रविवार, 29 मई 2011

हिंदीवालों के लिए उर्दू सीखना बाएँ हाथ का खेल है

urdu for hindiwallas

It is extremely easy for native speakers and readers of Hindi to learn Urdu's PersoArabic lettering. This is because there is no new vocabulary to learn - just a system of writing. However, it can be a lot harder if you are a non-native speaker of Hindi. In that case, you're often only used to the Sanskritized portions of Hindi. It's still worth a shot. If the font looks too small, remember you can magnify it in your browser window by hitting "Control" and "+" together (you do not need to use the shift key). You can do this repeatedly to magnify as much as you want. You can shrink fonts by hitting "Control" and "-" together.

हिंदीवालों के लिए उर्दू सीखना बाएँ हाथ का खेल है॰ यक़ीन नहीं होता? होना चाहिए, क्योंकि इस पन्ने के अंत तक आप उर्दू पढ़ाई समझ जाएँगे॰
पहली बात: उर्दू के हर अक्षर को हर्फ़ कहते हैं और हर हर्फ़ का एक नाम होता है॰ जैसे के एक हर्फ़ "ب" है, जिसका नाम "बे" है और जो "ब" की आवाज़ बनाता है॰ ठीक इसी तरह एक दूसरा हर्फ़ "س" है, जिसका नाम "सीन" है और जो "स" की आवाज़ बनाता है॰ उर्दू पढ़ने के लिए इन हर्फ़ों का नाम जानना कतई ज़रूरी नहीं है, और न ही हम इस पर आपका कोई वक़्त ज़ाया करेंगे॰ सिर्फ़ ये याद कर लीजीए के कौन सा हर्फ़ कौन सी आवाज़ बनाता है॰ एक और हर्फ़ "ن" है, जो "न" की आवाज़ बनाता है॰ "ل" से "ल" की आवाज़ बनती है और "ز" से "ज़" की॰ नुक़्तों पर ध्यान दें - "س" "स" है लेकिन "ش" "श" है॰ किसी हर्फ़ पर नुक़्ता लगा हो, तो वो अपने ही जैसे दिखने वाले बिना-नुक़्ते के हर्फ़ से बिलकुल अलग आवाज़ बनाता है॰

दूसरी बात: उर्दू दाएँ से बाएँ लिखी जाती है, और हर्फ़ों को जोड़ कर शब्द बनते हैं॰ अगर हम "ا" (अल्लिफ़, जो "अ" की आवाज़ बनाता है) के साथ "ب" ("ब") जोड़ें, तो क्या बना? "اب" यानि "अब"॰ "ر" ("र") और "ب" ("ब") जोड़ें तो "رب" ("रब"), और "د" ("द") और "ب" ("ब") जोड़ें तो "دب" ("दब") बनते हैं॰
तीसरी बात: जिस तरह हिंदी में "श" और "ष", दोनो से एक ही तरह "श" की आवाज़ बनती है, ठीक उसी तरह उर्दू में कईं ऐसे हर्फ़ हैं जिनसे एक ही तरह की आवाज़ बनती है॰ मिसाल के तौर पर "ت" और "ط", दोनो "त" की आवाज़ बनाते हैं॰ इसी तरह "س", "ث" और "ص" तीनों "स" की आवाज़ बनाते हैं॰
चौथी बात: कुछ हर्फ़ों के दो रूप होते हैं - सिरा और पूरा॰ कुछ का सिर्फ़ एक रूप होता है - पूरा॰ किसी शब्द के शुरु या बीच में किसी भी हर्फ़ का अगर सिरा रूप है तो वो ही इस्तेमाल होता है॰ अगर किसी हर्फ़ का सिरा रूप है ही नहीं, तो कुदरती बात है के उसका अकेला-इकलौता पूरा रूप ही इस्तेमाल होता है॰ शब्द के आख़िर में आने वाले हर्फ़ का हमेशा पूरा रूप ही इस्तेमाल होता है॰ "س" ("स") और "ب" ("ब") दोनों का सिरा रूप होता है, लेकिन "ا" ("अ") का सिर्फ़ पूरा रूप होता है॰ अब मज़ा देखिये॰ "सब" को लिखा जाएगा "سب" (यानि "س" का सिरा और "ب" पूरा, क्योंकि "س" शब्द के शुरु में था और "ب" आख़िर में)॰ "बस" को लिखा जाएगा "بس" (यानि "ب" का सिरा और "س" पूरा, क्योंकि इस दफ़ा "ب" शब्द के शुरु में था और "س" आख़िर में)॰ "अब" को लिखा जाएगा "اب" (यानि "ب" पूरा क्योंकि वो शब्द के आख़िर में था, और "ا" भी पूरा क्योंकि "ا" का कोई सिरा रूप होता ही नहीं)॰ शायद आप पूछना चाह रहें हों के भला ऐसा क्यों है के कुछ हर्फ़ों का सिरा होता है और कुछ का नहीं॰ अच्छा सवाल है लेकिन फ़िलहाल इसे भूल जाएँ॰

