आउट ऑफ फैशन हुआ सिंगल रहना
ये शायद युवाओं का बदलता नजरिया हो या फिर मनुष्यत्व की माँग कि अकेलेपन से आदमी एक बार फिर ऊबने लगा है। सिंगल रहना अब फैशन या स्वतंत्र जीवन का मंत्र नहीं रहा। युवाओं की सोच बदली है और एक बार फिर से परिवार या अपनों का बाँड अपनी ताकत दिखा रहा है। उदारीकरण के प्रारंभिक दौर में मिले बड़े-बड़े पैकेज और नई-नई समृद्धि ने अकेले रहने के विचार को जन्म दिया। उस दौर में युवा परिवार और शादी जैसी कल्पना से ही दूर रहते थे, अपनी स्वतंत्रता और जीवनशैली के साथ किसी भी तरह का समझौता न करने ने इस विचार को पूरे डेढ़ दशक तक जिंदा रखा। बंधन और कमिटमेंट के डर से मैट्रोज में रहने वाले और आधुनिक जीवन जीने वाले युवाओं ने इसे बहुत लोकप्रिय भी बनाया, लेकिन जल्दी ही मनुष्य की सामाजिकता ने सिर उठाया और अब फिर से युवा शादी और परिवार की तरफ लौटने लगे हैं। स्वतंत्र और सफल सिंगल्स जैसे कि टीवी सीरियल 'सेक्स एंड द सिटी' में दर्शाए गए थे, यकीनन आकर्षक और ग्लैमरस लगते हैं। एक पूरी पीढ़ी ने इस ग्लैमर को जिया, लेकिन आज का युवा इसमें यकीन नहीं करता है। इस दौर में वर्किंग सिंगल्स ने जीवन की प्राथमिकताओं को जब क्रमबद्ध किया तो उसमें सबसे पहले परिवार आया।ऐसे बहुत से युवा हैं, जो फुलटाइम जॉब करते हैं, अच्छा कमाते हैं और अपने काम से संतुष्ट हैं, अब वे सिंगल रहने के विचार को तवज्जो नहीं देते। कुछ ऐसे लोग जो 30 साल या उससे ऊपर के हैं, कहते हैं कि वे अपने सिंगल स्टेटस से खुश नहीं हैं। पंकज मल्होत्रा जो कि एक निजी कंपनी में बतौर प्रबंधक काम कर रहे हैं कहते हैं कि 'मैं दिल्ली में 10 साल पहले आया था, मेरा एक ही उद्देश्य था, अच्छा जॉब हासिल करना। छोटे शहर का होने के नाते मुझे बड़े शहर के तौर-तरीके नहीं मालूम थे। जैसे ही मुझे जॉब मिला, मेरे माता-पिता मुझ पर शादी के लिए दबाव डालने लगे, लेकिन मैंने उनकी बात नहीं सुनी। अब मैं 31 साल का हूँ और सिंगल हूँ। मेरे पास अच्छी नौकरी है और अच्छी आमदनी भी, लेकिन अब मैं चाहता हूँ कि मेरे जीवन में कोई विशेष हो।' यह सही है कि सिंगल होने के अपने फायदे हैं। न कोई रोक-टोक, न कोई जिम्मेदारी...। न कोई कमिटमेंट और न ही कोई कैफ़ियत...। लेकिन इस आसान जीवन के बाद भी कई सिंगल्स मन में यह उम्मीद करते हैं कि एक दिन उन्हें कोई विशेष मिलेगा। एक अखबार की उपसंपादक चेतना शर्मा कहतीं हैं कि- 'एक सवाल मुझे हर दिन परेशान करता है कि क्या मैं अकेले रहने के लिए ही पैदा हुई हूँ? अगर ऐसा हुआ तो मैं सारा जीवन उदास रहूँगी। आखिरकार पैसे से खुशी नहीं खरीदी जा सकती है।'एक कॉलेज में लेक्चरर अनुराधा त्यागी बताती हैं कि- 'अपने करियर के लिए मैं सब कुछ कुर्बान कर चुकी हूँ। मौज-मस्ती का समय, दोस्त और अपने आप को पैंपर करना, लेकिन आज मेरे पास एक अच्छे जॉब के अतिरिक्त कुछ और नहीं है। पहले मैं सोचती थी कि जीवन में सिर्फ उपलब्धियाँ ही महत्वपूर्ण हैं, लेकिन अब मैं एक साथी की जरूरत भी महसूस करती हूँ।'अधिकतर सिंगल्स के अपने परिवार और दोस्तों के साथ अच्छे संबंध हैं, लेकिन फिर वे अकेलापन महसूस करते हैं। बहुत से सिंगल्स अपने अकेलेपन को शराब, सिगरेट और फिजूलखर्ची में गर्क करते हैं। कॉल सेंटर में कार्यरत मयंक सिब्बल कहते हैं कि- 'कभी-कभी अकेले रहने पर मैं डिप्रेशन में चला जाता हूँ। हर बात दोस्तों से नहीं की जा सकती और तो फिर हर बात को फिक्र में उड़ाता रहता हूँ।' कुछ महिलाओं का मानना है कि अगर वे अपने जॉब में अच्छा करेंगी तो उन्हें अधिक योग्य साथी मिलेगा और इसी धुन में वे करियर में तो आगे बढ़ती रहती हैं, लेकिन जीवन में पिछड़ जाती हैं, क्योंकि जैसे-जैसे वे करियर में आगे बढ़ती हैं, उन्हें महसूस होने लगता है कि टॉप पर योग्य पुरुषों की संख्या और भी कम हो गई है। हाल ही में विवाहित 33 साल की शालिनी खुराना बताती हैं कि- 'सिंगल रहना मेरे लिए एक किस्म की जीत थी। मैं महसूस करती थी कि मैं एक गलत विकल्प चुनने से बच गईं, लेकिन मैंने शादी की क्योंकि मैं सारी जिंदगी अकेले रहने से ख्याल मात्र से घबरा गई थी। मुझे डर लगा इस सोच से कि मुझे कोई प्यार ही नहीं करेगा।' अब समृद्धि और उपलब्धि के शिखर पर भी कोई सिंगल नहीं रहना चाहता है, इसलिए सिंगल रहना अब आउट ऑफ फैशन होने लगा है।
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