उत्तर भारत में छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं में एचआईवी के मामले बढ़ रहे हैं। इसके मद्देनजर संसद की एक समिति ने एड्स नियंत्रण विभाग से स्थिति पर कड़ी नजर रखने और इसका प्रसार रोकने के लिए ठोस कदम उठाने को कहा है।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से संबद्ध संसद की स्थायी समिति की हाल ही में राज्यसभा में पेश एक रिपोर्ट में कहा गया कि समिति उत्तर भारत के ऐसे राज्यों में बच्चों तथा गर्भवती महिलाओं में एड्स के बढ़ते मामलों से चितिंत है, जहाँ एचआईवी-एड्स का प्रभाव कम है।
समिति ने कहा कि वह ऐसा भी मानती है कि एचआईवी पॉजिटिव महिलाओं का पता लगाने के मामले में विभाग के सक्रिय प्रयासों के कारण भी ऐसे राज्यों में एचआईवी पॉजिटिव माँओं की संख्या में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है, जहाँ एड्स का प्रसार और प्रभाव आम तौर पर अब तक कम पाया जाता था।
इसने कहा कि विभाग को एचआईवी के बढ़ते मामलों के मद्देनजर स्थिति पर कड़ी नजर रखनी चाहिए और इसे रोकने के प्रभावी उपाय करने चाहिए।
समिति ने कहा कि उसे उन छोटे बच्चों की हालत से काफी पीड़ा है, जिन्हें लंबे समय तक एआरटी इलाज की जरूरत होती है। इसने सिफारिश की है कि एड्स नियंत्रण विभाग को ऐसे एचआईवी पॉजिटिव बच्चों का पता लगाकर उन्हें पूरा इलाज और मदद मुहैया करानी चाहिए। (भाषा)
रविवार, 9 मई 2010
3 माह में हाईकोर्ट पहुँचेगा कसाब का मामला
विशेष लोक अभियोजक उज्ज्वल निकम का कहना है कि आतंकवादी अजमल कसाब को सुनाई गई मौत की सजा की पुष्टि के लिए 26/11 की विशेष अदालत के फैसले और मामले के कागजात को बंबई उच्च न्यायालय के पास भेजने की कवायद में कम से कम तीन महीने का समय लगेगा।
एक वर्ष लंबी चली सुनवाई की कार्यवाही, 1,522 पृष्ठीय फैसले, गवाहों के जरिए मिले सबूत और हलफनामे में दर्ज उनके बयानों के साथ ही अभियोजन पक्ष की ओर से पेश किए गए दस्तावेजों की मूल प्रतियों को एक ‘पेपर बुक’ में संकलित किया जाएगा। फिर इस ‘पेपर बुक’ को उच्च न्यायालय के पास भेजा जाएगा।
टाइप किए हुए स्वरूप में ‘पेपर बुक’ को इस महीने के अंत में तैयार कर आगे भेजा जाएगा और फिर उच्च न्यायालय का स्टाफ उसकी सामग्री का मुद्रण करेगा। निकम ने कहा पूरी कवायद में कम से कम तीन महीने का समय लगेगा।
‘पेपर बुक’ के तैयार होने के बाद ही उच्च न्यायालय मामले की सुनवाई करेगा और कसाब को मुंबई में 166 लोगों की जान लेने के मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद सुनाई गई मौत की सजा की पुष्टि पर फैसला करेगा। कसाब उच्च न्यायालय में 30 दिन के भीतर अपील कर सकता है।
सरकार भी दो सहआरोपियों फहीम अंसारी और सबाउदुद्दीन अहमद को बरी कर देने के खिलाफ अपील कर सकती है। इस स्थिति में उच्च न्यायालय सभी मामलों की सुनवाई करेगा।
अगर उच्च न्यायालय मौत की सजा की पुष्टि कर देता है तो कसाब के पास उच्चतम न्यायालय में अपील करने का अधिकार होगा। अगर शीर्ष अदालत उसकी मौत की सजा बरकरार रखे तो वह राष्ट्रपति को दया याचिका भी दे सकता है। (भाषा)