चौथी बात की कुछ और मिसालें: "ب" ("ब") के संग "ا" ("अ") जोड़ा तो क्या बना? "با" यानि "बा"॰ "بابا" क्या बना? "बाबा"॰ "ن" ("न") के संग "ا" ("अ") जोड़ा तो क्या बना? "نا" यानि "ना"॰ "ک" ("क") और "ا" ("अ") जोड़ा तो बना "کا" यानि "का"॰ "ن" ("न"), "ل" ("ल"), "ک" ("क") और "ا" ("अ") जोड़ा तो बना "نلکا" यानि "नलका"॰ "زبان" बना ज़बान॰ "ز" ("ज़") और "ر" ("र") का कोई सिरा रूप नहीं होता इसलिए "बाज़ार" को लिखेंगे "بازار"॰ "सास" को लिखेंगे "ساس"॰"शाबाश" लिखेंगे "شاباش"॰ "م" ("म") के संग "ا" ("अ") और "ن" ("न") जोड़ा तो क्या बना? "مان" यानि "मान"॰ उलटकर, "ن" ("न") के संग "ا" ("अ") और "م" ("म") जोड़ा तो क्या बना? "نام" यानि "नाम"
चौथी बात की आख़री बात: अभी तक हमने वो हर्फ़ देखे हैं जिनके सिरे उन्ही के कटे हुए रूप लगते हैं॰ लेकिन ऐसे भी कुछ हर्फ़ हैं जिनके सिरे उनके पूरे रूप से काफ़ी अलग दिखते हैं॰ जैसे की "ج" ("ज") जिसका सिरा काफ़ी अलग हैं - "जा" को "جا" लिखते है॰ इसी तरह, "چ" ("च") में "ل" ("ल") जोड़ा तो "چل" ("चल") बना॰ ठीक यूहीँ "ح" ("ह") में "ل" ("ल") जोड़ा तो "حل" ("हल") बना॰ "خ" ("ख़") में "ر" ("र") और "چ" ("च") जोड़े तो "خرچ" ("ख़र्च") बना॰
पाँचवी बात: जिस तरह हिंदी में मात्राएँ होतीं हैं, कुछ ऐसी ही चीज़ उर्दू में भी है॰ अगर हर्फ़ के ऊपर छोटी सी तिरछी लकीर खेंची जाए तो उस हर्फ़ के साथ "आ" की आवाज़ जुड़ जाती है॰ इस मात्रा को "ज़बर" कहते हैं॰ देखिये - "اب" हुआ "अब", लेकिन "آب" हुआ "आब" क्योंकि यहाँ "ا" पर ज़बर लगा हुआ है॰ एक दूसरी मात्रा है "ज़ेर" जो हर्फ़ के नीचे छोटी सी तिरछी लकीर लगाने पर "इ" की आवाज़ पैदा करती है॰ "اِس" हुआ "इस" क्योंकि "ا" के नीचे ज़ेर का निशान है॰ अगली मात्रा है "पेश" जो हर्फ़ के ऊपर हिंदी की "उ" की मात्रा सी दिखने वाली है और "उ" की ही आवाज़ पैदा करती है॰ "اُس" हुआ "उस" क्योंकि "ا" के ऊपर पेश लगा हुआ है॰ हिंदी और उर्दू लिखाई का एक फर्क़ ये है कि हिंदी में मात्राएँ हमेशा लिखी जातीं हैं, जबकि उर्दू में कभी-कभी इन्हे अनलिखा ही छोड़ दिया जाता है॰ अगर ऐसा हो तो "اس" का मतलब "अस", "इस", "उस" में से कोई भी हो सकता है॰ आपको इर्द-गिर्द का संदर्भ देखकर पहचानना होगा कि कौनसा है॰
पाँचवी बात की एक और बात: एक आख़री चीज़ का नाम है "तश्दीद"॰ जिस हर्फ़ पर ये लग जाए वो हर्फ़ दोहराया जाता है॰ "بنا" "बना" है, लेकिन "بنّا" "बन्ना" है, क्योंके इसमे "ن" के ऊपर तश्दीद का निशान लगा हुआ है॰ इसी तरह, "چِلم" "चिलम" हुआ, लेकिन "چِلّم" "चिल्लम" हुआ॰

