

आज भी मौजूद हैं गोलियों के निशान
13 अप्रैल के दिन के साथ बैसाखी के उल्लास के साथ ही जलियाँवाला बाग हत्याकांड की बेहद दर्दनाक यादें भी जुड़ी हैं, जब गोरी हुकूमत के नुमाइंदे जनरल डायर ने अंधाधुँध गोलियाँ बरसाकर सैकड़ों निर्दोष देशभक्तों को मौत की नींद सुला दिया।
इतिहास में 13 अप्रैल 1919 की जलियाँवाला बाग की घटना विश्व के बड़े नरसंहारों में से एक के रूप में दर्ज है, जब बैसाखी के पावन पर्व पर अंग्रेजों ने हिन्दुस्तानियों के खून से होली खेली।
इस संबंध में विशेषज्ञों का कहना है कि अंग्रेज आजादी की लड़ाई में हिन्दुओं और मुसलमानों की एकता को देखकर घबराए हुए थे, इसलिए उन्होंने दोनों समुदायों में धर्म के आधार पर नफरत की दीवार खड़ी करने की हजार कोशिशें कीं लेकिन इसके बावजूद वे सफल नहीं हो पा रहे थे।
उन्होंने बताया कि अंग्रेजों ने जब रोलेट एक्ट लागू किया तो पूरे देश में आजादी की ज्वाला और भी भड़क गई। पंजाब में इसका कुछ ज्यादा ही असर था।
रोलेट एक्ट के विरोध में 13 अप्रैल 1919 को शांतिपूर्ण तरीके से अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एक जनसभा रखी गई, जिसे विफल करने के लिए अंग्रेज जबर्दस्त हिंसा पर उतर आए। यह विरोध इतना जबर्दस्त था कि छह अप्रैल को पूरे पंजाब में हड़ताल रही और 10 अप्रैल 1919 को हिन्दू एवं मुसलमानों ने मिलकर बहुत बड़े स्तर पर रामनवमी के त्योहार का आयोजन किया।
हिन्दू-मुसलमानों की इस एकता से पंजाब का तत्कालीन गवर्नर माइकल ओडवायर घबरा गया। अंग्रेजों ने 13 अप्रैल की जनसभा को विफल करने के लिए साम, दाम, दंड, भेद के सभी तरीके अख्तियार कर लिए। अंग्रेजों ने खौफ पैदा करने के लिए लोगों के इस जमावड़े से कुछ दिन पहले ही 22 देशभक्तों को मौत के घाट उतार दिया।
10 अप्रैल 1919 को अंग्रेजों ने दो बड़े नेताओं डॉ. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू को बातचीत के लिए बुलाया, लेकिन धोखे से दोनों को वहीं गिरफ्तार कर लिया गया।
अंग्रेजों ने जलियाँवाला बाग की जनसभा में शामिल होने जा रहे महात्मा गाँधी को भी 10 अप्रैल के ही दिन पलवल रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया।
अपने नेताओं की गिरफ्तारी से लोग और भी भड़क उठे तथा वे 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन हजारों की संख्या में जलियाँवाला बाग पहुँच गए।
हिन्दू, सिख और मुसलमानों की एकता से अपना शासन खतरे में देख अंग्रेजों ने भारतीयों को सबक सिखाने की ठानी और माइकल ओडवायर के आदेश पर जनरल डायर सैनिकों के साथ जलियाँवाला बाग जा धमका। इस बाग में प्रवेश और निकास का छोटा सा सिर्फ एकमात्र रास्ता है।
डायर के सैनिकों ने इस रास्ते को अवरुद्ध कर सभा कर रहे निहत्थे लोगों पर गोलियाँ बरसाना शुरू कर दिया। अचानक से गोलीबारी होते देख लोगों में भगदड़ मच गई।
बहुत से लोगों ने जान बचाने के लिए जलियाँवाला बाग में मौजूद एक कुएँ में छलांग लगा दी, लेकिन पानी में डूबने से उनकी मौत हो गई।
इस नरसंहार में मरने वालों की संख्या ब्रितानिया सरकार ने 300 बताई, जबकि कांग्रेस की रिपोर्ट के अनुसार इसमें एक हजार से अधिक लोग मारे गए।
जलियाँवाला बाग में गोलियों के निशान आज भी मौजूद हैं, जो अंग्रेजों के अत्याचार की कहानी कहते नजर आते हैं। डायर ने हत्याकांड के बाद इस बाग को खत्म करने की कोशिश की, ताकि लोग वहाँ स्मारक स्थल न बना सकें लेकिन इसके लिए बने एक ट्रस्ट ने बाग मालिक से घटनास्थल वाली जमीन खरीदकर गोरे हुक्मरानों के इरादों को विफल कर दिया।
इस नरसंहार का बदला उधमसिंह ने लंदनClick here to see more news from this city में माइकल ओडवायर को मारकर लिया। आजादी के बाद अमेरिकी डिजाइनर बेंजामिन पोक ने जलियाँवाला बाग स्मारक का डिजाइन तैयार किया, जिसका उद्घाटन 13 अप्रैल 1961 को हुआ।
पिछले सालों में पंजाब सरकार ने जलियाँवाला बाग को पिकनिक स्थल में तब्दील करने की योजना बनाई, लेकिन नौजवान सभा देशभक्त यादगार कमेटी और पंजाब स्टूडेंट्स यूनियन जैसे संगठनों द्वारा बड़े पैमाने पर किए गए विरोध प्रदर्शनों की वजह से सरकार को कदम पीछे खींचने पड़े।
इन संगठनों का कहना है कि स्मारक स्थल मूल रूप में ही रहना चाहिए और इसे पिकनिक स्थल बनाया जाना शहीदों का अपमान होगा।