एक वर्ष लंबी चली सुनवाई की कार्यवाही, 1,522 पृष्ठीय फैसले, गवाहों के जरिए मिले सबूत और हलफनामे में दर्ज उनके बयानों के साथ ही अभियोजन पक्ष की ओर से पेश किए गए दस्तावेजों की मूल प्रतियों को एक ‘पेपर बुक’ में संकलित किया जाएगा। फिर इस ‘पेपर बुक’ को उच्च न्यायालय के पास भेजा जाएगा।
टाइप किए हुए स्वरूप में ‘पेपर बुक’ को इस महीने के अंत में तैयार कर आगे भेजा जाएगा और फिर उच्च न्यायालय का स्टाफ उसकी सामग्री का मुद्रण करेगा। निकम ने कहा पूरी कवायद में कम से कम तीन महीने का समय लगेगा।
‘पेपर बुक’ के तैयार होने के बाद ही उच्च न्यायालय मामले की सुनवाई करेगा और कसाब को मुंबई में 166 लोगों की जान लेने के मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद सुनाई गई मौत की सजा की पुष्टि पर फैसला करेगा। कसाब उच्च न्यायालय में 30 दिन के भीतर अपील कर सकता है।
सरकार भी दो सहआरोपियों फहीम अंसारी और सबाउदुद्दीन अहमद को बरी कर देने के खिलाफ अपील कर सकती है। इस स्थिति में उच्च न्यायालय सभी मामलों की सुनवाई करेगा।
अगर उच्च न्यायालय मौत की सजा की पुष्टि कर देता है तो कसाब के पास उच्चतम न्यायालय में अपील करने का अधिकार होगा। अगर शीर्ष अदालत उसकी मौत की सजा बरकरार रखे तो वह राष्ट्रपति को दया याचिका भी दे सकता है। (भाषा)
जैन संत आचार्य महाप्रज्ञ का निधन
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ दशम अधिशास्ता एवं अणुव्रत अनुशास्ता जैन धर्म के आचार्यश्री और आचार्य तुलसी के शिष्य आचार्य महाप्रज्ञ का रविवार को दिल का दौरा पड़ने से चूरू जिले के सरदार शहर में निधन हो गया। वे 90 वर्ष के थे।
आचार्य महाप्रज्ञ प्रतिष्ठान के मीडिया प्रभारी शीतल बरडिया ने बताया कि आचार्य महाप्रज्ञ ने आज सुबह नियमित प्रवचन दिया। प्रवचन के बाद तीसरे प्रहर दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। उन्होंने बताया कि आचार्यश्री का अंतिम संस्कार सोमवार को सरदारशहर में किया जाएगा।
बरडिया के अनुसार आचार्य महाप्रज्ञ अपने धर्मसंघ के साथ 25 अप्रैल को सरदारशहर चातुर्मास के लिए आए थे। आचार्य महाप्रज्ञ को आगामी दिनों अक्षय तृतीया के मौके पर आयोजित कार्यक्रम और अपनी 91वीं वर्षगाँठ प्रेक्षा दिवस के रूप में 10 जुलाई को लाखों लोगों को प्रवचन देना था।
आचार्य महाप्रज्ञ का जन्म 14 जून 1920 को राजस्थान के झुंझुनू जिले के टमकोर गाँव में हुआ था और आचार्य महाप्रज्ञ की उपाधि मिलने से पहले उनका नाम मुनि नथमल था।
चोरडिया (अग्रवाल) परिवार में जन्म लेने वाले आचार्य महाप्रज्ञ ने अपनी माँ के साथ मात्र दस साल की उम्र में तेरापंथ के अष्ट आचार्य कालूगणी से जैन मुनि की दीक्षा प्राप्त की थी। तेरापंथ के नौवें आचार्यश्री तुलसी ने 59वें वर्ष में आचार्य महाप्रज्ञ को तेरापंथ के युवाचार्य का पद सौंपा। वर्ष 1995 में दिल्ली आचार्य तुलसी ने आचार्य महाप्रज्ञ को आचार्य पद सौंपा। वर्ष 1997 में आचार्य तुलसी का निधन होने पर आचार्य महाप्रज्ञ तेरापंथ धर्मसंघ के सर्वोच्च धर्मगुरु बने। चौदह साल तक आचार्य महाप्रज्ञ रहते हुए देश भर में अहिंसा यात्रा कर प्रवचन दिए।