छठी बात: उर्दू के तीन हर्फ़ दिलचस्प हैं॰ पहला हर्फ़ है "و" जिसका सिरा रूप नहीं होता और जिससे चार आवाज़ें निकल सकतीं हैं - "व", "ऊ", "ओ" और "औ"॰ "سوال" हुआ "सवाल"॰ "سونا" या तो "सोना" या "सूना" हो सकता है॰ बिहार में एक "सवना" नाम का गावँ है - उसे भी "سونا" ही लिखा जाएगा॰ बिहार में ही मुंगेर के इलाके में "सौना" नाम का एक अलग गाँव है - जी हाँ, उसे भी "سونا" ही लिखा जाएगा॰ आपको इर्द-गिर्द का संदर्भ देखकर अंदाज़ा लगाना होगा कि "و" की कौनसी आवाज़ इस्तेमाल की जाए॰ दूसरा दिलचस्प हर्फ़ है "ی" जिसके पूरे रूप से सिर्फ़ "ई" की, और सिरे रूप से "ई", "ए", "ऐ" और "य" की आवाज़ें बनती हैं॰ "की" को "ک" ("क") और "ی" ("ई") जोड़ कर "کی" लिखा जाता है॰ "ی" का सिरा रूप देखिये - "ی" ("य") और "ا" ("अ") जोड़ा तो बना "یا" यानि "या"॰ "मेल" को लिखेंगे "میل" और "प्याज़" को लिखेंगे "پیاز"॰ मैल को "میل" ही लिखेंगे और मील को भी "میل" ही लिखेंगे॰ "बीबी जी" को "بیبی جی" लिखेंगे॰ हमारा तीसरा दिलचस्प हर्फ़ है "ے" जिससे केवल "ए" और "ऐ" की आवाज़ें बनती हैं, और जिसका सिरा रूप नहीं होता॰ "के" को "ک" ("क") और "ے" ("ए") जोड़ कर "کے" लिखेंगे॰ तो "बीबी जी के लिये" को "بیبی جی کے ِلیے" लिखा जाएगा॰
छठी बात की एक और छोटी सी बात: शब्दों के शुरु में "و", "ی" और "ے" के इस्तेमाल का ख़ास तरीक़ा होता है॰ "वन" हुआ "ون", लेकिन "ओ" के लिए पहले "ا" ("अ") लगाकर "او" लिखेंगे॰ "ور" को "वर" पढ़ेंगे और "اور" को "और" या "ओर" पढ़ेंगे॰ यही चीज़ "ی" पर भी लागू है - "یک" को "यक" पढ़ेंगे और "ایک" को "एक" पढ़ेंगे॰ अगर कभी "ई" या "ऐ" को शब्द की तरह लिखना चाहें तो "ای" और "اے" लिखेंगे॰ "ई! ये क्या?" को "ای! یے کیا؟" लिखेंगे और "ऐ मालिक" को "اے مالِک" लिखेंगे॰