रविवार, 11 अप्रैल 2010

कैंसर के इलाज में कीमोथैरेपी का डर

कीमोथैरेपी और रेडियोथैरेपी में हुई गुणात्मक प्रगति की वजह से कैंसर कोशिकाओं पर चौतरफा हमला करना संभव हो गया है। अब दोनों इलाज एक साथ देना संभव होने से कैंसर के ठीक होने की संभावना बढ़ गई है। रेडियोथैरेपी व सर्जरी के फायदे बराबर हो गए हैं। ब्रैकीथैरेपी के जरिए बच्चेदानी के कैंसर में अब ट्यूब को सीधे यूटेरस में डालकर एक्स-रे कैंसर कोशिकाओं को मार सकते हैं। लेकिन यह ध्यान रहे कि इलाज की ये सारी विधियाँ तभी कारगर होंगी, जब कैंसर को पहले चरण में ही पकड़ लें। ज्यों-ज्यों मरीज दूसरे, तीसरे और चौथे चरण में प्रवेश करता चला जाएगा, ठीक होने की संभावना घटती चली जाएगी। कैंसर के चौथे चरण में तो पहले मरीजों के बचने की कोई संभावना नहीं होती थी, लेकिन अब अत्याधुनिक इलाजों की वजह से 5 से 10 प्रतिशत चौथे चरण के मरीज भी बच रहे हैं।अब कैंसर के इलाज का एकदम नया युग आ गया है। कैंसर कोशिकाओं पर बिना किसी दुष्प्रभावों के हमला करना संभव हो गया है। इससे अब कैंसर के ज्यादा मरीज ठीक होने लगे हैं। यहाँ तक कि इलाज के क्षेत्र में हुई ताजी प्रगति से अंतिम चरण में पहुँचे 10 प्रतिशत मरीजों को बचाना भी संभव हो गया है। अब कैंसर का मतलब मौत का फरमान कतई नहीं रह गया है। कीमोथैरेपी से स्वस्थ कोशिकाएँ सुरक्षित कैंसर की कोशिकाओं को मारने की दवा जहर होती है। इसलिए दवा से इलाज की विधि कीमोथैरेपी को अभी भी 'रोग से अधिक खतरनाक इलाज' के नजरिए से देखा जाता रहा है, लेकिन अब कीमोथैरेपी का डर बेमानी है। पहले इन जहरीली दवाओं का असर शरीर के हर आवश्यक अंग पर होता था। उल्टी से मरीज परेशान रहते थे, शरीर काला पड़ जाता था, शरीर में खून की कमी हो जाती थी और संक्रमण लगने का डर बना रहता था। अब बाजार में ऐसी दवाइयाँ आ गई हैं, जो केवल कैंसर की कोशिकाओं पर ही वार करती हैं। शरीर के दूसरे हिस्से प्रभावित नहीं होते हैं। अब तो बाजार में कैंसर की1-2 'नैनो मेडिसिन' भी आ गई है। एक नैनो दवा का नाम है पैक्लीटैक्सल, जो केवल कैंसर कोशिकाओं को ही मारती है। लेकिन अभी भी आम लोगों के मन से कीमोथैरेपी का डर दूर नहीं हुआ है। आम लोगों की बात तो छोड़‍िए, सामान्य डॉक्टरों को भी इसकी जानकारी नहीं है कि कीमोथैरेपी अब हानिरहित हो गई है। कीमोथैरेपी के दौरान बाल जरूर झड़ जाते हैं, लेकिन वह भी अस्थायी होता है। इसके अलावा अब उल्टी व खून की कमी रोकने की बेहद प्रभावी दवाइयाँ आ गई हैं। इसलिए बिना किसी साइड इफेक्ट के पर्याप्त दवा का प्रयोग हो सकता है। पहले जहरीले प्रभाव के हर से पूरी दवा नहीं दी जाती थी।
NDरेडियोलॉजी भी हानिरहित कैंसर के इलाज की दूसरी विधि रेडियोलॉजी के क्षेत्र में भी काफी उन्नति हुई है। अब एक्स-रे किरणें आसपास की स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान नहीं पहुँचा पातीं। अब यह विधि भी बेहद सुरक्षित हो गई। रेडियोथैरेपी की एक मशीन है लिनियर एक्सेलेटर जिसमें सीटी स्कैन लगा होता है। इससे कैंसर प्रभावित पूरे क्षेत्र में बिना किसी जोखिम के एक्स-रे भेजी जाती है। 'पारानैजल साइनस' कैंसर के इलाज में दोनों आँखों के बीच की जगह में एक्स-रे किरणें भेजकर कैंसर कोशिकाओं को मारा जा रहा है। आँखों को कोई क्षति नहीं पहुँचती। प्रभावित क्षेत्र में रेडिएशन थैरेपी व पर्याप्त एक्स-रे किरणें देने में अब कोई खतरा नहीं रह गया है। सर्जरी भी बेहद सटीक अब कैंसर के ट्यूमर के साथ पूरे अंग को काटकर अलग करने की जरूरत नहीं रह गई है। जैसे, पहले ब्रेस्ट कैंसर होने पर पूरे ब्रेस्ट को काटकर निकालना पड़ता था, लेकिन अब सिर्फ ट्यूमर को ही निकाला जाता है। असहनीय दर्द से राहत कैंसर के चौथे चरण में मरीज को बचाना लगभग असंभव हो जाता है, लेकिन मरीज जब तक जीवित रहता है उससे असहनीय दर्द होता है। इस स्टेज में इलाज का मतलब सिर्फ मरीज को इस दर्द से राहत देना होता है। अब इसके लिए भी प्रभावी दवा आ गई है। आजकल ट्रांसडर्मल पैच के रूप में एक दवा आई है। इसे पूरे शरीर में लेप कर देने से 72 घंटों के लिए दर्द से राहत मिल जाती है। कोई दवा या सुई लेने की जरूरत नहीं होती। डॉ. दिनेश सिंह

