रविवार, 12 सितंबर 2010

अल्लाह रक्खा रहमान(ए आर रहमान)


अल्लह रक्खा रहमान

जन्मनाम ए एस दिलीप कुमार
अन्य नाम ए आर रहमान
जन्म 6 जनवरी 1966 चेन्नई, तमिल नाडु, भारत
शैली फिल्मी संगीत, थियेटर, विश्व संगीत
व्यवसाय गीतकार, रिकार्ड निर्माता, संगीतकार, गायक, इंस्ट्रूमेंटलिस्ट, संगीत प्रबंधकर्ता, प्रोग्रामर
सक्रिय वर्ष १९८५-वर्तमान
जालपृष्ठ A. R. Rahman.com
अल्लाह रक्खा रहमान हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध संगीतकार हैं। इनका जन्म ६ जनवरी १९६७ को चेन्नै, तमिलनाडु, भारत में हुआ। जन्म के समय उनका नाम ए एस दिलीप कुमार था जिसे बाद में बदलकर वे ए आर रहमान बने। सुरों के बादशाह रहमान ने हिंदी के अलावा अन्य कई भाषाओं की फिल्मों में भी संगीत दिया है। टाइम्स पत्रिका ने उन्हें मोजार्ट ऑफ मद्रास की उपाधि दी। रहमान गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड से सम्मानित होने वाले पहले भारतीय हैं।[१] ए. आर. रहमान ऐसे पहले भारतीय हैं जिन्हें ब्रिटिश भारतीय फिल्म स्लम डॉग मिलेनियर में उनके संगीत के लिए तीन ऑस्कर नामांकन हासिल हुआ है।[२] इसी फिल्म के गीत जय हो..... के लिए सर्वश्रेष्ठ साउंडट्रैक कंपाइलेशन और सर्वश्रेष्ठ फिल्मी गीत की श्रेणी में दो ग्रैमी पुरस्कार मिले।[३]

प्रारंभिक जीवन
रहमान को संगीत अपने पिता से विरासत में मिला था। उनके पिता आरके शेखर मलयाली फ़िल्मों में संगीत देते थे। रहमान ने संगीत की आगे की शिक्षा मास्टर धनराज से प्राप्त की और मात्र ११ वर्ष की उम्र में अपने बचपन के मित्र शिवमणि के साथ रहमान बैंड रुट्स के लिए की-बोर्ड (सिंथेसाइजर) बजाने का कार्य करते। वे इलियाराजा के बैंड के लिए काम करते थे। रहमान को ही श्रेय जाता है चेन्नाई के बैंड "नेमेसिस एवेन्यू" की स्थापना के लिए। वे की-बोर्ड, पियानो, हारमोनियम और गिटार सभी बजाते थे। वे सिंथेसाइजर को कला और टेक्नोलॉजी का अद्भुत संगम मानते हैं। रहमान जब नौ साल के थे तब उनके पिता की मृत्यु हो गई थी और पैसों के लिए घरवालों को वाद्य यंत्रों को भी बेचना पड़ा। हालात इतने बिगड़ गए कि उनके परिवार को इस्लाम अपनाना पड़ा। बैंड ग्रुप में काम करते हुए ही उन्हें लंदन के ट्रिनिटी कॉलेज ऑफ म्यूजिक से स्कॉलरशिप भी मिली, जहाँ से उन्होंने पश्चिमी शास्त्रीय संगीत में डिग्री हासिल की।[४] ए आर रहमान की पत्नी का नाम सायरा बानो है। उनके तीन बच्चे हैं- खदीजा, रहीम और अमन। वे दक्षिण भारतीय अभिनेता राशिन रहमान के रिश्तेदार भी है। रहमान संगीतकार जी वी प्रकाश कुमार के चाचा हैं।