नब्बे वर्षीय आचार्य महाप्रज्ञ ने तीन सौ से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। इसके अलावा जैन पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया और जैन योग एवं ध्यान परम्परा को आगे बढ़ाया। आचार्य महाप्रज्ञ के निधन का समाचार मिलते ही जैन धर्मावलंबियों और अनुयायियों का जयपुर से करीब एक सौ अस्सी किलोमीटर दूर सरदारशहर (चूरू) पहुँचना शुरू हो गया है। (भाषा)
आचार्य महाप्रज्ञ प्रतिष्ठान के मीडिया प्रभारी शीतल बरडिया ने बताया कि आचार्य महाप्रज्ञ ने आज सुबह नियमित प्रवचन दिया। प्रवचन के बाद तीसरे प्रहर दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। उन्होंने बताया कि आचार्यश्री का अंतिम संस्कार सोमवार को सरदारशहर में किया जाएगा।
बरडिया के अनुसार आचार्य महाप्रज्ञ अपने धर्मसंघ के साथ 25 अप्रैल को सरदारशहर चातुर्मास के लिए आए थे। आचार्य महाप्रज्ञ को आगामी दिनों अक्षय तृतीया के मौके पर आयोजित कार्यक्रम और अपनी 91वीं वर्षगाँठ प्रेक्षा दिवस के रूप में 10 जुलाई को लाखों लोगों को प्रवचन देना था।
आचार्य महाप्रज्ञ का जन्म 14 जून 1920 को राजस्थान के झुंझुनू जिले के टमकोर गाँव में हुआ था और आचार्य महाप्रज्ञ की उपाधि मिलने से पहले उनका नाम मुनि नथमल था।
चोरडिया (अग्रवाल) परिवार में जन्म लेने वाले आचार्य महाप्रज्ञ ने अपनी माँ के साथ मात्र दस साल की उम्र में तेरापंथ के अष्ट आचार्य कालूगणी से जैन मुनि की दीक्षा प्राप्त की थी। तेरापंथ के नौवें आचार्यश्री तुलसी ने 59वें वर्ष में आचार्य महाप्रज्ञ को तेरापंथ के युवाचार्य का पद सौंपा। वर्ष 1995 में दिल्ली आचार्य तुलसी ने आचार्य महाप्रज्ञ को आचार्य पद सौंपा। वर्ष 1997 में आचार्य तुलसी का निधन होने पर आचार्य महाप्रज्ञ तेरापंथ धर्मसंघ के सर्वोच्च धर्मगुरु बने। चौदह साल तक आचार्य महाप्रज्ञ रहते हुए देश भर में अहिंसा यात्रा कर प्रवचन दिए।
नब्बे वर्षीय आचार्य महाप्रज्ञ ने तीन सौ से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। इसके अलावा जैन पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया और जैन योग एवं ध्यान परम्परा को आगे बढ़ाया। आचार्य महाप्रज्ञ के निधन का समाचार मिलते ही जैन धर्मावलंबियों और अनुयायियों का जयपुर से करीब एक सौ अस्सी किलोमीटर दूर सरदारशहर (चूरू) पहुँचना शुरू हो गया है। (भाषा)
सुबह नाश्ता नहीं करते ब्रिटेनवासी
सुबह का नाश्ता भले ही दिन का सबसे महत्वपूर्ण आहार होता हो लेकिन ब्रिटेन में अनेक लोग एक घंटा ज्यादा सोने या जल्दी काम शुरू करने के लिए नाश्ता नहीं करते हैं। एक अध्ययन में यह बात सामने आई है।
सर्वेक्षण में यह भी पता लगा है कि जलपान के लिए बमुश्किल 20 मिनट का वक्त निकालने वाले ज्यादातर लोग अपने कमरे में टेलीविजन देखते हुए नाश्ता करते हैं।
अध्ययन के मुताबिक अनेक लोग सुबह का नाश्ता कार्यालय में ही करते हैं। यह दिलचस्प है कि नाश्ता टालने वाले लोगों में पुरुषों की खासी तादाद है।
सर्वेक्षण में पाया गया है कि 74 फीसद पुरुषों के लिए दोपहर का खाना ही दिन का पहला भोजन होता है।
‘डेली एक्सप्रेस’ की खबर के मुताबिक 47 प्रतिशत माता-पिता ने स्वीकार किया कि सुबह का नाश्ता बनाने का वक्त उनके लिए सबसे ज्यादा तनाव भरा होता है।
डॉ. ओत्केर ओनकेन द्वारा 2500 परिवारों पर किए गए सर्वेक्षण के मुताबिक स्कॉटलैंड में सबसे ज्यादा 72 प्रतिशत लोग सुबह का नाश्ता नहीं करते।