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

स्त्री बन्ध्यत्व का संभव है इलाज

आयुर्वेद ने महिलाओं में 20 प्रकार के योनि रोग बताए हैं, जिनमें से कोई भी रोग स्त्री के बाँझपन का कारण हो सकता है। यूँ तो बन्ध्यत्व के कई कारण हो सकते हैं पर मुख्यतः स्त्री बाँझपन तीन प्रकार का होता है-पहला- आदि बन्ध्यत्व यानी जो स्त्री पूरे जीवन में कभी गर्भ धारण ही न करे, इसे प्राइमरी स्टेरेलिटी कहते हैं। दूसरा- काक बन्ध्यत्व यानी एक संतान को जन्म देने के बाद किसी भी कारण के पैदा होने से फिर गर्भ धारण न करना। एक संतान हो जाने के बाद स्त्री को बाँझ नहीं कहा जा सकता अतः ऐसी स्त्री को काक बन्ध्त्व यानी वन चाइल्ड स्टेरेलिटी कहते हैं। तीसरा- गर्भस्रावण बन्ध्यत्व यानी गर्भ तो धारण कर ले पर गर्भकाल पूरा होने से पहले ही गर्भस्राव या गर्भपात हो जाए। इसे रिलेटिव स्टेरिलिटी कहते हैं।इसके अलावा स्त्री के प्रजनन अंग का आंशिक या पूर्णतः विकसित न होना यानी योनि या गर्भाशय का अभाव, डिंबवाहिनी यानी फेलोपियन ट्यूब में दोष होना, पुरुष शुक्राणुहीनता के कारण गर्भ धारण न कर पाना, श्वेत प्रदर, गर्भाशय ग्रीवा शोथ, योनि शोथ, टीबी आदि कारणों से योनिगत स्राव क्षारीय हो जाता है, जिसके संपर्क में आने पर शुक्राणु नष्ट हो जाते हैं व गर्भ नहीं ठहर पाता। इस प्रकार बन्ध्यत्व को दो भागों में बाँटा जा सकता है, एक तो पूर्ण रूप से बन्ध्यत्व होना, जिसका कोई इलाज न हो सके और दूसरा अपूर्ण बन्ध्यत्व होना, जिसे उचित चिकित्सा द्वारा दूर किया जा सके। किसी होम्योपैथिक चिकित्सक से सलाह लें या निम्नलिखित दवाई का प्रयोग करें-