अल्लाह रक्खा रहमान१९९१ में रहमान ने अपना खुद का म्यूजिक रिकॉर्ड करना शुरु किया। १९९२ में उन्हें फिल्म डायरेक्टर मणिरत्नम ने अपनी फिल्म रोजा में संगीत देने का न्यौता दिया। फिल्म म्यूजिकल हिट रही और पहली फिल्म से ही रहमान ने फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी जीता। इस पुरस्कार के साथ शुरू हुआ रहमान की जीत का सिलसिला आज तक जारी है। रहमान के गानों की २०० करोड़ से भी अधिक रिकॉर्डिग बिक चुकी हैं। आज वे विश्व के टॉप टेन म्यूजिक कंपोजर्स में गिने जाते हैं। उन्होंने तहजीब, बॉम्बे, दिल से, रंगीला, ताल, जींस, पुकार, फिजा, लगान, मंगल पांडे, स्वदेश, रंग दे बसंती, जोधा-अकबर, जाने तू या जाने ना, युवराज, स्लम डॉग मिलेनियर, गजनी जैसी फिल्मों में संगीत दिया है। उन्होंने देश की आजादी की ५०वीं वर्षगाँठ पर १९९७ में "वंदे मातरम्‌" एलबम बनाया, जो जबर्दस्त सफल रहा। भारत बाला के निर्देशन में बना एलबम "जन गण मन", जिसमें भारतीय शास्त्रीय संगीत से जुड़ी कई नामी हस्तियों ने सहयोग दिया उनका एक और महत्वपूर्ण काम था। उन्होंने स्वयं कई विज्ञापनों के जिंगल लिखे और उनका संगीत तैयार किया। उन्होंने जाने-माने कोरियोग्राफर प्रभुदेवा और शोभना के साथ मिलकर तमिल सिनेमा के डांसरों का ट्रुप बनाया, जिसने माइकल जैक्सन के साथ मिलकर स्टेज कार्यक्रम दिए।

सम्मान और पुरस्कार
संगीत में अभूतपूर्व योगदान के लिए १९९५ में मॉरीशस नेशनल अवॉर्ड्स, मलेशियन अवॉर्ड्स।
फर्स्ट वेस्ट एंड प्रोडक्शन के लिए लारेंस ऑलीवर अवॉर्ड्स।
चार बार संगीत के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता।
२००० में पद्मश्री से सम्मानित।
मध्यप्रदेश सरकार का लता मंगेशकर अवॉर्ड्स।
छः बार तमिलनाडु स्टेट फिल्म अवॉर्ड विजेता।
११ बार फिल्म फेयर और फिल्म फेयर साउथ अवॉर्ड विजेता।
विश्व संगीत में योगदान के लिए २००६ में स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी से सम्मानित।
२००९ में फ़िल्म स्लम डॉग मिलेनियर के लिए गोल्डेन ग्लोब पुरस्कार।
ब्रिटिश भारतीय फिल्म स्लम डॉग मिलेनियर में उनके संगीत के लिए ऑस्कर पुरस्कार।
२००९ के लिये २ ग्रैमी पुरस्कार, स्लम डॉग मिलेनियर के गीत जय हो.... के लिये: सर्वश्रेष्ठ साउंडट्रैक व सर्वश्रेष्ठ फिल्मी गीत के लिये।

न्‍याय व्‍यवस्‍था

भारत की न्याय प्रणाली विश्व की सबसे पुरानी प्रणालियों में से एक हैं। संविधान की प्रस्तावना भारत को 'संप्रभुता संपन्न प्रजातांत्रिक गणराज्य' के रूप में पारिभाषित करती है, इसमें केंद्र और राज्यों में संसदीय स्वरूप वाली संघीय शासन प्रणाली, स्वतंत्र न्यायपालिका, संरक्षित मौलिक अधिकार और राज्य के नीति निर्देशक तत्व, जिन्हें यद्यपि लागू करने के लिए सरकारें कानून बाध्य नहीं हैं, शामिल हैं और यह सब राष्ट्र के प्रशासन के आधारभूत तत्व हैं।

भारत में कानून का स्रोत संविधान है, जो इसके बदले में राज्य को विधिक मान्यता देता है, विवाद संबंधी कानून और पारंपरिक कानून इसके विधानों के अनुकूल हैं। भारतीय संविधान की एक प्रमुख विशेषता यह है कि संघीय प्रणाली को अपनाने और केंद्रीय अधिनियमों एवं राज्य अधिनियमों के उनके संबंधित क्षेत्र में मौजूद होते हुए भी इसने सामान्यत: संघीय और राज्य दोनों के कानूनों को प्रवर्तित करने के लिए एकीकृत एकल न्यायालयों की व्यवस्था की है।