सर्वेक्षण में यह भी पता लगा है कि जलपान के लिए बमुश्किल 20 मिनट का वक्त निकालने वाले ज्यादातर लोग अपने कमरे में टेलीविजन देखते हुए नाश्ता करते हैं।
अध्ययन के मुताबिक अनेक लोग सुबह का नाश्ता कार्यालय में ही करते हैं। यह दिलचस्प है कि नाश्ता टालने वाले लोगों में पुरुषों की खासी तादाद है।
सर्वेक्षण में पाया गया है कि 74 फीसद पुरुषों के लिए दोपहर का खाना ही दिन का पहला भोजन होता है।
‘डेली एक्सप्रेस’ की खबर के मुताबिक 47 प्रतिशत माता-पिता ने स्वीकार किया कि सुबह का नाश्ता बनाने का वक्त उनके लिए सबसे ज्यादा तनाव भरा होता है।
डॉ. ओत्केर ओनकेन द्वारा 2500 परिवारों पर किए गए सर्वेक्षण के मुताबिक स्कॉटलैंड में सबसे ज्यादा 72 प्रतिशत लोग सुबह का नाश्ता नहीं करते।
'फाँसी नहीं दी गई थी तात्या टोपे को'
भारत में 1857 में हुए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता तात्या टोपे के बारे में भले ही इतिहासकार कहते हों कि उन्हें अप्रैल 1859 में फाँसी दी गई थी, लेकिन उनके एक वंशज ने दावा किया है कि वे एक जनवरी 1859 को लड़ते हुए शहीद हुए थे।
तात्या टोपे से जुड़े नए तथ्यों का खुलासा करने वाली किताब ‘तात्या टोपेज ऑपरेशन रेड लोटस’ के लेखक पराग टोपे ने बताया मध्यप्रदेश के शिवपुरी में 18 अप्रैल 1859 को तात्या को फाँसी नहीं दी गई थी, बल्कि गुना जिले में छीपा बड़ौद के पास अंग्रेजों से लोहा लेते हुए एक जनवरी 1859 को तात्या टोपे शहीद हो गए थे।
उन्होंने बताया इस बारे में अंग्रेज मेजर पैजेट की पत्नी लियोपोल्ड पैजेट की किताब 'कैम्प एंड कंटोनमेंट ए जनरल ऑफ लाइफ इन इंडिया इन 1857-1859' के परिशिष्ट में तात्या टोपे के कपड़े और सफेद घोड़े आदि का जिक्र किया गया है और कहा कि हमें रिपोर्ट मिली की तात्या टोपे मारे गए।
उन्होंने दावा किया तात्या टोपे के शहीद होने के बाद देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी अप्रैल तक तात्या टोपे बनकर लोहा लेते रहे। पराग ने बताया कि तात्या टोपे उनके पूर्वज थे। उनके परदादा के सगे भाई थे तात्या टोपे।
हालाँकि प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. बिपिन चंद्र ने अपनी किताब ‘भारत का स्वतंत्रता संघर्ष’ में लिखा है, ‘‘तात्या टोपे ने अपनी इकाई के साथ अप्रैल 1859 तक गुरिल्ला लड़ाई जारी रखी, लेकिन एक जमींदार ने उनके साथ धोखा किया और अंग्रेजों ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया।’’
जामिया मिलिया विवि में इतिहास के प्रोफेसर रिजवान कैसर ने बताया इतिहास बताता है कि तात्या टोपे को पकड़ लिया गया और मिलिट्री कोर्ट में सुनवाई के बाद 18 अप्रैल 1859 को उन्हें शिवपुरी में फाँसी दे दी गई थी।
पराग ने दावा किया कि मैंने इस किताब में 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दो प्रतीक चिन्ह ‘लाल कमल’ और ‘रोटी’ के रहस्य को भी सुलझाने की कोशिश की है।
उन्होंने बताया अंग्रेजी सेना की एक कंपनी में चार पलटन होती थीं। एक पलटन में 25 से 30 भारतीय सिपाही होते थे और पलटन का अधिकारी सूबेदार होता था, जो किसी भारतीय को अंग्रेजी सेना में मिलने वाला सबसे बड़ा पद होता था।