सातवी बात: उर्दू का एक हर्फ़ है "ھ" (जिसका नाम "दो चश्मी हे" है और जो "ह" की आवाज़ बनाता है)॰ अगर इसे "ک" ("क") के साथ जोड़ा जाए तो "کھ" बनता है जिसकी आवाज़ "ख" है॰ ठीक इसी तरह "گ" ("ग") से "گھ" ("घ"), "ج" ("ज") से "جھ" ("झ") और "چ" ("च") से "چھ" ("छ") बनता है॰ "झट पट खाना खा" को लिखेंगे "جهٹ پٹ کهانا کها" (नये हर्फ़: "ٹ" "ट" होता है और "پ" "प" होता है)॰ "ٹ" "ट" के साथ "ھ" जोड़ा जाए तो "ٹھ" ("ठ") बनता है॰ "ت" ("त") से "تھ" ("थ"), "ب" ("ब") से "بھ" ("भ") और "پ" ("प") से "پھ" ("फ") बनता है॰ "भाग कर थक जा" को लिखेंगे "بهاگ کر تهک جا"॰ "ڈ" ("ड") से "ڈھ" ("ढ") और "ڑ" ("ड़") से "ڑھ" ("ढ़") बनता है॰
आठवी बात: "ن" ("न") का हर्फ़ तो आप जान ही गए हैं॰ इसी से मिलता जुलता एक बिना नुक़्ते का हर्फ़ है "ں" जो हमेशा शब्दों के अंत में ही इस्तेमाल होता है और जिस से "आधे-न" की यानि "अं" की आवाज़ आती है॰ "मेन" को लिखेंगे "مین" लेकिन "में" को लिखेंगे "میں"॰ "है" को लिखेंगे "هے", "हैं" को लिखेंगे "هیں" और "हैन" को लिखेंगे "هین"॰
नौवी बात: अब तक आपने दो हर्फ़ देखे हैं जिनसे "ह" की आवाज़ पैदा होती है - "ح" और "ھ"॰ इनके इस्तेमाल से "हल" लिखने के दो तरीक़े हुए "حل" और "هل"॰ उर्दू का एक और "ह" की आवाज़ वाला हर्फ़ है "ہ", जिसका सिरा रूप भी होता है॰ "ہ" के इस्तेमाल से "हल" लिखें तो "ہل" लिखेंगे॰ देखिये - "ہندوستان" और "هندوستان" दोनों "हिन्दुस्तान" ही हैं॰ "ہ" अगर शब्द के बीच में हो तो उस का सिरा कभी-कभी अलग ढंग से लिखा जा सकता है, जैसे की "कहर" में - "کہر"॰ अगर शब्द के अंत में "ہ" हो तो कभी-कभी "ह" की बजाए "आ" या "ए" की आवाज़ पैदा कर सकता है॰ "که" "कह" भी हो सकता है और "के" भी॰ शब्द के अंत में "ہ" को कभी-कभी अलग ढंग से लिखा जाता है - "کہ" को "के" पढ़ेंगे॰ इस रूप में आवाज़ "आ" या "ए" की ही बनती है, "ह" की नहीं॰ "माँ ने कहा के वर्मा जी नहीं आए क्योंके मुश्किल था" को लिख सकते हैं "ماں نے کہا کے ورمہ جی نهیں آے کیونکہ مُشکل تها"॰
दसवी बात: चलिए, एक कविता पढ़ें -
ہاتهی راجا
ہاتهی راجا بہوت بهلے
سونڈ هلاتے کہاں چلے؟
کان هلاتے کہاں چلے؟
میرے گهر بی آو جی
هلوہ پوری کهاو جی
آو بیٹهو کرسی پر
کرسی بولی - چٹر مٹر
हाथी राजा
हाथी राजा बहोत भले,
सूंड हिलाते कहाँ चले?
कान हिलाते कहाँ चले?
मेरे घर भी आओ जी,
हलवा पूरी खाओ जी,
आओ बैठो कुरसी पर,
कुरसी बोली "चटर मटर!"