समस्त न्याय प्रणाली के शीर्ष पर भारत का उच्‍चतम न्‍यायालय (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं) विद्यमान है, इसके नीचे प्रत्येक राज्य में या राज्यों के समूह में उच्च न्यायालय हैं। उच्च न्यायालय के नीचे अधीनस्थ न्यायालय पदानुक्रम में हैं। छोटे और स्थानीय प्रकृति के दीवानी और फौजदारी प्रकरणों के निपटारे के लिए न्याय पंचायत, पंचायत अदालत, ग्राम कचहरी आदि नामों से कुछ राज्यों में पंचायती न्यायालय भी कार्य करते हैं।

यह खंड आपको भारतीय न्यायपालिका के बारे में उपयोगी सूचनाएं प्रदान करता है और न्यायालयीन निर्णयों के व्यापक डाटाबेस के माध्यम से प्रतिदिन के आदेश, मामलों की स्थिति और वाद सूची जानने की सुविधा मुहैया कराता है।

पुलिस

देश में पुलिस बल को सार्वजनिक व्यवस्था का रख-रखाव करने तथा अपराधों की रोकथाम और उनका पता लगाने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। भारत के प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश का अपना अलग पुलिस बल है। भारत के संविधान का अनुच्छेद 246 (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं) पुलिस को राज्य सूची में रखता है जिसका मतलब यह है कि प्रत्येक राज्य सरकार पुलिस बल को शासित करने वाले नियम और विनियम बनाती है। ये नियम और विनियम प्रत्येक राज्य के पुलिस बल की नियमावली में सन्निहित हैं।

राज्य के पुलिस बल का मुख्य पुलिस महानिदेशक/पुलिस महानिरीक्षक होता है। प्रत्येक राज्य को सुविधाजनक क्षेत्रीय मंडलों में बांटा गया है, जो रेंज कहलाता है और प्रत्येक पुलिस रेंज पुलिस, उपमहानिरीक्षक के प्रशासनिक नियंत्रण में होता है। एक रेंज में कई जिले होते हैं। जिला पुलिस को और आगे पुलिस डिवीजन, सर्कलों और थानों में विभाजित किया गया है। सिविल पुलिस के अलावा राज्य अपनी स्वयं की सशस्त्र पुलिस भी रखते हैं और उनमें अलग से गुप्तचर शाखायें अपराध शाखायें आदि होती हैं। दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, चेन्नई, बैंगलोर, हैदराबाद, अहमदाबाद, नागपुर, पुणे जैसे बड़े शहरों में पुलिस व्यवस्था प्रत्यक्ष रूप से पुलिस आयुक्त के अधीन होती है। विभिन्न राज्यों में सभी बड़े पुलिस अधिकारी पदों पर भर्ती भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) द्वारा की जाती है, जिसकी भर्ती परीक्षा में पूरे भारत के प्रतिभावान अभ्यर्थी शामिल होते हैं।

केन्द्रीय सरकार केंद्रीय पुलिस बल रखती है, इसके पास गुप्तचर ब्यूरो (आईबी), केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं), पुलिस अधिकारियों के प्रशिक्षण के लिए संस्थायें और विधि विज्ञान संस्थायें हैं। यह संस्थायें राज्यों को सूचना एकत्र करने, कानून व्यवस्था बनाए रखने, विशेष आपराधिक मामलों की जांच करने और राज्य सरकारों के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को प्रशिक्षण देने में सहायता प्रदान करती हैं।