उन्होंने बताया विद्रोह से छह महीने पहले दिसंबर 1856 में सभी पलटन को ‘लाल कमल’ भेजा जाता था और मैदान में पलटन को पंक्तिबद्ध करके सूबेदार कमल की एक पंखुड़ी निकालता था और उसे सैनिक पीछे वालों को देते थे और सभी पंखुड़ियाँ निकालकर पीछे वाले को दे देते थे।
अंत में केवल डंडी बच जाती थी, जिसे वापस लौटा दिया जाता था। उन्होंने बताया डंडी से पता चलता था कि अंग्रेजी सेना की कुल कितनी पलटन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में विद्रोहियों के साथ है और लड़ने वालों की संख्या कितनी है।
पराग ने दूसरे प्रतीक चिन्ह ‘रोटी’ के बारे में बताया कि चार से छह चपातियाँ गाँव के मुखिया या चौकीदार को पहुँचाई जाती थीं। इसके टुकड़ों को पूरे गाँव में बाँटा जाता था, जिसके जरिये संदेश दिया जाता था कि सैनिकों के लिए अन्न की व्यवस्था करना है।
उन्होंने कहा कि यह पहली लड़ाई थी, जिसमें चिर विरोधी मुगल और मराठा एक साथ लड़े इसलिए यह प्रथम स्वतंत्रता संग्राम है। इस संग्राम के लिए तात्या टोपे ने कालपी के कारखाने में अस्त्र शस्त्र तैयार कराए थे और इसमें नाना साहब एवं बाइजाबाई शिंदे की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
उन्होंने बताया कि इस किताब को लिखने का विचार उन्हें आमिर खानWatch the New Look of Aamir !! की फिल्म ‘मंगल पांडे’ देखने के बाद आया। उन्होंने बताया कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान तात्या टोपे को लिखे गए 125 पत्र ‘खत ए शिकस्त’ में संग्रह किए गए हैं। (भाषा)
तात्या टोपे से जुड़े नए तथ्यों का खुलासा करने वाली किताब ‘तात्या टोपेज ऑपरेशन रेड लोटस’ के लेखक पराग टोपे ने बताया मध्यप्रदेश के शिवपुरी में 18 अप्रैल 1859 को तात्या को फाँसी नहीं दी गई थी, बल्कि गुना जिले में छीपा बड़ौद के पास अंग्रेजों से लोहा लेते हुए एक जनवरी 1859 को तात्या टोपे शहीद हो गए थे।
उन्होंने बताया इस बारे में अंग्रेज मेजर पैजेट की पत्नी लियोपोल्ड पैजेट की किताब 'कैम्प एंड कंटोनमेंट ए जनरल ऑफ लाइफ इन इंडिया इन 1857-1859' के परिशिष्ट में तात्या टोपे के कपड़े और सफेद घोड़े आदि का जिक्र किया गया है और कहा कि हमें रिपोर्ट मिली की तात्या टोपे मारे गए।
उन्होंने दावा किया तात्या टोपे के शहीद होने के बाद देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी अप्रैल तक तात्या टोपे बनकर लोहा लेते रहे। पराग ने बताया कि तात्या टोपे उनके पूर्वज थे। उनके परदादा के सगे भाई थे तात्या टोपे।
हालाँकि प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. बिपिन चंद्र ने अपनी किताब ‘भारत का स्वतंत्रता संघर्ष’ में लिखा है, ‘‘तात्या टोपे ने अपनी इकाई के साथ अप्रैल 1859 तक गुरिल्ला लड़ाई जारी रखी, लेकिन एक जमींदार ने उनके साथ धोखा किया और अंग्रेजों ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया।’’
जामिया मिलिया विवि में इतिहास के प्रोफेसर रिजवान कैसर ने बताया इतिहास बताता है कि तात्या टोपे को पकड़ लिया गया और मिलिट्री कोर्ट में सुनवाई के बाद 18 अप्रैल 1859 को उन्हें शिवपुरी में फाँसी दे दी गई थी।
