रविवार, 12 सितंबर 2010

न्‍याय व्‍यवस्‍था

भारत की न्याय प्रणाली विश्व की सबसे पुरानी प्रणालियों में से एक हैं। संविधान की प्रस्तावना भारत को 'संप्रभुता संपन्न प्रजातांत्रिक गणराज्य' के रूप में पारिभाषित करती है, इसमें केंद्र और राज्यों में संसदीय स्वरूप वाली संघीय शासन प्रणाली, स्वतंत्र न्यायपालिका, संरक्षित मौलिक अधिकार और राज्य के नीति निर्देशक तत्व, जिन्हें यद्यपि लागू करने के लिए सरकारें कानून बाध्य नहीं हैं, शामिल हैं और यह सब राष्ट्र के प्रशासन के आधारभूत तत्व हैं।

भारत में कानून का स्रोत संविधान है, जो इसके बदले में राज्य को विधिक मान्यता देता है, विवाद संबंधी कानून और पारंपरिक कानून इसके विधानों के अनुकूल हैं। भारतीय संविधान की एक प्रमुख विशेषता यह है कि संघीय प्रणाली को अपनाने और केंद्रीय अधिनियमों एवं राज्य अधिनियमों के उनके संबंधित क्षेत्र में मौजूद होते हुए भी इसने सामान्यत: संघीय और राज्य दोनों के कानूनों को प्रवर्तित करने के लिए एकीकृत एकल न्यायालयों की व्यवस्था की है।

समस्त न्याय प्रणाली के शीर्ष पर भारत का उच्‍चतम न्‍यायालय (बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडों में खुलती हैं) विद्यमान है, इसके नीचे प्रत्येक राज्य में या राज्यों के समूह में उच्च न्यायालय हैं। उच्च न्यायालय के नीचे अधीनस्थ न्यायालय पदानुक्रम में हैं। छोटे और स्थानीय प्रकृति के दीवानी और फौजदारी प्रकरणों के निपटारे के लिए न्याय पंचायत, पंचायत अदालत, ग्राम कचहरी आदि नामों से कुछ राज्यों में पंचायती न्यायालय भी कार्य करते हैं।

यह खंड आपको भारतीय न्यायपालिका के बारे में उपयोगी सूचनाएं प्रदान करता है और न्यायालयीन निर्णयों के व्यापक डाटाबेस के माध्यम से प्रतिदिन के आदेश, मामलों की स्थिति और वाद सूची जानने की सुविधा मुहैया कराता है।

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