जन्‍म प्रमाणपत्र प्राप्‍त करना

जन्‍म प्रमाणपत्र करता है और यह क्‍यों अनिवार्य है?
जन्‍म प्रमाणपत्र बहुत ही महत्‍वपूर्ण पहचान का दस्‍तावेज हैं इससे किसी के लिए भी इसके होने से भारत सरकार द्वारा इसके नागरिकों को प्रदान की जाने वाली बहुत सारी सेवाओं का लाभ उठा सकता है। जन्‍म प्रमाणपत्र प्राप्‍त करना अनिवार्य हो जाता है चूंकि यह सभी प्रयोजनों के लिए किसी के जन्‍म की तारीख और तथ्‍य को प्रमाणित करता है जैसे मत देने का अधिकार प्राप्‍त करना, स्‍कूलों और सरकारी सेवाओं में दाखिला, कानूनी रूप से अनुमत आयु के विवाह करने का दावा करना, वंशगत और सम्‍पत्ति के अधिकारों का निपटान, संबंधित राज्‍य/संघ राज्‍य क्षेत्र में जन्‍म प्रमाणपत्र प्राप्‍त करने के लिए ब्‍यौरेवार प्रक्रिया जानने हेतु मेनु से राज्‍य/संघ राज्‍य क्षेत्र चुनें। और सरकार द्वारा जारी किए जाने वाले पहचान के दस्‍तावेज जैसे ड्राइविंग लाइसेंस या पासपोर्ट।

कानूनी ढांचा
भारत में कानून के अधीन यह अनिवाय है (जन्‍म और मृत्‍यु अधिनियम, 1969 के पंजीकरण के अनुसार (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं)) कि प्रत्‍येक जन्‍म/मृत प्रसव का पंजीकरण संबंधित राज्‍य/संघ राज्‍य क्षेत्र की सरकार में होने के 21 दिन अंदर किया जाए। तदनुसार सरकार ने केन्‍द्र में यहा पंजीयक के पास पंजीकरण के लिए और राज्‍यों में मुख्‍य पंजीयक, और गांवों में जिला पंजीयकों द्वारा एवं नगर में परिसर में पंजीकरण के लिए सुपारिभाषित प्रणाली की व्‍यवस्‍था की है।

आप को क्‍या करने की आवश्‍यकता है?
जन्‍म प्रमाणप पत्र के लिए ओवदन करने के लिए आप पहले जन्‍म का पंजीकरण करें। पंजीयक द्वारा निर्धारित प्रपत्र भरकर जन्‍म होने के 21 दिन के भीतर संबंधित स्‍थानीय प्राधिकारी के पास जन्‍म का पंजीकरण किया जाना है। संबंधित अस्‍पताल के वास्‍तविक रिकार्ड का सत्‍यापन करने के बाद जन्‍म प्रमाणपत्र जारी किया जाता है।
यदि इसके होने के निर्धारित समय के भीतर जन्‍म पंजीकृत नहीं किया गया है तो राजस्‍व प्राधिकारी द्वारा दिए गए आदेश से पुलिस द्वारा विधिवत सत्‍यापन करने के बाद प्रमाणपत्र जारी किया जाता है।

मृत्‍यु प्रमाण पत्र प्राप्‍त करना

मृत्‍यु प्रमाण पत्र प्राप्‍त करना
मृत्‍यु प्रमाणपत्र क्‍या है इसकी आवश्‍यकता क्‍यों होती है?
मृत्‍यु प्रमाण पत्र एक दस्‍तावेज होता है जिसे मृत व्‍यक्ति के निकटतम रिश्‍तेदारों को जारी किया जाता है, जिसमें मृत्‍यु का तारीक तथ्‍य और मृत्‍यु के कारण का विवरण होता है। मृत्‍यु का समय और तारीख का प्रमाण देने, व्‍यष्टि को सामाजिक, न्‍यायिक और सरकारी बाध्‍यताओं से मुक्‍त करने के लिए, मृत्‍यु के तथ्‍य को प्रमाणित करने के लिए सम्‍पत्ति संबंधी धरोहर के विवादों को निपटान करने के लिए और परिवार को बीमा एवं अन्‍य लाभ जमा करने के लिए प्राधिकृत करने के लिए मृत्‍यु का पंजीकरण करना अनिवार्य है।

कानूनी ढांचा
भारत में कानून के अधीन (जन्‍म और मृत्‍यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं) के अनुसार) प्रत्‍येक मृत्‍यु का इसके होने के 21 दिनों के भीतर संबंधित राज्‍य/संघ राज्‍य क्षेत्र में पंजीकरण करना अनिवार्य है। तदनुसार सरकार ने केन्‍द्र में महापंजीयक, भारत के पास और राज्‍यों में मुख्‍य पंजीयकों के पास गांवों में जिला पंजीयकों द्वारा चलाने जाने वाले और नगरों के पंजीयक परिसर में मृत्‍यु का पंजीकरण करने के लिए सुपारिभाषित प्रणाली की व्‍यवस्‍था की है।