पराग ने दावा किया कि मैंने इस किताब में 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दो प्रतीक चिन्ह ‘लाल कमल’ और ‘रोटी’ के रहस्य को भी सुलझाने की कोशिश की है।
उन्होंने बताया अंग्रेजी सेना की एक कंपनी में चार पलटन होती थीं। एक पलटन में 25 से 30 भारतीय सिपाही होते थे और पलटन का अधिकारी सूबेदार होता था, जो किसी भारतीय को अंग्रेजी सेना में मिलने वाला सबसे बड़ा पद होता था।
उन्होंने बताया विद्रोह से छह महीने पहले दिसंबर 1856 में सभी पलटन को ‘लाल कमल’ भेजा जाता था और मैदान में पलटन को पंक्तिबद्ध करके सूबेदार कमल की एक पंखुड़ी निकालता था और उसे सैनिक पीछे वालों को देते थे और सभी पंखुड़ियाँ निकालकर पीछे वाले को दे देते थे।
अंत में केवल डंडी बच जाती थी, जिसे वापस लौटा दिया जाता था। उन्होंने बताया डंडी से पता चलता था कि अंग्रेजी सेना की कुल कितनी पलटन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में विद्रोहियों के साथ है और लड़ने वालों की संख्या कितनी है।
पराग ने दूसरे प्रतीक चिन्ह ‘रोटी’ के बारे में बताया कि चार से छह चपातियाँ गाँव के मुखिया या चौकीदार को पहुँचाई जाती थीं। इसके टुकड़ों को पूरे गाँव में बाँटा जाता था, जिसके जरिये संदेश दिया जाता था कि सैनिकों के लिए अन्न की व्यवस्था करना है।
उन्होंने कहा कि यह पहली लड़ाई थी, जिसमें चिर विरोधी मुगल और मराठा एक साथ लड़े इसलिए यह प्रथम स्वतंत्रता संग्राम है। इस संग्राम के लिए तात्या टोपे ने कालपी के कारखाने में अस्त्र शस्त्र तैयार कराए थे और इसमें नाना साहब एवं बाइजाबाई शिंदे की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
उन्होंने बताया कि इस किताब को लिखने का विचार उन्हें आमिर खानWatch the New Look of Aamir !! की फिल्म ‘मंगल पांडे’ देखने के बाद आया। उन्होंने बताया कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान तात्या टोपे को लिखे गए 125 पत्र ‘खत ए शिकस्त’ में संग्रह किए गए हैं। (भाषा)
‘माँ’ होती है सबसे अच्छी दोस्त
ब्रिटेन में औसतन एक नागरिक के 22 दोस्त होते हैं, लेकिन वहाँ के प्रत्येक दस में से तीन लोग अपने दोस्तों की सूची में माँ को सबसे ऊपर रखते हैं।
एक नए सर्वेक्षण के अनुसार इसमें शामिल लोगों में से तीन चौथाई ने परिवार के सदस्यों में से ही किसी को अपना अच्छा दोस्त बताया। 39 प्रतिशत ने माँ को इस सूची में सबसे ऊपर रखा, वहीं 23 प्रतिशत ने बहनों को इस स्थान पर रखा। प्रत्येक दस में से एक व्यक्ति ने अपने जीवनसाथी को ही सर्वश्रेष्ठ दोस्त बताया।
सर्वेक्षण करने वाली शेफाली मत्तानी ने कहा कि जाहिर है कि परिवार के सदस्य अकसर सबसे अधिक विश्वसनीय और भरोसेमंद होते हैं।
एक नए सर्वेक्षण के अनुसार इसमें शामिल लोगों में से तीन चौथाई ने परिवार के सदस्यों में से ही किसी को अपना अच्छा दोस्त बताया। 39 प्रतिशत ने माँ को इस सूची में सबसे ऊपर रखा, वहीं 23 प्रतिशत ने बहनों को इस स्थान पर रखा। प्रत्येक दस में से एक व्यक्ति ने अपने जीवनसाथी को ही सर्वश्रेष्ठ दोस्त बताया।
सर्वेक्षण करने वाली शेफाली मत्तानी ने कहा कि जाहिर है कि परिवार के सदस्य अकसर सबसे अधिक विश्वसनीय और भरोसेमंद होते हैं।
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