सीपिया-30 : जरायु से संबंधित रोगों व बन्ध्यत्व के लिए यह मुख्य औषधि है। इसके लिए सीपिया-30 शक्ति की गोली सुबह-शाम लाभ न होने तक चूसकर लेना चाहिए।कोनियम मेक : सिर को दाएँ-बाएँ हिलाने से चक्कर आ जाना इसका मुख्य लक्षण है। बाँझ स्त्री में यह लक्षण होना ही इस दवा को चुन लेने के लिए काफी है। डिम्ब कोश की क्षीणता के कारण गर्भ स्थापित न होता हो तो कोनियम मेक का सेवन लाभ करता है। कोनियम मेक सिर्फ 3 शक्ति में सुबह-शाम चूसकर सेवन करना चाहिए।प्लेटिना 6 एक्स: अत्यंत संवेदनशील और भावुक स्वभाव होना, जननांग को छूते ही स्त्री का शरीर ऐंठने, मचलने लगे, अत्यंत कामुक प्रकृति, हिस्टीरियाई रोग के लक्षण होना, मासिक धर्म अनियमित हो, तीव्र कामवासना की प्रवृत्ति हो तो प्लेटिनम या प्लेटिना 6 एक्स शक्ति में सुबह-शाम चूसकर लेना चाहिए।थ्लेस्पी बर्सा पेस्टोरिस : ऋतुकाल के अलावा समय में रक्त स्राव होना, अधिक होना, दाग धोने पर भी न मिटना, स्राव के समय दर्द होना आदि लक्षणों वाली बन्ध्या स्त्री को थ्लेस्पी बर्सा पेस्टोरिस का मूल अर्क (मदर टिंचर) सुबह- शाम दो चम्मच पानी में 4-5 बूँद टपकाकर लेने से लाभ होता है व गर्भ स्थापित हो जाता है।पल्सेटिला : यह महिलाओं की खास दवा है। सीपिया और कैल्केरिया कार्ब की तरह यह दवा स्त्री के यौनांग पर विशेष प्रभाव डालती है। ये तीन दवाएँ स्त्री शरीर के हारमोन्स को सक्रिय कर देती हैं। पहले पल्सेटिला की एक खुराक 3 एक्स शक्ति में देकर आधा घंटे बाद पल्सेटिला 30 एक्स शक्ति में देना चाहिए। इस तरह दिन में 3-3 खुराक देना चाहिए, इसी के साथ सप्ताह में दो बार सीपिया 200 शक्ति में और कैल्केरिया कार्ब 200 शक्ति में दिन में एक बार देना चाहिए। इस प्रयोग से दो या तीन माह में बन्ध्यत्व दूर हो जाता है।औरम म्यूर नैट्रोनेटम : इसे स्त्री बाँझपन को दूर करने की विशिष्ट दवा माना जाता है। गर्भाशय के दोषों को दूर कर यह दवा गर्भ स्थापना होने की स्थिति बना देती है। गर्भाशय में सूजन हो, स्थानभ्रंण यानी प्रोलेप्स ऑफ यूटेरस की स्थिति हो, योनि मार्ग में जख्म हो या छाले हों तो नैट्रोनेटम 2 एक्स या 3 एक्स शक्ति में सुबह-शाम सेवन करना चाहिए। इसे 30 शक्ति में भी लिया जा सकता है।यहाँ होम्योपैथिक तरीके से इलाज का तरीका व दवाई के नाम बताए गए हैं। होम्योपैथिक चिकित्सा इस विषय विशेष में अच्छा दखल रखती है व बीमारी के उपचार में सहायता करती है। लेकिन दवाओं के इस्तेमाल से पूर्व योग्य होम्योपैथिक चिकित्सक की सलाह अवश्य लें।

स्वप्नदोष के लिए आसान उपाय

घरेलू टिप्स अपनाएँ स्वप्नदोष के लिए
आँवले का मुरब्बा रोज खाएँ ऊपर से गाजर का रस पिएँ। तुलसी की जड़ के टुकड़े को पीसकर पानी के साथ पीना लाभकारी होता है। अगर जड़ नहीं उपलब्ध हो तो तो बीज 2 चम्मच शाम के समय लें। लहसुन की दो कली कुचल कर निगल जाएँ। थोड़ी देर बाद गाजर का रस पिएँ। मुलहठी का चूर्ण आधा चम्मच और आक की छाल का चूर्ण एक चम्मच दूध के साथ लें। काली तुलसी के पत्ते 10-12 रात में जल के साथ लें।
रात को एक लीटर पानी में त्रिफला चूर्ण भिगा दें सुबह मथकर महीन कपड़े से छानकर पी जाएँ।अदरक रस 2 चम्मच, प्याज रस 3 चम्मच, शहद 2 चम्मच, गाय का घी 2 चम्मच, सबको मिलाकर सेवन करने से स्वप्नदोष तो ठीक होगा ही साथ मर्दाना ताकत भी बढ़ती है।नीम की पत्तियाँ नित्य चबाकर खाते रहने से स्वप्नदोष जड़ से गायब हो जाएगा।