आपको मृत्‍यु प्रमाणपत्र प्राप्‍त करने के लिए क्‍या करने की आवश्‍यकता है
मृत्‍यु की रिपोर्ट या इसका पंजीकरण परिवार के मुख्‍या के द्वारा किया जा सकता है यदि यह घर पर होती है; यदि यह अस्‍पताल में होती है तो चिकित्‍सा प्रभारी द्वारा, यदि यह जेल में होती है तो जेल प्रभारी के द्वारा यदि शव लावरिश पड़ा हो तो ग्राम के मुख्‍या या स्‍थानीय स्‍थान प्रभारी द्वारा किया जाता है।

मृत्‍यु प्रमाणपत्र के लिए आवेदन करने के लिए आपको पहले मृत्‍यु का पंजीकरण करना है। मृत्‍यु का पंजीकरण संबंधित प्राधिकारी के पास इसके होने के 21 दिनों के भीतर पंजीयक द्वारा निर्धारित प्रपत्र भर करके किया जाना है। तब उचित सत्‍यापन के बाद मृत्‍यु प्रमाणपत्र जारी किया जाता है।

यदि मृत्‍यु होने के 21 दिन के भीतर इसका पंजीकरण नहीं किया जाता है तो पंजीयक/क्षेत्र मजिस्‍ट्रेट से निर्धारित शुल्‍क के साथ यदि विलम्‍ब पंजीकरण है तो अनुमति अपेक्षित है।

जिस आवेदन प्रपत्र में आपको आवेदन करने की आवश्‍यकता है वह साधारणत: क्षेत्र के स्‍थानीय निकाय प्राधिकारिणों या पंजीयक के पास उपलब्‍ध होता है जो मृत्‍यु के रजिस्‍टर का रखरखाव करता है। आपको मृत व्‍यक्ति के जन्‍म का प्रमाण एक वचनपत्र जिसमें मृत्‍यु का समय और तारीख विनिर्दिष्‍ट हो, राशन कार्ड की एक प्रति और न्‍यायालयीन स्‍टैम्‍प के रूप में अपेक्षित शुल्‍क भी जमा करने की आवश्‍यकता हो सकती है।

इंफ्लुएंजा ए (एच 1 एन 1)

इंफ्लुएंजा ए (एच 1 एन 1) एक इंफ्लुएंजा वायरस है, जिससे लोगों में बीमारी और मौत हो सकती है। इसे पहले स्‍वाइन फ्लू के नाम से जाना जाता था। यह बीमारी अप्रैल 09 में मेक्सिको से शुरू हुई, तब से यह वायरस दुनिया भर के अनेक देशों में फैल गया है। प्रारंभिक प्रयोगशाला परीक्षणों से पता चलता है कि इस वायरस के कई जीन्‍स उत्तरी अमेरिका के सुअरों में पाए जाने वाले जीनों के समान है, इसी लिए इस रोग को मूलत: स्‍वाइन फ्लू कहा जाता था। आगे चल कर कुछ अन्‍य परीक्षणों से यह सिद्ध हुआ है कि इस वायरस में सुअरों के जीन के हिस्‍से होने के साथ कुछ पक्षियों और मानव फ्लू वायरस के समान जीन भी पाए जाते हैं। इस जानकारी के निर्णय से वैज्ञानिकों ने इसके पिछले नाम को हटाकर अब से ‘इंफ्लुएंजा ए (एच 1 एन 1)’ किया है।

इंफ्लुएंजा ए (एच 1 एन 1) के लक्षण
इंफ्लुएंजा ए (एच 1 एन 1) के लक्षण नियमित मौसमी फ्लू के लक्षणों के समान होते हैं। जिन लोगों को यह बीमारी होती है उन्‍हें बुखार, खांसी, गले में खराश, शरीर में दर्द, सिर में दर्द, कंपकंपी और थकान महसूस हो सकती है। कुछ रोगियों को दस्‍त और उल्‍टी आने की समस्‍या भी हो सकती है।