ग्यारहवी बात: बस अब चंद ही हर्फ़ रह गये हैं जो आपने नहीं देखे॰ "ق" ("क़"), जिसका सिरा रूप भी होता है॰ देखिये - "اِراق" ("इराक़") और "قیمہ" ("क़ीमा")॰ "ذ" और "ظ" दोनो "ज़" हैं और दोनो के सिरे नहीं होते॰ "ط" "त" है, जिसका सिरा नहीं होता - "طبلہ" ("तबला")॰ "ع" ("अ", लेकिन कभी-कभी "इ") और "غ" ("ग़") दोनो के सिरे होते हैं जो शब्द के बीच में ज़रा अलग ढंग से लिखे जाते हैं - "غزل" ("ग़ज़ल"), "نِغل" ("निग़ल"), "باغ" ("बाग़"), "عاوام" ("आवाम"), "معف" ("मआफ़" यानि "माफ़"), "تعریف" ("तारीफ़"), "موقع" ("मौक़ा"), "عشق" ("इश्क़"), "شاعری" ("शाअरी" यानि "शायरी")॰ "ص" ("स") और "ض" ("ज़") के सिरे होते हैं - "صاحب" ("साहब"), "ضروری" ("ज़रूरी"), "خاص" ("ख़ास"), "قِصّہ" ("क़िस्सा", "ص" के ऊपर तश्दीद है)॰ अब आपका अनदेखा एक ही हर्फ़ बचा है, और वो है "ژ" ("झ़") जिस से "टेलिविझ़न" वाली "झ़" की आवाज़ आती है॰ "टेलिविझ़न" को लिखेंगे "ٹیلیویژن"॰ "ژ" ("झ़") का सिरा रूप नहीं होता॰

बारहवी बात: लिजीए, अब सीखने को कुछ बचा नहीं॰ जाते-जाते, दो शेर और एक अख़बार की सुरख़ी पढ़ते चले॰ उसके नीचे सारे हर्फ़ों की फ़हरिस्त है॰ जब तक हर्फ़ आपको याद न हो जाँए, आप इसको आराम से इस्तेमाल करें॰ चाहें तो छाप लें॰
شعر نمبر 1
سخت رصتوں میں بهی آصان سفر لگتا ہے
یہ مُجهے ماں کی دُعاوں کا اثر لگتا ہے


शेर नम्बर 1
सख़्त रस्तों में भी आसान सफ़र लगता है
ये मुझे माँ की दुआओं का असर लगता है



شعر نمبر 2
خودی کو کر بلند اتنا کہ ہر تقدیر سے پہلے
خُدا بندے سے خود پوچھے بتا تیری رضا کیا ہے

शेर नम्बर 2
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है


سنسنی خیز خبر
برطانوی اخبار نے دعویٰ کیا ہے کہ میچ فکسنگ الزام کا سامنا کرنے والے پاکستانی بولر محمد آصف کو وطن واپسی پر شدید ردعمل اور سٹے باز مافیا کا نشانہ بننے کا خطرہ ہے جس سے بچنے کیلئے انہوں نے برطانیہ میں سیاسی پناہ پر غور شروع کردیا ہے

सनसनी ख़ेज़ ख़बर
बरतानवी अख़बार ने दावा किया है के मैच फ़िक्सिंग इलज़ाम का सामना करने वाले पाकिस्तानी बोलर मुहम्मद आसिफ़ को वतन वापसी पर शदीद रद-ए-अमल और सट्टे बाज़ माफ़िया का निशाना बनने का ख़तरा है जिस से बचने के लिए उन्हों ने बरतानीया में सयासी पनाह पर ग़ौर शुरु कर दिया है

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