बस, सिर्फ एक 'गोली' हो सकती है खतरनाक

आपात-गोली आफत की गोली ना बन जाए।
यदि यौन संबंध के समय कंडोम या अन्य कोई साधन असफल हो जाए या महिला के साथ जबर्दस्ती की जाए (जैसे बलात्कार) या परिवार नियोजन के साधन इस्तेमाल न करने की भूल हो जाए तो 72 घंटों के भीतर दवा लेकर गर्भ ठहरने से रोका जा सकता है। इसे आपात गर्भ निरोध कहते हैं। आपात गर्भनिरोध के साधन यह भ्रम फैल रहा है कि विज्ञापन में दिखाई जा रही दवा ही आपात गर्भ निरोध की एकमात्र दवा है। यह सही नहीं है। आपात गर्भ निरोध के तीन अन्य साधन हैं : लिवोनॉरजेस्ट्रॉन की एक गोली। यह दवाई की दुकानों पर उपलब्ध होती है। लिवोनॉरजेस्ट्रॉन की 1।5 मिलीग्राम की गोली यौन संबंध के बाद 72 घंटों के भीतर (अच्छा हो कि 12 घंटों के भीतर) ली जाए, तो गर्भ ठहरने से रोका जा सकता है। एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरॉन की गोलियाँ। ये माला-डी के नाम से सरकारी अस्पतालों में मुफ्त में मिलती हैं। बाजार में मिलने वाली लिवोनॉरजेस्ट्रॉन की गोली और माला-डी में बहुत अधिक फर्क नहीं है। यौन संबंध के बाद 72 घंटों के भीतर माला-डी की दो गोलियाँ दो बार, 12 घंटों के अंतराल से ली जाती हैं। परिवार नियोजन का कॉपर टी नामक साधन। यह भी सरकारी अस्पतालों में मुफ्त में लगाया जाता है। कई महिलाएँ आर्थिक रूप से इतनी सक्षम नहीं होतीं कि वे बाजार से गोली खरीद सकें। ऐसी महिलाओं के लिए माला-डी और कॉपर-टी सबसे अच्छे विकल्प हैं क्योंकि ये सरकारी अस्पतालों में मुफ्त मिलते हैं। कॉपर टी का अतिरिक्त फायदा यह होता है कि यौन संबंध के पाँच दिन बाद तक इसे लगाया जा सकता है। इसके कारण उसी ऋतु चक्र में या उसके बाद भी गर्भ को ठहरने से रोका जा सकता है। अगला ऋतु चक्र आने के बाद कॉपर टी को निकाला जा सकता है। क्रियाविधि अंडाशय में से अंडाणु बाहर आने की प्रक्रिया को ये गोलियाँ धीमा कर देती हैं या पूरी तरह रोक देती हैं। फिर भी यदि अंडाणु और शुक्राणु का मिलन हो जाए तो इन गोलियों के कारण गर्भाशय की भीतरी दीवारी में ऐसे बदलाव हो जाते हैं जिनके कारण गर्भ ठहर नहीं पाता क्योंकि निषेचित भ्रूण गर्भाशय की दीवार से चिपक ही नहीं पाता। ध्यान में रखने की बात यह है कि गर्भ ठहर जाने के बाद ये गोलियाँ काम नहीं करतीं मतलब ये गर्भ निरोधक गोलियाँ हैं, ठहरे हुए गर्भ को समाप्त करने (गर्भपात) की नहीं। एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि यौन संबंध के 12 घंटों के भीतर ये गोलियाँ ली जाएँ तो गर्भ न ठहरने की संभावना 95 प्रतिशत होती है। यदि गोलियाँ 47 से 61 घंटों के भीतर ली जाएँ तो गर्भ न ठहरने की संभावना केवल 47 प्रतिशत रह जाती है। यदि महिला ये गोलियाँ ले और वे असफल हो जाएँ तो उसके बच्चे में कई प्रकार की विकृतियाँ हो सकती हैं : उसकी योनि (यदि बच्चा मादा है) की पेशियों में कमजोरी, शरीर के अन्य अंगों में विकृतियाँ, कैंसर या हृदय रोग हो सकता है। कौन-सी माँ अपने बच्चे में इस प्रकार की विकृतियाँ देखना चाहेगी? अन्य सावधानियाँ कई लोगों को यह पता नहीं होता कि यह गोली केवल एक ही बार गर्भधारण से बचाव कर सकती है। यदि दोबारा असुरक्षित यौन संबंध हो जाए तो फिर से गोली लेना जरूरी होता है। एक अन्य खतरा यह होता है कि यदि गोली असफल हो जाए तो ठहरने वाला गर्भ माँ के पेट में, गर्भाशय के बाहर कहीं भी ठहर सकता है। इससे उस महिला की जान को गंभीर खतरा हो सकता है। अतः अगर गोली लेने के बाद दो सप्ताह के भीतर पेट में तेज दर्द उठे तो बिना देर किए डॉक्टर के पास जाना चाहिए। परेशानियाँ जी मिचलाना- 20 प्रतिशत महिलाओं को पहले 24 घंटों में यह परेशानी होने लगती है। यदि गोली को दूध या भोजन के साथ लिया जाए और उल्टी न होने की दवा ली जाए तो यह परेशानी काफी कम की जा सकती है। उल्टियाँ - पाँच प्रतिशत महिलाओं को यह परेशानी हो सकती है। यदि गोली लेने के दो घंटों के भीतर उल्टी हो जाए तो गोली फिर से लेना जरूरी होता है। अनियमित मासिक धर्म - ये गोलियाँ लेने के बाद कुछ माह तक मासिक धर्म अनियमित हो सकता है या मासिक धर्म में अधिक रक्तस्राव की शिकायत हो सकती है। इनके अलावा सिरदर्द, चक्कर आना, थकान और स्तनों में दर्द की भी समस्या आ सकती है। कौन न लें? जिन्हें हृदय की बीमारी है।जिन्हें मस्तिष्क या शरीर के अन्य किसी भाग में रक्त का थक्का जमने की बीमारी है। माइग्रेन के मरीजजिन्हें एंजाइमा की शिकायत हैजिन्हें लीवर की कोई बीमारी हैबार-बार लेने पर इन दवाओं को बार-बार लेने के घातक परिणाम हो सकते हैं। स्त्रियों के प्रजनन अंगों पर इनका विपरीत प्रभाव पड़ता है। उपयोग करने के इच्छुक व्यक्तियों को चाहिए कि वे डॉक्टर से दवाओं के खराब असर, इनके असफल होने की संभावना, और गर्भाशय से बाहर गर्भ धारण की संभावना के बारे में जानकारी प्राप्त कर लें। यदि अगला मासिक धर्म न आए या मासिक धर्म के समय बहुत अधिक खून बहने लगे तो दोबारा डॉक्टर से जाँच करवाना चाहिए।