ऐसा माना जाता है कि फ्लू का वायरस उन छोटी छोटी बूंदों के जरिए एक व्‍यक्ति से दूसरे व्‍यक्ति में फैल सकता है जो संक्रमित व्‍यक्ति की नाक या मुंह से छींक या खांसी के दौरान बाहर आती हैं। इस रोग के साथ सुअरों का कोई लेना देना नहीं है। यदि सुअर के मांस से बने उत्‍पादों को अच्‍छी तरह पका कर खाया जाए तो सुअरों से डरने की कोई जरूरत नहीं है।

सामान्‍य सावधानियां

वायरस के संक्रमण से बचने के लिए ये कुछ सावधानियां हैं

जब भी आप छींकें या खांसें तो मुंह और नाक पर टिश्‍यू रखें। इस टिश्‍यू को उपयोग के बाद फेंक दें।
खांसने और छींकने के बाद अपने हाथ अच्‍छी तरह धो लें।
अपनी आंखों, नाक और मुंह को छूने से बचें, क्‍योंकि ऐसा करने से कीटाणु फैलते हैं।
सांस की बीमारी वाले रोगियों से दूर रहें।
यदि किसी व्‍यक्ति को इंफ्लुएंजा के समान लक्षण दिखाई देते हैं तो उसे लोगों से संपर्क नहीं करना चाहिए और घर पर ही रहना चाहिए। जबकि, श्‍वसन तनाव के मामले में उसे देर किए बिना नजदीकी अस्‍पताल में जाना चाहिए।
अपने स्‍वास्‍थ्‍य की देखभाल करें, अच्‍छी तरह नींद लें, नियमित रूप से व्‍यायाम करें, तनाव का प्रबंधन करें, ढेर सारे तरल पदार्थ लें और पोषक भोजन लें।

फ्लू की परिस्थितियों की रोकथाम
आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्‍सा, यूनानी, सिद्धा और होमियोपैथी विभाग (आयुष) (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं) देश के विभिन्‍न भागों में एच1एन1 वायरस के मामलों की बढ़ती संख्‍या को देखकर चिंतित है। इसका विचार है कि आयुर्वेद /यूनानी हस्‍तक्षेप फ्लू के समान परिस्थितियों से निपटने के लिए व्‍यक्ति की प्रतिरक्षा को सुधारने में इस्‍तेमाल किए जा सकते हैं। इन उपायों को सामान्‍य स्‍वस्‍थ व्‍यक्तियों के साथ उन व्‍यक्तियों द्वारा भी अपनाया जा सकता है जिन्‍हें हल्‍का जुकाम, खांसी और शरीर में दर्द की समस्‍या है।
आयुष विभाग द्वारा आयुष हस्‍तक्षेपों का सुझाव देने के लिए विशेषज्ञों का एक समूह गठित किया गया है जो फ्लू जैसे रोगों की रोकथाम / इलाज में सहायक हैं। आयुर्वेदिक विशेषज्ञों ने कुछ विशिष्‍ट उपाय अपनाने की सलाह दी है जैसे कि कफ पैदा करने वाले भोजन से परहेज जैसे दही, कोल्‍ड ड्रिंक, फलों के रस, आइसक्रीम, तथा ठण्‍डे पानी के स्‍थान पर गर्म पानी पीना और तुलसी, अदरक, काली मिर्च तथा गुडुची जैसी औषधियों से बने काढ़े का सुबह सेवन करना।
केन्‍द्रीय यूनानी चिकित्‍सा अनुसंधान परिषद (सीसीआरयूएम) (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं) ने यूनानी विशेषज्ञों के साथ विस्‍तार से परामर्श किया है और कुछ निवारणात्‍मक उपाय जैसे काढ़े, चाय, अर्क, विशिष्‍ट यौगिक सूत्रणों का उपयोग करने, विशेष प्रकार के ‘रोगन’ स्‍थानीय रूप से लगाने तथा हल्‍का भोजन एवं व्‍यक्तिगत स्‍वच्‍छता बनाए रखने की सलाह दी है।
आयुर्वेद और यूनानी रोकथाम के उपायों (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं) के बारे में कुछ उपयोगी सूचना इस प्रकार है।
फ्लू जैसी बीमारी को होमियोपैथी द्वारा भी रोका जा सकता है। केन्‍द्रीय होमियोपैथी अनुसंधान परिषद (सीसीआरएच) (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं) ने ऐसी फ्लू जैसी स्थितियों के लिए सुरक्षा प्रदान करने हेतु होमियोपैथी दवाओं (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं) की सिफारिश की है।