डॉक्टर से जाँच करवाकर यह सुनिश्चित कर लें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार महिला इस दवा को लेने के लिए सक्षम है या नहीं। आपात गर्भ निरोधक गोलियों का विज्ञापन जिस तरह से किया जा रहा है उससे समाज में और विशेष रूप से युवा वर्ग में यह भ्रांति फैल रही है कि बिना किसी डर के यौन संबंध बनाए जाओ। गोली है ना! लेकिन ऐसा नहीं है। एक वाहन पर लिखा था, 'सबसे अच्छा ब्रेक- मन का ब्रेक'। यही बात यौन संबंधों पर भी लागू होती है। युवाओं को इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि आपात गोली की जरूरत न पड़े। ऐसा न हो कि आपात गोली आफत की गोली बन जाए।

उम्र बढ़ने के साथ पुरुषों की परेशानी

मेल मेनोपॉज को जानें
अमेरिकी साहित्यकार मार्क ट्वेन का कहना है कि - उम्र बढ़ना मन का मामला है, यदि आप इस पर ध्यान नहीं देते हैं, तो यह महत्वपूर्ण नहीं है। इसके उलट उम्र बढ़ना हमेशा से ही चिंता का विषय रहा है। भारत में पौराणिक पात्र ययाति को एक उदाहरण के तौर पर लिया जा सकता है। हस्तिनापुर के महाराज ययाति पराक्रम, ऐश्वर्य और भोग-विलास करने के लिए अपने पुत्र पुरू से उसका यौवन लेते हैं और उसे अपनी जरावस्था दे देते हैं। बाद में क्या होता है, इसका संबंध इस लेख से नहीं है, इसलिए इसे यहीं रहने दें। मूल बात यह है कि अपनी जरावस्था (बुढ़ापे) को पुरुष आसानी से पचा नहीं पाता है। तभी तो दुनिया भर में एंटी-एजिंग को लेकर रिसर्च किए जा रहे हैं, किसी भी तरह से उम्र बढ़ने के प्रभाव को रोकने का कोई फार्मूला मिल जाए...आखिर इसकी जड़ में कौन-सी वजहें हैं?कुछ तो इसके पीछे के चिकित्सकीय कारण हैं तो कुछ सामाजिक...। मेडिकल साइंस इसे हार्मोनल चेंज का मामला बताता है। हम अपने आसपास देखते हैं कि धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजनों में बढ़ती उम्र के लोग ज्यादा सक्रिय होते हैं। युवावस्था में तेज रफ्तार गाड़ियों, तीखा-सनसनाता संगीत, तेज गति की जीवन-शैली और संघर्ष करने की प्रवृत्ति ज्यादा नजर आती है, लेकिन उम्र बढ़ते ही पुरुष इन सबसे दूर होने लगता है। सुनते और महसूस भी करते हैं कि उम्र बढ़ने के साथ ही स्वभाव की उग्रता, गुस्सा और तीखापन कम होता जाता है मगर चिड़चिड़ाहट बढ़ जाती है। खतरों की तुलना में सुरक्षा को ज्यादा तवज्जो दी जाने लगती है। याददाश्त कम होती है और भावुकता बढ़ने लगती है।
इस तरह के व्यवहारिक लक्षण पुरुषों में स्पष्ट, मुखर औऱ ज्यादा 'प्रॉमिनेंट' होते है, बजाय महिलाओं के... क्योंकि महिलाएँ पहले से ही 'टैंडर' होती हैं। पुरुष अपनी युवावस्था में कभी भी इतना कोमल, इतना भावुक नहीं रहता है, जितना बढ़ती उम्र में होने लगता है। सवाल उठता है कि ऐसा क्यों होता है और इस अवस्था को क्या कहा जाता है? पुरुषों में होने वाले इस तरह के मनोवैज्ञानिक, व्यावहारिक और शारीरिक परिवर्तन को एंड्रोपॉज कहा जाता है, इस पर मेडिकल साइंस तो चर्चा करता है, लेकिन सामाजिक-पारिवारिक स्तर पर इस विषय पर चर्चा करने से बचा जाता है। बहुत स्वाभाविक है कि पुरुषों के लिए उसका कथित पौरुष इतना महत्वपूर्ण होता है कि उसमें आने वाले कोमल और भावनात्मक परिवर्तन उसकी कमजोरी का प्रतीक माने जाते है, बजाय उसके ज्यादा मानवीय होने के...। हमारी व्यवस्था में नर पैदा होता है और फिर समाज उसे पुरुष बनाता है, जैसे सिमोन ने स्त्री के लिए कहा था कि स्त्री पैदा नहीं होती बनाई जाती है, उसी तरह पुरुष भी...उसे अपने पुरुष होने को सिद्ध करने के लिए हमेशा 'टफ' होना और दिखाई देते रहना होता है, लेकिन फिलहाल तक तो वक्त बलवान है और जिस तरह महिलाओं में मेनोपॉज होता है, उसी तरह पुरुषों में एंड्रोपॉज होता है।क्या होता है एंड्रोपॉज? एंड्रोपॉज पुरुषों में उम्र बढ़ने के साथ होने वाले भावनात्मक और शारीरिक परिवर्तन को कहते हैं। यद्यपि ये लक्षण सारे उम्र बढ़ने से संबंधित हैं, फिर भी इसका संबंध कुछ विशिष्ट किस्म के हार्मोंनों में बदलाव से है। इसमें उम्र बढ़ने के साथ पुरुषों में हार्मोनों के तेजी से प्राकृतिक क्षरण होता है। एंड्रोपॉज को मेल मेनोपॉज, पुरुषों का संकट-काल, हाइपोगोनेडिज्म का हमला, उम्र बढ़ने के साथ एंड्रोजन के गिरने से या वीरोपॉज भी कहा जाता है। न्यूयॉर्क के डॉ। वर्नर कहते हैं कि एंड्रोपॉज हकीकत में पुरुषों का मेनोपॉज है। वे कहते हैं कि दरअसल एंड्रोपॉज सही शब्द नहीं है, क्योंकि यह प्रक्रिया मेनोपॉज की तरह सभी में नहीं देखी जाती। न ही यह प्रजनन क्षमता समाप्त होने पर अचानक आ जाती है। यह उम्र बढ़ने के साथ कई पुरुषों में होने वाली सामान्य प्रक्रिया है और यह उम्र बढ़ने के साथ-साथ बढ़ती जाती है। कब से शुरू होती है यह प्रक्रिया? इसमें 40 से 49 साल की अवस्था के साथ 2 से 5 प्रतिशत की गति से यह प्रक्रिया बढ़ती है, इसी तरह 50 से 59 के बीच की अवस्था के साथ 6 से 40 , 60-69 में 20 से 45 प्रतिशत, 70-79 में 3 ऐ 4 और 70 प्रतिशत के बीच बढ़ती जाती है। इसी तरह 80 साल की उम्र में हाईपोगोनेडिज्म के गिरने की दर 91 प्रतिशत तक होती है। इसमें मध्यवय के पुरुषों में टेस्टोस्टेरॉन और डिहाईड्रोपियनड्रोस्टेरॉन हार्मोन बनने की प्रक्रिया धीमी लेकिन स्थिर गति से कम होती जाती है और इसके परिणामस्वरूप लेडिंग सेल्स बनने में भी कमी हो जाती है। क्या होता है इसमें? चूँकि इस दौरान टेस्टोस्टेरॉन बनने की गति धीमी होने लगती है, इसलिए इस तरह के हार्मोंनल बदलाव पुरुषों में शारीरिक और भावनात्मक परिवर्तन भी लाते हैं। इस समय में आमतौर पर पुरुष अपने परिवार का साथ चाहते हैं। अपनी युवावस्था में करियर, पैसा और शक्ति को केंद्र में रखते हैं तो एंड्रोपॉज के दौरान उनके केंद्र में परिवार, दोस्त और रिश्तेदार आ जाते हैं। वह अपने बच्चों के प्रति 'मातृवत' होने लगता है। घरेलू काम जैसे खाना बनाना, सफाई करना और बच्चों की देखभाल करना उसे अच्छा लगने लगता है। धार्मिक और आध्यात्मिक रुझान बढ़ने लगता है। वह व्यर्थ के झंझट मोल लेने से बचने लगता है मगर चुनौतियाँ लेने से नहीं। इस वक्त वह अपने अर्जित अनुभव को सान पर चढ़ाना चाहता है, उसे उपयोग करना और परखना चाहता है। ऐसे में उसे शारीरिक बदलाव के चलते चुनौती लेने लायक न समझा जाए तो वह कुंठित होता है। हाँ, उसे एडवेंचरस खेलों की तुलना में टीवी देखना ज्यादा भाता है। इस तरह के बदलाव से कभी-कभी पुरुष चिड़चिड़ाने भी लगता है। मनोचिकित्सक डॉ. वीएस पॉल बताते हैं कि पुरुषों के लिए चूँकि सामाजिक स्तर पर 'पौरुष' एक मूल्य के तौर पर स्थापित है, इसलिए जब पुरुष इसे कम होता देखता है तो वह थोड़ा निराश और थोड़ा चिड़चिड़ा होने लगता है, वह इसे आसानी से हजम नहीं कर पाता है। दरअसल कमजोरी और हमेशा 'पुरुष' होने और बने रहने की सामाजिक अपेक्षा की वजह से उसका व्यवहार कभी-कभी रूखा और चिड़चिड़ा हो जाता है।