जबकि उन मामलों में जहां लोगों को गंभीर लक्षण (श्रेणी ख और ग)
विकसित हो जाते हैं, उन्‍हें सलाह दी जाती है कि वे इस प्रयोजन के लिए केन्‍द्र तथा राज्‍य सरकारों द्वारा स्‍थापित नामनिर्दिष्‍ट छानबीन केन्‍द्रों / अस्‍पतालों में जाएं। इस रोग के उपचार के लिए भारत में दवाएं उपलब्‍ध हैं। सरकार ने ना‍मनिर्दिष्‍ट अस्‍पतालों में अनिवार्य निविदाओं की पर्याप्‍त मात्रा का प्रापण और भंडार किया है। ना‍गरिकों को सलाह दी जाती है कि वे अपने आप दवाएं लेकर सेवन नहीं करें, क्‍योंकि इससे उनके शरीर की आंतरिक प्रतिरक्षा शक्ति में कमी आएगी।
सरकार ने हवाई मार्ग, सड़क मार्ग या समुद्री रास्‍ते से प्रभावित देशों से आने वाले यात्रियों में इंफ्लुएंजा ए (एच 1 एन 1) का पता लगाने और उनके संगरोध की कार्यनीति भी तैयार की है। पूरे देश में छानबीन, परीक्षण और उपचार की एक मानक प्रक्रिया अपनाई जाएगी। यदि आपने पिछले 10 दिनों के दौरान प्रभावित देशों में से किसी देश की यात्रा की है और आपको इंफ्लुएंजा ए (एच 1 एन 1) के लक्षण दिखाए देते हैं तो कृपया नजदीकी अस्‍पताल में जाए।

अखिल भारतीय टोल फ्री हेल्पलाइन: 1075 और 1800-11-4377

महामारी निगरानी प्रकोष्‍ठ: 011-23921401


स्रोत: राष्‍ट्रीय पोर्टल विषयवस्‍तु प्रबंधन दल

स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल की वैकल्पिक पद्धति

स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल की वैकल्पिक पद्धति
आयुर्विज्ञान की वै‍कल्पिक पद्धतियांs