डॉ. अमिता दीक्षित

सेक्स कई रोगों की दवा है

सेक्स : कई प्रॉब्लम्स का अचूक उपाय
आप शीर्षक पढ़कर चौंक गए होंगे कि भला सेक्स रोगों की दवा हो सकता है? इसमें चौंकने की कोई बात नहीं है। डॉक्टरों व वैज्ञानिकों ने शोध करके यह पता लगाया है कि सेक्स अनेक रोगों की दवा भी है। जहाँ जीवन में सेक्स एक-दूजे के बीच सुख, आनंद, अपनापन लाता है, वहीं एक-दूजे की हेल्थ व ब्यूटी को भी बनाए रखता है।सेक्स से शरीर में अनेक प्रकार के हार्मोन उत्पन्न होते हैं, जो शरीर के स्वास्थ्य एवं सौंदर्य को बनाए रखने में सहायक होते हैं। सेक्स से शरीर में उत्पन्न एस्ट्रोजन हार्मोन 'ऑस्टियोपोरोसिस' नामक बीमारी नहीं होने देता है। सेक्स से एंडोर्फिन हार्मोन की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे स्किन सुंदर, चिकनी व चमकदार बनती है। एस्ट्रोजन हार्मोन शरीर के लिए एक चमत्कार है, जो एक अनोखे सुख की अनुभूति कराता है। सफल व नियमित सेक्स करने वाले मैरिड कपल अधिक स्वस्थ देखे गए हैं। उनका सौंदर्य भी लंबी उम्र तक बना रहता है। उनमें उत्तेजना, उत्साह, उमंग और आत्मविश्वास भी अधिक होता है। सेक्स से परहेज करने वाले शर्म, संकोच, अपराधबोध व तनाव से पीड़ित रहते हैं।दिमाग को तरोताजा रखने व तनाव को दूर करने के लिए नियमित सेक्स एक अच्छा उपाय है। सेक्स के समय फेरोमोंस नामक रसायन शरीर में एक प्रकार की गंध उत्पन्न करता है, जिसे आप सेक्स परफ्यूम भी कह सकते हैं। यह सेक्स परफ्यूम दिल व दिमाग को असाधारण सुख व शांति देता है। सेक्स हृदय रोग, मानसिक तनाव, रक्तचाप और दिल के दौरे से दूर रखता है। सेक्स से दूर भागने वाले इन रोगों से अधिक पीड़ित रहते हैं।
सेक्स व्यायाम भी है :सेक्स एक प्रकार का व्यायाम भी है। इसके लिए खास किस्म के सूट, शू या महँगी एक्सरसाइज सामग्री की आवश्यकता नहीं होती। जरूरत होती है बस शयनकक्ष का दरवाजा बंद करने की। सेक्स व्यायाम शरीर की मांसपेशियों के खिंचाव को दूर करता है और शरीर को लचीला बनाता है। एक बार की संभोग क्रिया, किसी थका देने वाले व्यायाम या तैराकी के 10-20 चक्करों से अधिक असरदार होती है। सेक्स एक्सपर्ट्स के अनुसार मोटापा दूर करने के लिए सेक्स काफी सहायक सिद्ध होता है। सेक्स से शारीरिक ऊर्जा खर्च होती है, जिससे कि चर्बी घटती है। एक बार की संभोग क्रिया में 500 से 1000 कैलोरी ऊर्जा खर्च होती है। सेक्स के समय लिए गए चुंबन भी मोटापा दूर करने में सहायक सिद्ध होते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार सेक्स के समय लिए गए एक चुंबन से लगभग 9 कैलोरी ऊर्जा खर्च होती है। इस तरह 390 बार चुंबन लेने से 1/2 किलो वजन घट सकता है।