आयुर्वेद जीवन का ज्ञान है जो मानव जीवन के लिए दुख के उत्तरदायी कारकों पर विस्‍तृत विचार करता है। साथ ही प्राकृतिक और हर्बल उत्पादों का इलाज में उपयोग कर पूर्ण जीवन काल हेतु स्‍वस्‍‍थ जीवन के लिए उपाय निर्देर्शित करता है। आयुर्वेद - अधिक जानकारी (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं)।
योग भौतिक मानसिक, नैतिक और आध्‍यात्मिक रूप से स्‍वस्‍थ जीवन जीने की कला है। यह किसी भी प्रकार से प्रजाति, आयु, लिंग, धर्म, जाति अथवा धार्मिकता से बंधा हुआ नहीं है और उन सभी के द्वारा इसका पालन किया जा सकता है जो अच्‍छे रहन-सहन संबंधी शिक्षा प्राप्‍त करना चाहते है और सार्थक जीवन जीना चाहते है। योग - अधिक जानकारी (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं)।
नैचुरोपैथी अथवा प्रकृति द्वारा देखभाल का विश्‍वास है कि सभी बीमारियां शरीर में दूषित तत्‍वों के संग्रहित होने के कारण होती हैं और यदि इसे हटाने की संभावना हो तो उपचार हो जाता है अथवा राहत मिलती है। उपचार हेतु इसमें मुख्‍य विधियां वायु, जल, ताप गीली मिट्टी और स्‍थान है। नैचुरोपैथी अथवा प्रकृति द्वारा देखभाल- अधिक जानकारी (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं)।
भारत में होम्‍योपैथी का चलन अर्द्धशताब्‍दी से भी अधिक समय से है। यह देश की जड़ों और परंपराओं में इतनी अच्‍छी तरह घुल-मिल गई है कि इसे आयुर्विज्ञान के राष्‍ट्रीय पद्धतियों में से एक माना जाता है और बड़ी मात्रा में लोगों को स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी सुविधाएं प्रदान करने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसकी ताकत समग्र दृष्टिगोचर में निहित है क्‍योंकि यह मानसिक, भावात्‍मक, आध्‍यात्मिक और भौतिक स्‍तरों पर आंतरिक संतुलन का विकास कर रूग्‍ण व्‍यक्ति के प्रति दार्शनिक दृष्टिकोण अपनाती है। होम्‍योपैथी - अधिक जानकारी (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं)।
यूनानी में निर्धारित है कि श‍रीर में स्‍वयं की रक्षा की शक्ति होती है जो व्‍यक्ति की संरचना अथवा स्थिति द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर किसी भी व्‍यवधान को सही करने का प्रयास करती है। फिजीशियन केवल इस शक्ति के कार्य से आगे बढ़ने अथवा इसको रोकने के बजाय इसको बढ़ाने में सहायता करता है। यूनानी - अधिक जानकारी (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं)।
सिद्धा काफी हद तक आयुर्वेद के समान है। इस पद्धति में रसायन का आयुर्विज्ञान तथा आल्‍केमी (रसायन विश्‍व) के सहायक विज्ञान के रूप में काफी विकास हुआ है। इसे औषध निर्माण तथा मूल धातुओं के सोने में अंतरण में सहायक पाया गया। इसमें पौधों और खनिजों की काफी अधिक जानकारी थी और वे विज्ञान की लगभग सभी शाखाओं की जानकारी रखते थे। सिद्धा - अधिक जानकारी (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं)।
एक्‍यूप्रेशर में शरीर के विशिष्‍ट भागों पर दाब दिया जाता है अथवा खास मसाज की जाती है ताकि दर्द को नियंत्रित किया जा सके। इस थेरेपी का उपयोग रक्‍तस्राव को रोकने के लिए भी किया जाता है। यह पारंपरिक चीनी आयुर्विज्ञान से व्‍युत्‍पन्‍न है जो कि दर्द के उपचार का एक तरीका है जिसमें शरीर के विशेष बिन्‍दुओं पर दाब दिया जाता है, जिन्‍हें 'एक्‍युप्रेशर बिन्‍दु' कहा जाता है।
एक्‍युपंक्‍चर (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं) आयुर्विज्ञान की प्राचीन चीनी पद्धति है जिसमें शरीर के कुछ महत्‍वपूर्ण बिन्‍दुओं पर पिन चुभाई जाती है। इसका उपयोग दीर्घ स्‍थायी दर्द जैसे अर्थराइटिस, बरसाइटिस, सिरदर्द, एथलेटिक चोटे, संघात उपरांत तथा शल्‍य चिकित्‍सा उपरांत होने वाले दर्द के उपचार में किया जाता है। इसका उपयोग प्रतिरक्षा प्रणाली के ठीक प्रकार से कार्य न करने से संबंधित दीर्घस्‍थायी दर्द, जैसे सोरिएसिस (त्‍वचा संबंधी विकार) एलर्जी और अस्‍थमा के उपचार के लिए भी किया जाता है। एक्‍युपंक्‍चर के कुछ आधुनिक अनुप्रयोगों में मद्यव्‍यसन, व्‍यसन, ध्रूमपान और खान पान संबंधी विकारों जैसे विकारों का उपचार शामिल है।
सामान्‍यतया टेलीमेडिसिन से तात्‍पर्य चिकित्‍सीय देखभाल प्रदान करने के लिए संचार और सूचना प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना है। इससे यह साधारण सी बात है कि दो स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी प्रोफेशनल किसी मामले पर टेलीफोन पर चर्चा कर लें अथवा यह इतना जटिल भी हो सकता है कि दो विभिन्‍न देशों में चिकित्‍सा विशेषज्ञों के बीच वास्‍तविक परमर्श हेतु सैटेलाइट प्रौद्योगिकी और वीडियो कान्‍फ्रेंसिंग उपकरण का उपयोग किया जाए। सूचना प्रौद्योगिकी विभाग (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं) (डीआईटी) ने भारत में टेलीमेडिसिन पद्धतियों हेतु मानक (